'ग़रीब नवाज़' की दरगाह के लिए आखिर कोई क्यों तोड़ेगा मंदिर ?
"शाह अस्त हुसैन, बादशाह अस्त हुसैन
शाह हैं हुसैन, बादशाह हैं हुसैन
दीन अस्त हुसैन, दीनपनाह अस्त हुसैन
धर्म हैं हुसैन, धर्मरक्षक हैं हुसैन
सरदाद न दाद दस्त दर दस्त ए यज़ीद
हक़्क़ाक़-ए बिना-ए ला इलाह अस्त हुसैन"
तकरीबन आठ सौ साल पहले 12 वीं सदी में ख़्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती ने हुसैन इब्न अली के पाशस्त में यह कविता लिखी थी, जो दुनियाभर में मशहूर हुई. गरीब नवाज़ कहलाने वाले इस सूफ़ी संत ने साल 1236 में 93 बरस की उम्र में अपना शारीरिक चोला छोड़ दिया. जहां उन्होंने आखिरी सांस ली थी, उसी स्थान पर उनकी मज़ार बना दी गई, जिसे अजमेर शरीफ के नाम से पूरी दुनिया में पहचाना जाता है. यानी उस दरगाह का इतिहास तकरीबन आठ सौ साल पुराना है, लेकिन मंदिर-मस्जिद के विवाद ने अब इस पवित्र दरगाह को भी अपने निशाने पर ले लिया है.
देश की मस्जिदों और दरगाहों में मंदिर होने का दावा करने की काशी से शुरु हुई ये दौड़ कुतुबमीनार और ताजमहल होते हुए अब अजमेर शरीफ की दरगाह तक जा पहुंची है. सवाल उठता है कि ये सब दावे एक साथ, एक ही वक्त पर क्यों किये जा रहे हैं. ये सिलसिला कहीं जाकर रुकेगा भी या फिर ऐसे दावों के जरिये नफ़रत की आग और फैलती जायेगी? माना कि काशी और मथुरा का विवाद काफी पुराना है और दोनों मामले न्यायालय में विचाराधीन हैं, लेकिन जिस तरह से एक के बाद एक नए दावे किए जा रहे हैं, उनका अंजाम आखिर क्या होगा.
अजमेर में स्थित ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर शीश नवाने दुनिया भर से मुस्लिम आते हैं, लेकिन इनमें बड़ी संख्या हिंदुओं की भी है, जिन्हें गरीब नवाज पर ऐतबार है कि उस दर से उनकी मुराद जरुर पूरी होगी. उस दरगाह से झोलियां भरती भी हैं, जिनमें कई फिल्मी सितारे भी शामिल हैं और उनमें भी अधिकांश हिंदू हैं. ये व्यक्तिगत आस्था से जुड़ा मुद्दा है, जिस पर किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिये.
एक हिंदूवादी संगठन ने इस दरगाह में मंदिर होने का दावा ठोका है. महाराणा प्रताप सेना (Mahrana Pratap Sena) का कहना है कि हजरत ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह में भी 'शिव मंदिर' (Shiva Mandir) है. इस संगठन ने राजस्थान के मुख्यमंत्री और केंद्र सरकार को पत्र लिखकर जांच की मांग है. महाराणा प्रताप सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजवर्धन सिंह परमार ने दावा किया है कि अजमेर में ख्वाजा की दरगाह वास्तव में एक शिव मंदिर था, लेकिन बदलकर दरगाह बना दिया गया.
परमार के मुताबिक सरकार को भेजे पत्र में हमने लिखा है कि हजरत ख्वाजा गरीब नवाज दरगाह हमारा प्राचीन हिंदू मंदिर है. दरगाह की दीवारों और खिड़कियों में स्वास्तिक के चिह्न मिलना क्या साबित करता है? सेना की मांग है कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) से सर्वे करवाया जाए. सेना ने पत्र राजस्थान सरकार के मुख्यमंत्री सहित राष्ट्रपति, राज्यपाल, केंद्र सरकार को भी भेजा है.
परमार ने कहा है कि अगर एक सप्ताह में जांच शुरू नहीं हुई तो केंद्रीय मंत्रियों से मुलाकात करेंगे. मंत्रियों से मुलाकात में भी कोई समाधान नहीं निकला तो बड़ा जन आंदोलन किया जाएगा. महाराणा प्रताप सेना के 2000 से अधिक कार्यकर्ता अजमेर कूच करेंगे और आंदोलन चलाएंगे. जरुरत पड़ने पर न्यायालय में भी जा सकते हैं.
अजमेर की दरगाह से जुड़े इस नए दावे के बाद अजमेर जिला प्रशासन अलर्ट पर है. दरगाह की सुरक्षा काफी बढ़ा दी गई है और आला अधिकारी भी दरगाह का दौरा कर रहे हैं. दरगाह के आसपास बड़ी संख्या में पुलिसबल को तैनात किया गया है. मतलब कि महज एक दावे ने पूरे शहर की फ़िजा में डर और नफरत का जहर घोल दिया है. वह भी एक ऐसे सूफी को लेकर जिनके शिष्यों में क़ुत्बुद्दीन बख्तियार काकी, बाबा फ़रीद, निज़ामुद्दीन औलिया, हज़रत अह्मद अलाउद्दीन साबिर कलियारी, अमीर खुस्रो, नसीरुद्दीन चिराग दहलवी, बन्दे नवाज़, अश्रफ़ जहांगीर सिम्नानी और अता हुसैन फ़ानी जैसे पीर फ़क़ीर शुमार थे.
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)