Opinion: निर्मला सीतारमण के बजट में क्यों आर्थिक संकट से जूझ रहे मणिपुर की अनदेखी?

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की तरफ से प्रस्तुत केंद्रीय बजट 2025-26 हिंसा प्रभावित मणिपुर के लिए निराशाजनक है. बजट में राज्य के अभूतपूर्व आर्थिक पतन को रोकने और मानवीय संकट के समाधन के साथ दीर्घकालिक शांति और विकास की नींव रखने के लिए तत्काल और पर्याप्त हस्तक्षेप किया जाना चाहिए था.
वित्तीय सहायता और समर्थन में वृद्धि के साथ-साथ एक व्यापक राहत और पुनर्प्राप्ति योजना की तत्काल आवश्यकता थी. मणिपुर के लोगों को एक विशेष आर्थिक पैकेज की उम्मीद थी. इसमें राज्य में मानवीय और आर्थिक संकट को दूर करने के लिए बहुत कम है.
लंबे समय तक चली सांप्रदायिक हिंसा के कारण जान-माल का भारी नुकसान हुआ है. बड़े पैमाने पर जबरन विस्थापन हुआ और आर्थिक मंदी आयी है. मणिपुर में आर्थिक गतिविधियों में भारी गिरावट आयी है. इसके अलावा बढ़ती मुद्रास्फीति, बढ़ती बेरोजगारी और घटती आय ने परिवारों को गहरे वित्तीय संकट में धकेल दिया है. निजी क्षेत्र विशेषरूप से एमएसएमई, जो राज्य की अर्थव्यवस्था का एक प्रमुख चालक है, इसको सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है. जैसे-जैसे हिंसा जारी है, राज्य का उत्पादक आधार बिगड़ता जा रहा है.
बजट में मणिपुर के लिए महत्वपूर्ण व्यय कटौती का खुलासा किया गया है. कुल व्यय का संशोधित अनुमान ₹47.16 लाख करोड़ है, जिसमें पूंजीगत व्यय 10.18 लाख करोड़ रुपये है. यह 2024-25 के लिए शुरू में नियोजित ₹48.2 लाख करोड़ से 1 लाख करोड़ रुपये कम है. इसके अतिरिक्त, वास्तविक व्यय में सभी केंद्र प्रायोजित योजनाओं में ₹3.4 लाख करोड़ की कटौती की गई है. मनरेगा के लिए ₹75,000 करोड़ का आवंटन पिछले वर्ष के वास्तविक व्यय से कम है. मणिपुर में, प्रति वर्ष कार्य दिवसों की औसत संख्या घटकर मात्र 35 रह गई है, जो अनिवार्य 100 से काफी कम है. ग्रामीण और कृषि श्रमिकों के लिए जीवन रेखा के रूप में मनरेगा की महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए, यह कटौती उनकी क्रय शक्ति को और कम कर देगी.
वित्त मंत्री ने और भी कई कटौतियां की है. अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के लिए पिछले वर्ष के बजट अनुमान ₹3,183.24 करोड़ से थोड़ी वृद्धि की गयी है. अब ₹3,350 करोड़ के आवंटन की घोषणा की. हालांकि, अल्पसंख्यकों के लिए शिक्षा सशक्तिकरण बजट में आधे से अधिक की कटौती की गई है, जो पिछले वर्ष के ₹1,575.72 करोड़ से घटकर ₹678.03 करोड़ रह गया है.
केंद्रीय बजट ने अल्पसंख्यक और आदिवासी समुदायों के लिए प्रमुख शैक्षिक सहायता योजनाओं में भारी कटौती की, कुछ प्रमुख कार्यक्रमों में 99.99% तक की कटौती देखी गई.
अनुसूचित जनजाति (एसटी) के छात्रों के लिए राष्ट्रीय फेलोशिप और छात्रवृत्ति, जो आदिवासी उच्च शिक्षा के लिए एक आधारशिला कार्यक्रम है, उसको लगभग समाप्त कर दिया गया है. इस योजना का बजट ₹240 करोड़ से घटाकर मात्र ₹0.02 करोड़ कर दिया गया है, जो 99.99% की कटौती दर्शाता है.
इसी तरह, राष्ट्रीय विदेशी छात्रवृत्ति योजना जो अनुसूचित जाति के छात्रों सहित हाशिए पर पड़े लोगों को विदेश में अध्ययन करने में सक्षम बनाती है, उसमें 99.8% की कटौती की गई है. इसका आवंटन ₹6 करोड़ से घटकर मात्र ₹0.01 करोड़ रह गया है. अल्पसंख्यक छात्रवृत्ति कार्यक्रमों में भी भारी कटौती की गई है. प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना के बजट में 72.4% की कटौती की गई है, जो ₹326.16 करोड़ से घटकर ₹90 करोड़ रह गया है. उच्चतर माध्यमिक और महाविद्यालयीन शिक्षा का समर्थन करने वाली पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति में 69.9% की कटौती हुई है, जिसका आवंटन ₹1,145.38 करोड़ से घटकर ₹343.91 करोड़ रह गया है.
पेशेवर शिक्षा सहायता को भी नहीं बख्शा गया है. व्यावसायिक और तकनीकी पाठ्यक्रमों के लिए मेरिट-कम-मीन्स छात्रवृत्ति में 42.6% की कटौती हुई है, जिसका बजट ₹33.80 करोड़ से घटकर ₹19.41 करोड़ रह गया है. विदेश में अध्ययन के लिए शैक्षिक ऋण पर ब्याज सब्सिडी की योजना में इसका आवंटन लगभग आधा रह जाएगा, जो ₹15.30 करोड़ से 46.6% घटकर ₹8.16 करोड़ रह जाएगा.
अल्पसंख्यक छात्रों के लिए मौलाना आज़ाद राष्ट्रीय फ़ेलोशिप में अपेक्षाकृत कम 4.9% की कटौती हुई है, जिसका आवंटन ₹45.08 करोड़ से घटकर ₹42.84 करोड़ रह गया है. हालांकि, मदरसों और अल्पसंख्यकों के लिए शिक्षा योजना को प्रभावी रूप से बंद कर दिया गया है, जिसमें ₹2 करोड़ से ₹0.01 करोड़ तक 99.5% की कटौती की गई है.
जबकि अल्पसंख्यकों के लिए मुफ्त कोचिंग और संबद्ध योजनाओं में शुरू में ₹10 करोड़ से ₹3.5 करोड़ तक 65% की कटौती की गई थी. बाद में इस निर्णय को उलट दिया गया, जिससे ₹10 करोड़ का मूल आवंटन बरकरार रहा.
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