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कर्ज़ के जाल में फंसे लोग आखिर क्यों लगा रहे हैं मौत को गले?

भूल जाइये मंदिर-मस्जिद से जुड़े इन सियासी मसलों को और एक नजर अपने उस परिवार पर डालिये कि वहां आपसी रिश्तों में कोई गड़बड़ तो नहीं है. वो भी ऐसी कि आप अपने सबसे करीबी दोस्त को बताये बगैर ही ऐसा कदम उठा लें, जिसे शहीद भगत सिंह ने आत्महत्या को एक घृणित अपराध बताते हुए कहा था कि ये सबसे बड़ी कायरता है. इसलिये कि ऐसी घटनाएं हमारे देश में लगातार बढ़ती जा रही हैं और उसकी वजह सिर्फ सामाजिक नहीं बल्कि आर्थिक तंगी भी है. लिहाजा, कुदरत ने अगर आपको उस मुकाम पर पहुंचा दिया है, तो फिर उस दोस्ती का ऐसा फ़र्ज़ अदा कीजिये कि फांसी लगाकर दुनिया से विदा हो जाने वाला वही शख्स आपके चरणों में गिरकर रोये कि,"ऐ दोस्त,तूने मुझे ही नहीं, मेरे परिवार को भी दूसरी जिंदगी दे डाली."

आपने भले ही उसे देखा न हो और उसके लिए देश-दुनिया में बनाई गई झूठी इमेज से भी शायद आप नफरत करते हों. लेकिन उसके कहे सच को आखिर किस रबड़ से हम मिटा सकते हैं. उसी ओशो रजनीश ने बरसों पहले कहा था कि, "जब इंसान frustration में होता है तो वो destroy करना चाहता है. और तब केवल दो संभावनाएं होती हैं —या तो किसी और को मारो या खुद को. किसी और को मारना खतरनाक है , इसलिए लोग खुद को मारने का सोचने लगते हैं. लेकिन ये भी तो एक murder है !! तो क्यों ना ज़िन्दगी को ख़तम करने की बजाये उसे बदल दें !!!

 ये एक ऎसा संवेदनशील मसला है, जिसके बारे में हर लेखक को अपने समाज को जागरूक करने के साथ ही ये भी बताना चाहिए कि हर खुदकुशी के पीछे सिर्फ परिवार के झगड़े ही नही होते, बल्कि उसकी  बड़ी वजह है, बेरोजगारी, कर्ज और दिवालियापन के चलते सड़क पर आ गये लोग.ऐसे ही लोग हर साल बड़ी संख्या में आत्महत्या कर रहे हैं, जिसे लेकर इस देश की सरकार को न कोई फिक्र है और न ही वो ये लोगों को इससे बचाने का कोई पुख्ता इंतजाम ही कर पा रही है.

आप हैरान हो जाएंगे ये जानकर कि हमारे देश में क़र्ज़ के चलते हर साल कितने लोग आत्महत्या करने पर मजबूर हो जाते हैं लेकिन फिर भी हम सियासी जुमलेबाजी में फंसकर ये यकीन कर लेते हैं कि मेरे देश से बड़ा कोई महान नहीं है और इससे ज्यादा और क्या अच्छे दिन हमें चाहिए. भारत सरकार की ही एक एजेंसी है, नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो यानी NCRB जो पूरे देश में होने वाले अपराधों व खुदकशी का रिकॉर्ड रखती है और हर साल सरकार को अपनी रिपोर्ट देती है कि किस राज्य में अपराध बढ़ रहे हैं और अचानक आत्महत्याओं में इतना इज़ाफ़ा क्यों हो रहा है .उसी एजेंसी के दिये गए आंकड़ों के मुताबिक, साल 2020 में देश में 5 हजार 213 लोगों ने कर्ज से तंग आकर आत्महत्या कर ली थी. यानी, हर दिन 14 सुसाइड. इससे पहले 2019 में 5 हजार 908 लोगों ने सुसाइड की थी. लेकिन उसमें क़र्ज़ बड़ी वजह नहीं था क्योंकि तब तक कोरोना की महामारी देश में नहीं आई थी.आधिकारिक रूप से हमारे देश मे 24 मार्च 2020 को ही कोरोना को एक महामारी घोषित किया गया था.

राज्यसभा में सरकार ने बताया था कि तीन साल में बेरोजगारी से तंग आकर भी 9 हजार से ज्यादा लोगों ने आत्महत्या कर ली.पिछले तीन साल के आंकड़े हम सबके लिए चौंकाने वाले हैं. राष्ट्रीय अपराध क्राइम ब्यूरो के आंकड़ों के आधार पर ही  एक सवाल के जवाब में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राज्यसभा में बताया था कि साल 2018, 2019 और 2020 के दौरान 25,000 से ज्यादा लोगों ने आत्महत्या की है. आत्महत्या के पीछे दिवालियापन, बेरोजगारी और कर्ज जैसे बड़े कारण सामने आए हैं. इन तीन वर्षों में सबसे ज्यादा खुदकुशी की घटनाएं 2020 में हुई हैं. यानी, ये वो दौर था जब कोरोना देश को अपनी चपेट में ले चुका था और लोगों को अपने परिवार के लिए दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करने के भी लाले पड़ गए थे.

भारत में कोरोना की दस्तक देने से पहले साल 2019 में अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्था 'ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज' की ओर से जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक भारत में हर साल 2लाख 30 हजार लोग आत्महत्या कर रहे हैं. यानी,हर चार मिनट में देश में एक व्यक्ति अपनी जान ले रहा है. आंकड़े बताते हैं कि भारत में आत्महत्या की दर वैसे भी ग्लोबल एवरेज से 60 प्रतिशत से भी ज्यादा है. ऐसे में हालात तो पहले ही मुश्किल थे, लेकिन कोरोना के बाद बीमारी के जिस भय और जिन आर्थिक विषमताओं का सामना लोगों को करना पड़ा है, उसने कई लोगों को हाशिए पर लाकर खड़ा कर दिया है. सर्वे के नतीजों के अनुसार कोरोना के बाद से तक़रीबन 65 प्रतिशत लोगों ने खुद को मारने के बारे में सोचा या ऐसे प्रयास किए. साथ ही तकरीबन 71 प्रतिशत लोगों में कोरोना के बाद मरने की इच्छा बढ़ी हुई पाई गई है.

इसलिये, सोचने वाली बात ये है कि कोरोना फिर से दस्तक दे रहा है. बेशक, उसका रुप पहले की तरह उतना खौफनाक नहीं है लेकिन अगर तब भी कोई पुराना-प्यारा दोस्त मदद की गुहार लगाए, तो उसका फोन कभी काटना मत, वरना जिंदगी में कमाए सारे  पुण्य यहीं के यहीं धर रह जाएंगे. ऐसे वक्त पर जिंदगी में श्रीकृष्ण की भूमिका निभाते हुए सुदामा के लाये एक मुट्ठी कच्चे चावलों को ग्रहण करके आप न जाने कितनी जिंदगियां बचाने के काबिल बन जाएंगे.

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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