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2019 की 19 महिलाएं: चुनावी रण में कांग्रेस का 'ब्रह्मास्त्र' बनकर उतरीं प्रियंका गांधी, मोदी के लिए कितनी बड़ी मुसीबत ?

Election 2019: 47 साल की प्रियंका गांधी पिछले कई सालों से मां सोनिया गांधी और भाई राहुल गांधी के लिए परदे के पीछे रह कर काम करती रही हैं. इसके अलावा वो कांग्रेस में शामिल हुए बिना ही चुनाव प्रचार भी करती रही हैं. लेकिन कांग्रेस में आधिकारिक तौर पर वो अब शामिल हुई हैं.

नई दिल्ली: इस बार लोकसभा चुनाव कई मायनों में पहले हुए तमाम चुनावों से अहम और दिलचस्प होने वाला है. कांग्रेस ने बीजेपी का रास्ता रोकने के लिए अपने सबसे बड़े हथियार प्रियंका गांधी को राजनीति के मैदान में उतार दिया है. कांग्रेस कार्यकर्ता अरसे से प्रियंका गांधी को ऐक्टिव पोलिटिक्स में लाने की मांग करते रहे हैं. यह बात भी काबिल-ए-गौर है प्रियंका ने उस दौर में राजनीति में कदम रखा है, जब कांग्रेस को देशभर में अपनी साख बचाने की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है. प्रियंका गांधी को कांग्रेस में महासचिव बनाया गया है. उन्हें पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाकर वहां जीत दिलाने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई है.

‘2019 की 19 महिलाएं’ सीरीज़ में आज ज़िक्र प्रियंका गांधी का, उनके असर का और उनके आने के बाद कांग्रेस की स्थिति कितनी मज़बूत होगी इसका.

कौन हैं प्रियंका गांधी? पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी और यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी की बेटी प्रियंका गांधी का जन्म 12 जनवरी 1972 को दिल्ली में हुआ था. उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी से बी.ए. और एम.ए किया. 18 फरवरी 1997 को प्रियंका गांधी ने बिज़नेमैन रॉबर्ट वाड्रा से शादी की. प्रियंका गांधी वाड्रा और रॉबर्ट वाड्रा के दो बच्चे हैं. 17 साल की बेटी मिराया और 19 साल का बेटा रेहान. राजनीति में हमेशा पीछे से काम करने वाली प्रियंका गांधी ने अब कांग्रेस पार्टी में शामिल होकर ऐक्टिव पोलिटिक्स की शुरुआत कर दी है. हालांकि वो चुनाव लड़ेंगी या नहीं इसको लेकर अभी पुख्ता तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता.

2019 की 19 महिलाएं: चुनावी रण में कांग्रेस का 'ब्रह्मास्त्र' बनकर उतरीं प्रियंका गांधी, मोदी के लिए कितनी बड़ी मुसीबत ?

क्या प्रियंका गांधी से चमत्कार की उम्मीद जायज़ है ? उत्तर प्रदेश की 41 लोकसभा सीटों का ज़िम्मा संभाल रहीं प्रियंका गांधी से कितने बड़े चमत्कार की उम्मीद की जा सकती है? इस पर वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल कहते हैं, “राजनीति संभानाओं का खेल है. इसमें अनंत संभावनाएं हैं और अनंत गड्ढे भी हैं. कांग्रेस ने जो प्रयोग किया है, उसमें वो कहां तक सफल होंगे ये कई चीज़ों पर निर्भर करेगा. इसमें रणनीति से लेकर, दूसरे गठबंधन और विपक्ष क्या करेगा ये सभी फैक्टर काम करेंगे.

ये भी पढ़ें: 2019 की 19 महिलाएं: बीजेपी-कांग्रेस की ‘सत्ता दौड़’ के बीच आकर खड़ी हो गई हैं मायावती, नई दिल्ली पर हैं निगाहें

दिलीप मंडल ने कहा, “मैं इस चीज़ को देखने की कोशिश कर रहा हूं कि नेहरू और इंदिरा गांधी ने अपने ज़माने में जिस तरह सभी समूहों को अपने यहां जगह दी थी और एक बड़ा सामाजिक समीकरण बनाया था, जोकि लगभग पूरे देश की तरह दिखता था. हर जाति को वहां अपना चेहरा नज़र आता था. वैसा कुछ बना पाने में प्रियंका गांधी कामयाब होती हैं या नहीं.” हालांकि दिलीप मंडल ये भी मानते हैं कि ये एक चुनाव की बात नहीं है. ये एक लंबा सफर है, लेकिन उसकी शुरुआत अगर यहां होती है तो प्रियंका गांधी के लिए आगे बढ़ने के कई रास्ते हैं.

परदे के पीछे और अब परदे के आगे 47 साल की प्रियंका गांधी पिछले कई सालों से मां सोनिया गांधी और भाई राहुल गांधी के लिए परदे के पीछे रह कर काम करती रही हैं. इसके अलावा वो कांग्रेस में शामिल हुए बिना ही चुनाव प्रचार भी करती रही हैं. लेकिन कांग्रेस में आधिकारिक तौर पर वो अब शामिल हुई हैं. प्रियंका को पूर्वी यूपी का प्रभारी नियुक्त किया गया है. उनके हिस्से में देश के सबसे बड़े राज्य की 42 अहम सीटों की ज़िम्मेदारी है. पूर्वी यूपी में ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सीट वाराणसी भी आती है. इस लिहाज़ से प्रियंका गांधी कांग्रेस के लिए इस चुनाव में गेम चेंजर साबित हो सकती हैं.

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प्रियंका गांधी के आने से बीजेपी के लिए क्या मुश्किलें खड़ी होंगी? इस पर दिलीप सी मंडल कहते हैं, “2014 के आम चुनाव में कांग्रेस ने यूपी में करीब 7.53 प्रतीशत ही वोट हासिल किए थे. कांग्रेस यूपी में कोई बड़ी पार्टी तो है नहीं. ये उनके लिए एक साफ स्लेट है, जिसपर उन्हें अब सारी इबारत लिखनी है. कांग्रेस के पास अभी 7 एमएलए हैं अब वो इसके नीचे शायद नहीं जाएगी. उनका जो पुराना गठजोड़ था, नेहरु (गांधी) या राजीव (गांधी) के समय तक था और बाद में भी थोड़ा सा रहा, जिसमें आमतौर पर मुस्लिम, ब्राह्मण, दलित उनके पास होते थे और जिस जाति का कैंडिडेट होता था वो अपने जाति को अपने साथ लेकर आता था. एक विनिंग कॉम्बिनेशन उनका बन जाता था.”

दिलीप मंडल ने कहा कि प्रियंका गांधी के सामने चुनौती ये है कि क्या वो फिर से ऐसा ही गठजोड़ बना सकती हैं. उनके मुताबिक, “उनके व्यक्तित्व की एक सीमा है. हालांकि निश्चित रूप से उसका असर होता है, लेकिन वो निर्णायक फैक्टर नहीं होगा.”

दिलीप मंडल ये भी कहते हैं कि प्रियंका गांधी को बड़ी ज़िम्मेदारी सौंपी गई है. उनका होना न सिर्फ उत्तर प्रदेश बल्कि पूरे देश को प्रभावित करेगा. इसलिए प्रियंका गांधी के पास संभानाएं अनंत हैं, लेकिन चुनौतियां भी अनंत हैं.

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