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धार्मिक नफ़रत ख़त्म करने के लिए आखिर संघ प्रमुख को ही क्यों आना पड़ा मैदान में?

काशी की ज्ञानवापी मस्जिद के नीचे शिवलिंग होने के तमाम दावों-झगड़ों के बीच आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कट्टरपंथियों को एक बड़ी नसीहत देते हुए कहा है कि "हमें रोज एक मस्जिद में शिवलिंग को क्यों देखना है?" साल 2009 में संघ की कमान संभालने वाले मोहन मधुकर भागवत वैसे तो पेशे से पशु चिकित्सक रहे हैं लेकिन उनके इस बयान की चौतरफा तारीफ़ इसलिये भी की जानी चाहिए कि उन्होंने कट्टरपंथ के रास्ते पर चल रहे लोगों में इंसानियत का इंजेक्शन लगाने का बड़ा हौंसला दिखाया है.हालांकि ये देखना होगा कि आने वाले दिनों में उनके इस भाईचारे वाले इंजेक्शन का कितना असर होता है? लेकिन पुराने अनुभव बताते हैं कि संघ न सिर्फ बीजेपी का 'भाग्यविधाता' है बल्कि सारे हिंदू संगठनों की जननी भी वही है.इसलिये ऐसा हो नही सकता कि भगवा ध्वज को अति सम्मान देने वाले और उसके प्रति अपनी अगाध आस्था,श्रद्धा प्रकट करने वाले लोग संघ प्रमुख की कही इतनी महत्वपूर्ण बात को किसी गली-मुहल्ले के नेता की तरह हवा में उड़ा देने की जुर्रत कर सकें.

संघ प्रमुख भागवत ने गुरुवार को नागपुर में जो कुछ कहा है,वह इसलिए महत्वपूर्ण है कि पिछले कुछ महीनों में हुई घटनाओं का बारीकी से आकलन करने के बाद उन्हें ये अहसास हो गया कि चंद कट्टरपंथी तत्व देश में नफरत का जो माहौल बना रहे हैं और जिस दिशा में वे इसे आगे ले जा रहे हैं,वह न तो भारत के लिए,न मोदी सरकार के लिए और न ही सांस्कृतिक राष्ट्रवाद व समरसता का अलख जगाने वाले आरएसएस के लिए किसी भी दृष्टि से उचित है.इसलिये उन्हें इस बार अपनी बात सांकेतिक भाषा में नहीं बल्कि सीधे-सपाट लहजे में समझानी पड़ी कि नफ़रत की इस खाई को खोदना अब बंद कीजिये.

गौरतलब है कि काशी की ज्ञानवापी मस्जिद विवाद के बहाने देश के विभिन्न हिस्सों की मस्जिदों या दरगाह के नीचे शिवालय होने के कथित दावे किए जा रहे हैं,जो हिंदू-मुसलमानों के बीच नफ़रत की खाई को और गहरा कर रहे हैं.इसीलिये भागवत को जोर देकर ये कहना और समझाना पड़ा कि "ज्ञानवापी का एक इतिहास है जिसे हम बदल नहीं सकते. फिर झगड़ा क्यों बढ़ाना. वो इतिहास हमने नहीं बनाया है. न आज के अपने आप को हिंदू कहलाने वालों ने बनाया, न आज के मुसलमानों ने बनाया. उस समय घटा. इस्लाम बाहर से आया, आक्रामकों के हाथों आया. उस आक्रमण में भारत की स्वतंत्रता चाहने वाले व्यक्तियों का मनोबल तोड़ने के लिए देवस्थान तोड़े गए, हजारों हैं. ये मामले उठते हैं.''

काशी, मथुरा के बाद ताजमहल,कुतुब मीनार और अजमेर शरीफ की दरगाह से लेकर उज्जैन की बगैर नींव वाली मस्जिद की खुदाई कराने और वहां मंदिर होने के दावे करने वालों को भी संघ प्रमुख भागवत ने खरी-खोटी सुनाते हुए नसीहत दी है. उन्होंने साफ शब्दों में कहा है कि ''रोज एक मामला निकालना ठीक नहीं है. ज्ञानवापी के बारे में श्रद्धाएं हैं, परंपराएं हैं. ठीक है...परंतु हर मस्जिद में शिवलिंग क्यों देखना? वो भी एक पूजा है...ठीक है बाहर आई है. लेकिन जिन्होंने इसे अपनाई है, वो मुसलमान बाहर से संबंध नहीं रखते हैं. हमारे यहां किसी पूजा का विरोध नहीं है. सबके प्रति पवित्रता की भावना है.'' 

