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अफगानिस्तान में आख़िर क्यों जीतता जा रहा है तालिबान ?

इस्लाम के विद्यार्थी कहे जाने वाले तालिबानी लड़ाकों ने जिस तेजी के साथ अफगानिस्तान के दो तिहाई हिस्से पर कब्ज़ा किया है,उससे दुनिया के दर्ज़नों मुल्क फिक्रमंद हो उठे हैं. हालांकि भारत,अमेरिका और चीन समेत 12 देशों ने एलान कर दिया है कि वे बंदूक वाली सरकार को कोई समर्थन नहीं देंगे.लेकिन इस ऐलान के बावजूद लड़ाकों के हौसले पस्त नहीं हुए हैं और हेरात के बाद अब उन्होंने मुल्क के दूसरे सबसे बड़े शहर कंधार पर भी कब्ज़ा कर लिया है.

ये वही कंधार है जहां 22 साल पहले 24 दिसबंर 1999 को इन्हीं तालिबानियों ने एयर इंडिया के विमान का अपहरण करके 180 यात्रियों को सात दिन तक वहां अपने कब्जे में रखा था. अब तालिबान राजधानी काबुल पर कब्जे के लिए आगे बढ़ रहा है और वो महज 90 किलोमीटर की दूरी पर हैं.

संयुक्त राष्ट्र ने कुछ दिन पहले ही ये बताया है कि लगभग 1.8 करोड़ लोगों यानी आधी अफ़ग़ान आबादी को मदद की ज़रूरत है.अगर तालिबान ने काबुल एयरपोर्ट पर कब्ज़ा कर लिया,तो उन तक मदद पहुंचाने का रास्ता ही बंद हो जाएगा.तालिबान के आगे जिस तरह से अफगान आर्मी सरेंडर कर रही है,उससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि वहां हालात कितने खौफनाक हैं.

इस बीच तुर्की ने कहा है कि वो काबुल एयरपोर्ट को चलाना चाहता है और इसकी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी ख़ुद लेना चाहता है. हालांकि तालिबान ने तुर्की को धमकी दे रखी है कि वो काबुल एयरपोर्ट पर अपनी सेना ना भेजे. तुर्की के रक्षा मंत्री ने गुरुवार को कहा था कि काबुल एयरपोर्ट के संचालन को लेकर तुर्की तालिबान से बातचीत कर रहा है. टर्किश रक्षा मंत्री के मुताबिक अगर काबुल एयरपोर्ट बंद हुआ तो अफ़ग़ानिस्तान में कोई भी राजनयिक मिशन काम नहीं कर पाएगा.इससे पहले सीएनएन तुर्क को दिए इंटरव्यू में तुर्की के राष्ट्रपति अर्दोआन ने कहा था कि ''अफ़ग़ानिस्तान में बढ़ती हिंसा को लेकर वे तालिबान से मिल सकते हैं. हमारी संबंधित एजेंसियां तालिबान के साथ बैठक को लेकर काम कर रही हैं. मैं भी तालिबान के किसी एक नेता से मिल सकता हूँ.''

दरअसल,अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रपति भवन समेत तमाम दूतावासों के नज़दीक स्थित काबुल हवाई अड्डा रणनीतिक रूप से काफ़ी अहम है. यह एयरपोर्ट अफ़ग़ानिस्तान को दुनिया से जोड़ने का काम करता है. काबुल एयरपोर्ट इस युद्धग्रस्त मुल्क तक मानवीय सहायता पहुँचाने के लिए एक सुरक्षित रास्ता देता है. इस एयरपोर्ट पर तालिबान लड़ाकों का कब्ज़ा होते ही अफ़ग़ानिस्तान एक हद तक दुनिया से कट जाएगा. समाचार एजेंसी एएफ़पी के मुताबिक़, तुर्की के एक राजनयिक सूत्र ने कहा है कि 'हमारा उद्देश्य ये है कि अफ़ग़ानिस्तान बाहरी दुनिया के लिए बंद न हो जाए और ये अलग-थलग न पड़ जाए.'

