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Insurance Claim: इंश्योरेंस कंपनियों से क्लेम रिजेक्ट होने पर पॉलिसीहोल्डर यहां करें शिकायत

2021-22 में पॉलिसीधारकों की स्वास्थ्य बीमा शिकायतों में लगभग 34 फीसदी की बढ़ोत्तरी दर्ज हुई. 2019-20 में 2,298 और 2020-21 में 2,448 स्वास्थ्य बीमा शिकायतों को हैंडल किया था.

Insurance Claim Process in India: आपने कोई भी बीमा (Insurance) ले रखा है, अगर आप उससे कोई क्लेम लेना चाहते है, और आपका क्लेम रिजेक्ट हो जाता है. तब पॉलिसीहोल्डर (Policyholders) को कंपनी के तमाम चक्कर लगाने पड़ते है. ऐसे में उसे कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है. ऐसे में आप क्या कर सकते है. आपको इस बात की शिकायत कहा करनी होगी. इस खबर में हम आपको ऐसी ही कुछ जानकारियां देने जा रहे हैं.

स्वास्थ्य बीमा शिकायतों में 34 फीसदी इजाफा 
मुंबई में बीमा लोकपाल (Insurance Lokpal) कार्यालय ने कुछ आंकड़े जारी किये है. पिछले वर्ष की तुलना में 2021-22 में पॉलिसीधारकों की स्वास्थ्य बीमा शिकायतों में लगभग 34 फीसदी की बढ़ोत्तरी दर्ज हुई है. इस बीमा केंद्र ने 2019-20 में 2,298 और 2020-21 में 2,448 स्वास्थ्य बीमा शिकायतों को हैंडल किया था, लेकिन 2021-22 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, यह आंकड़ा 2021-22 में बढ़कर 3,276 हो गया है. इस रिपोर्ट में कोविड-19 और गैर-कोविड-19 दावों को अलग-अलग करते नहीं बताया गया है. 

कोरोना के समय आई काफी शिकायतें 
इन शिकायतों में वृद्धि उस समय में हुई, जब मुंबई और देश कोरोना के डेल्टा और ओमिक्रोन वेरिएंट की लहरों का सामना कर रहा था. हाल ही में आयोजित एक मीडिया सम्मेलन में मुंबई और गोवा के बीमा लोकपाल भारतकुमार पंड्या का कहना है कि अधिकांश COVID-19 से जुड़ी शिकायतें अस्पताल में भर्ती के क्लेम के आंशिक सेटलमेंट से जुड़ी हैं. फिर ऐसे मामले हैं जहां क्लेम्स को पूरी तरह से इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि मरीज को अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता ही नहीं है.

क्या है पॉलिसी कॉन्ट्रैक्ट 
पंड्या का कहना है कि, “हम प्रत्येक मामले की व्यक्तिगत रूप से जांच करने के बाद फैसला सुनाते हैं. सामान्य तौर पर, हालांकि, बीमाकर्ता को पॉलिसी के नियमों और शर्तों से गुजरना पड़ता है और ये टैरिफ पॉलिसी दस्तावेजों का हिस्सा नहीं बनते हैं. कुछ मामलों में, सरकार द्वारा निर्धारित रेट कार्ड्स बीमाधारक रोगियों पर लागू नहीं होते थे. अस्पतालों का यह विचार कि सरकार द्वारा लगाया COVID-19 टैरिफ केवल गैर-बीमाधारी रोगियों के लिए था, जिसके परिणामस्वरूप अस्पतालों और बीमाकर्ताओं के बीच गतिरोध पैदा हो गया था. इससे पॉलिसीधारक रोगी मुश्किल में पड़ गए. जीआई काउंसिल द्वारा प्रकाशित रेफरेंस रेट्स भी सांकेतिक थे और बीमाकर्ताओं के लिए इन्हें फॉलो करना अनिवार्य नहीं था.

पॉलिसी की क्या है शर्तें 
पॉलिसीधारकों और बीमाकर्ताओं के बीच विवादों का वेटिंग पीरिडय होता है. अधिकांश स्वास्थ्य नीतियां पहले पॉलिसी वर्ष में मोतियाबिंद या हर्निया के इलाज पर किए खर्च को कवर नहीं करती हैं. मुंबई केंद्र की रिपोर्ट स्वास्थ्य बीमा अनुबंधों में रीजनेबिलिटी क्लॉज़ को चिह्नित करती है, जिसके कारण विवादों के प्रमुख कारण के रूप में वापस मिलने वाली राशि (reimbursement) कम हो जाती है. रिपोर्ट के अनुसार अस्पताल में इलाज के संबंध में कस्टमरी और रीजनेबिलिटी क्लॉज़ के बारे में जिक्र अनुचित और काउंटर-इन्ट्यूटिव दोनों है. बीमाकर्ता अस्पताल के साथ ‘ओवर-चार्जिंग’ का मुद्दा क्यों नहीं उठाएगा और वह बीमाधारक को भुगतान क्यों करेगा?

यहां करे अपनी शिकायत
आपकी बीमा कंपनी द्वारा बीमा क्लेम को खारिज किया जाना, आखिरी फैसला नहीं हो सकता है. आप अपने शहर में IRDAI और बीमा लोकपाल कार्यालयों में इसकी शिकायत दर्ज करा सकते हैं. लोकपाल कार्यालय 30 लाख रुपये तक के दावों वाली शिकायतों को हैंडल करते हैं. शिकायत के बाद, बीमा लोकपाल दोनों पक्षों के तर्कों की जांच करने के बाद आदेश पारित करता है. यदि आप इस फैसले से संतुष्ट नहीं हैं, तो आप उपभोक्ता अदालतों का दरवाजा खटखटाने के लिए स्वतंत्र हैं. यह आदेश बीमा कंपनियों के लिए बाध्यकारी है.

 

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