मुसलमानों के सबसे प्रभावशाली धार्मिक नेता और जमीयत -उलेमा -ए- हिन्द के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने हाल ही में देवबंद की अपनी तकरीर में मोदी सरकार से शिकवा करते हुए कहा था कि "हालत ये हो गई है कि एक आम मुसलमान का रास्ते पर चलना तक दुश्वार हो गया है और उसे हिक़ारत की नजरों से देखा जाने लगा है." भागवत ने इशारों में इसका जवाब देते हुए कहा कि " कोई भी हिंदू,मुसलमानों के विरूद्ध  नहीं सोचता है. आज के मुसलमानों के पूर्वज भी हिंदू थे."

उन्होंने दोनों पक्षों को आपस मे उलझने और समाज का साम्प्रदायिक माहौल खराब न करने की सलाह देते हुए ये भी कहा है  कि, "आपस में मिल बैठ कर सहमति से कोई रास्ता निकालिए. लेकिन हर बार नहीं निकल सकता. इसमें कोर्ट में जाते हैं. जाते हैं तो फिर कोर्ट जो निर्णय देगा उसको मानना चाहिए. अपनी संविधान सम्मत न्याय व्यवस्था को सर्वश्रेष्ठ मानकर, उसके फ़ैसले मानने चाहिए, उनके निर्णयों पर प्रश्नचिह्न नहीं लगाना चाहिए."

नागपुर में संघ शिक्षा वर्ग के तृतीय वर्ष  के समापन समारोह के दौरान सर संघ चालक भागवत ने एक और बड़ी घोषणा की है,जिसके बेहद गहरे मायने हैं. उन्होंने कहा, "एक राम जन्मभूमि का आंदोलन था जिसमें हम अपनी प्रकृति के विरुद्ध किसी ऐतिहासिक कारण से उस समय सम्मिलित हुए, हमने उस काम को पूरा किया. अब हमको कोई आंदोलन करना नहीं है. लेकिन अब भविष्य में संघ किसी मंदिर आंदोलन में नहीं शामिल होने वाला है."

भागवत के इस बयान को  तमाम हिंदूवादी संगठनों के लिए एक बड़ा झटका समझा जाना चाहिए क्योंकि वे अब तक यही मानते रहे हैं कि उनके पीछे संघ की सबसे बड़ी ताकत है.लेकिन भागवत ने अब ये बयान देकर देश भर में फैले संघ के लाखों स्वयंसेवकों को ये साफ संदेश दे डाला है कि ऐसे किसी भी मंदिर-मस्जिद आंदोलन के पचड़े में पड़ने की कोई जरुरत नहीं है,उससे स्वयं को दूर रखें.सचाई भी ये है है कि संघ के बगैर न एक राजनीतिक संगठन का कोई अस्तित्व है और न ही उसके बैनर तले अपनी रोटियां सेंकने वाले किसी और संगठन का.

संघ प्रमुख के दिए इस संदेश की इसलिये भी प्रशंसा होना चाहिए कि पिछले कई दशकों से जो मुस्लिम समुदाय आरएसएस को अपना दुश्मन मानता आया है और उससे जुड़े सदस्यों को नफ़रत की निगाह से देखता आया है,भागवत ने उन्हीं आंखों में प्रेम,मोहब्बत और भाईचारे का सुरमा लगाने की एक ईमानदार कोशिश की है.

विपक्षी दल अक्सर ये आरोप लगाते हैं कि बीजेपी की सरकारों का 'रिमोट कंट्रोल' तो संघ के हाथ में होता है और जो संघ चाहता है, वही उनकी सरकारें करती हैं.लेकिन राजेंद्र सिंह 'रज्जू भैया' और कुप्प सीतारमैया सुदर्शन यानी केएस सुदर्शन से लेकर मोहन भागवत ने हमेशा इन आरोपों को गलत ठहराते हुए यही कहा है कि " संघ से प्रशिक्षित होकर सक्रिय राजनीति में जाकर उसके माध्यम से देश-समाज की सेवा करने वाले अपने मित्रों को हम सिर्फ सलाह देते हैं,किसी शहंशाह की तरह अपना फरमान नहीं सुनाते." उम्मीद है कि संघ प्रमुख की इस सलाह को कट्टरपंथी विचारधारा रखने वाले चंद  बीजेपी नेताओं समेत तमाम हिंदूवादी संगठनों के लोग भी याद रखेंगे शायद!

(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)

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