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धार्मिक आजादी पर अमेरिकी रिपोर्ट से आख़िर क्यों इतना ख़फ़ा हुआ है भारत ?

कितना अजीब संयोग है कि गुरुवार को ही संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा था कि हर मस्जिद में शिवलिंग क्यों देखना चाहिए और उसी दिन अमेरिका ने धार्मिक आजादी को लेकर जारी की गई अपनी रिपोर्ट में भारत को कटघरे में खड़ा किया है. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत में अल्पसंख्यकों और धार्मिक स्थलों पर हमले बढ़ रहे हैं. हालांकि भारत ने इस रिपोर्ट में लगाये गए आरोपों पर कड़ा एतराज जताया है और कहा है कि यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि अंतरराष्ट्रीय संबंधों में वोटबैंक की राजनीति हो रही है. इसलिये बड़ा सवाल ये है कि इस रिपोर्ट के बहाने दोनों देशों के बीच जो खटास उभरी है, वह आने वाले दिनों में भारत-अमेरिका के रिश्तों में क्या असर डालती है?

दरअसल, अमेरिका हर साल दुनिया के अलग-अलग देशों में धार्मिक आज़ादी का आकलन करते हुए एक रिपोर्ट जारी करता है. अमेरिकी विदेश मंत्रालय की साल 2021 की ये रिपोर्ट अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने गुरुवार को जारी की थी. इस मौके पर एंटनी ब्लिंकन ने मीडिया से बातचीत में कहा था कि हाल के दिनों में भारत में धार्मिक असहिष्णुता और पूजा-स्थल को लेकर लोगों पर हुए हमले बढ़े हैं.

भारत ने इस रिपोर्ट में लगाए आरोपों और अमेरिकी विदेश मंत्री के बयान को सिरे से खारिज कर दिया है. विदेश मंत्रालय ने एंटनी ब्लिंकन द्वारा भारत में लोगों के साथ-साथ धार्मिक स्थलों पर हमले बढ़ने संबंधी बयान को अस्वीकार करते हुए शुक्रवार को कहा कि भारत धार्मिक स्वतंत्रता और मानवाधिकारों को महत्व देता है. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि अंतरराष्ट्रीय संबंधों में वोट बैंक की राजनीति की जा रही है. वरिष्ठ अमेरिकी अधिकारियों की टिप्पणियों को लेकर सरकार ने यह भी कहा कि रिपोर्ट का मूल्यांकन पक्षपातपूर्ण विचारों और प्रेरित इनपुट पर आधारित है.

धार्मिक स्वतंत्रता को लेकर भारत की स्थिति स्पष्ट करते हुए विदेश मंत्रालय ने ये भी कहा है कि हमारा देश बहुलतावादी समाज के रूप में स्वतंत्रता और मानवाधिकारों को महत्व देता है. अमेरिका के साथ चर्चाओं में हमने नस्लीय, जातीय रूप से प्रेरित हमलों, अपराधों जैसे मुद्दों को नियमित रूप से उजागर किया है. उन्होंने कहा कि अमेरिका के साथ हमारी चर्चाओं में हमने वहां ऐसे मुद्दों पर चिंताओं को रेखांकित किया है जिसमें जातीय एवं नस्लीय प्रेरित हमले, घृणा अपराध और बंदूक आधारित हिंसा शामिल है.

इस रिपोर्ट को अमेरिकी विदेश मंत्रालय के इंटरनेशनल रिलिजियस फ़्रीडम विभाग के राजदूत रशद हुसैन के नेतृत्व में तैयार किया गया है, लेकिन
ये आंकड़े अमेरिकी अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग (यूएससीआईआरएफ़) की जारी रिपोर्ट से अलग है. अप्रैल महीने में इसी आयोग ने विदेश मंत्रालय से सिफ़ारिश की थी वह भारत को 'विशेष चिंता वाले' देशों की सूची में डाल दे. आयोग की ओर से बीते तीन सालों से यह सिफ़ारिश की जा रही है, लेकिन भारत को अभी तक इस सूची में नहीं डाला गया है.

रशद हुसैन ने गुरुवार को कहा, "जैसा कि विदेश मंत्री ने बताया कि भारत में लोगों पर और उपासना स्थलों पर हमले बढ़े हैं तो इस संदर्भ में एक तथ्य ये भी है कि कुछ अधिकारी या तो ऐसे मामलों पर गौर नहीं करते या फिर इसका समर्थन करते हैं." यानी उन्होंने सरकार के अलावा सीधे तौर पर भारत की नौकरशाही को भी कटघरे में खड़ा किया है कि वह ऐसे हमलावरों का साथ देती है या फिर उन्हें बचाती है.

धार्मिक स्वतंत्रता पर प्रतिबंध वाले देशों का उल्लेख करते हुए ब्लिंकन ने सऊदी अरब के साथ-साथ चीन, पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान का नाम लिया. उन्होंने कहा, "चीन में मुस्लिम वीगर समुदाय और दूसरे अल्पसंख्यक समुदायों का दमन जारी है." वहीं पाकिस्तान का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा कि साल 2021 में कम से कम 16 लोगों पर ईशनिंदा का मामला दर्ज हुआ और कोर्ट ने मौत की सज़ा सुनायी.

भारत का ज़िक्र करते हुए अमेरिकी विदेश मंत्रालय की रिपोर्ट में कहा गया है कि पुलिस ने ऐसे ग़ैर-हिंदुओं को गिरफ़्तार किया, जिन्होंने मीडिया या फिर सोशल मीडिया पर कुछ ऐसा लिखा, जिसे हिंदुओं और हिंदुत्व के लिए 'अपमानजनक' बताया गया. इस रिपोर्ट में त्रिपुरा, राजस्थान और जम्मू-कश्मीर में मुस्लिमों के साथ हुई लिंचिंग की घटनाओं का भी ज़िक्र किया गया है.

जाहिर है कि ये रिपोर्ट दुनिया के मंच पर भारत की इमेज पर एक बदनुमा दाग लगाती है, जिसके दूरगामी परिणाम भी देखने को मिल सकते हैं. इस रिपोर्ट के बाद कुछ बड़ी विदेशी कंपनियों में डर का माहौल बन सकता है कि जिस देश में धार्मिक आजादी का इतना बुरा हाल है, वहां निवेश करने से बचना चाहिए. अपनी वैश्विक साख को कायम करने के मकसद से ही भारत ने इतनी तीखी प्रतिक्रिया जाहिर की है. 

(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)

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