वैसे पिछले छह साल से तुर्की काबुल एयरपोर्ट की सुरक्षा और इसके ऑपरेशन से जुड़ा रहा है. लगभग पांच सौ तुर्क सैनिक अफ़ग़ानिस्तान में तैनात हैं. हालांकि उनकी भूमिका लड़ाई वाली गतिविधियों से नहीं जुड़ी है. वे नेटो मिशन के तहत अफ़ग़ान सुरक्षा बलों को ट्रेनिंग भी देते हैं.

कंधार पर कब्जे को तालिबान की जीत के रूप में देखा जा रहा है क्योंकि इसकी सामरिक और आर्थिक अहमियत सबसे ज़्यादा है और इसीलिये कहा जाता है कि जिसने भी कंधार पर कब्ज़ा कर लिया, वो पूरे अफ़ग़ानिस्तान पर नियंत्रण कर लेता है.अफ़ग़ानिस्तान के सबसे बड़े पश्तून समुदाय का ये गढ़ है और यही तालिबान का जन्मस्थान भी है. तालिबान के संस्थापक मौलाना मुल्ला उमर भी कंधार के ही थे. अफ़ग़ानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करज़ई का जन्मस्थान भी यही है.इसे सामरिक रूप से इसलिए भी अहम माना जाता हैं क्योंकि यहाँ अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा है.ये मुल्क के मुख्य व्यापारिक केंद्रों में से भी एक है.

जानकारों का कहना है कि कंधार न केवल उग्रवाद के लिए वैचारिक रूप से अहम है, बल्कि ये उनके पसंद का युद्धक्षेत्र भी है. कंधार की भौगोलिक स्थिति चरमपंथियों को पनाह देती है. यहाँ चट्टानें हैं, रेगिस्तानी रास्ते हैं और बगीचे और खेत भी हैं, जो चरमपंथियों की शरणस्थली माने जाते हैं.

संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि कंधार में पश्तून प्रमुख जातीय समूहों में शामिल हैं और क़रीब 14 लाख की आबादी वाले इस प्रांत में लगभग 98% आबादी पश्तो बोलती है.माना जाता है कि कंधार शहर की स्थापना सिकंदर ने चौथी शताब्दी में की थी, हालाँकि इसके आसपास के क्षेत्र में लगभग सात हजार साल पुरानी मानव बस्तियों के अवशेष हैं.जब मुग़लों ने भारत पर क़ब्ज़ा किया,तब  उनके लिए ये अहम था कि वे कंधार पर अपनी पकड़ बनाए रखें क्योंकि कंधार ही भारत को परसिया (ईरान) से जोड़ता था.

अमेरिका के हमले के बाद जब तालिबान को सत्ता से हटा दिया गया, तो संयुक्त राष्ट्र, भारत समेत कई देशों और अन्य सरकारी एजेंसियों ने कंधार के कई हिस्सों में पुनर्निर्माण परियोजनाएँ चलाईं. इस बीच तालिबान के कब्ज़े वाली जगहों में मानवाधिकारों और महिला अधिकारों के उल्लंघन की भी कई ख़बरें हैं.औरतों के लिए फ़रमान जारी किया गया है कि घर से बाहर तभी निकलें जब कोई पुरुष उनके साथ हो. साथ ही ये खबरें भी हैं कि 15 साल से अधिक उम्र की लड़कियों की शादी जबरन तालिबान के लड़ाकों से करवाई जा रही है.

हालांकि तालिबान ने इस तरह के आरोपों से इनकार किया है. अफ़ग़ान संसद की सदस्य फ़रज़ाना कोचाई कहती हैं, "अगर तालिबान फिर से सत्ता में आए तो ये औरतों के ख़ात्मे की तरह होगा." यानी अफगानिस्तान एक बार फिर बरसों पुराने कबीलायी युग की तरफ बढ़ रहा है.

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