आखिर किसने भड़काई यूपी चुनाव से पहले किसान आंदोलन की ये आग?

दुनिया को समाजवाद का दर्शन देने वाले चिंतक कार्ल मार्क्स ने बरसो पहले कहा था कि सरकारें, अपनी ताकत का इस्तेमाल करके किसी भी आंदोलन को थोड़े वक़्त के लिए दबा तो सकती हैं लेकिन वे इसे हमेशा के लिए कुचल नहीं सकतीं. जिस भी देश ने ऐसा करने की कोशिश की तो वहां लोगों ने ही एक नई क्रांति को पैदा किया है. उनकी इस बात का जिक्र यहां करना इसलिये भी जरुरी हो जाता है कि रविवार को उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में जो कुछ भी हुआ, उसने पिछले दस महीनों से चल रहे किसान आंदोलन की आग में एक तरह से घी डालने का काम किया है.
इसकी शुरुआत किसने की और असली कसूरवार कौन है, इसका पता जब तक लगेगा, तब तक शायद बहुत देर हो चुकी होगी. चूंकि अगले पांच महीने के भीतर उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव हैं और उससे पहले हुई इस हिंसक वारदात ने सूबे की योगी आदित्यनाथ सरकार पर एक ऐसा सवाल उठा दिया है जिसका सियासी फायदा उठाने से कोई भी विपक्षी पार्टी न तो पीछे रहना चाहती है और न ही वो इससे पीछे हटेगी. लेकिन दिल्ली से लेकर लखनऊ के सियासी गलियारों में एक सवाल ये पूछा जा रहा जा रहा है कि सियासत की आखिर ये कौन-सी नई इबारत लिखी जा रही है, जिसकी भनक सत्ता में बैठे शीर्ष लोगों तक को नहीं थी क्योंकि सरकार के नुमाइंदे अगर चाहते,तो इस टकराव को टाला जा सकता था. वैसे भी पिछले दस महीनों से केंद्र की मोदी सरकार की यही नीति रही है कि जितना भी संभव हो सके, किसानों पर किसी भी तरह की हिंसक कार्रवाई से बचा जाये.
हालांकि, इस घटना को लेकर यूपी सरकार के अपने दावे हैं और संयुक्त किसान मोर्चा के अपने लेकिन हक़ीक़त में हिंसा की चिंगारी किसने भड़काई, ये कोई नहीं जानता और हमारा कानून ही कुछ ऐसा बना हुआ है कि अक्सर ऐसे मामलों में सच सामने आते-आते बहुत देर हो चुकी होती है. लिहाज़ा, सवाल ये नहीं है कि आठ लोगों की मौत का जिम्मेदार किसे ठहराया जाये, जिसमें चार किसानों के मारे जाने का भी दावा किया जा रहा है. बड़ा सवाल ये है कि जिस आंदोलन से निपटने के लिए केन्द्र की सरकार अब तक बेहद संयम से काम लेती आ रही है, वहां आखिर राज्य सरकारों को ऐसा बल प्रयोग करने की इज़ाजत देने वाले आखिर कौन हैं.
इस घटना से पहले हरियाणा के करनाल में किसानों के साथ जो कुछ हुआ,वह सबने देखा है. लेकिन उसमें और लखीमपुर खीरी में हुई घटना में बुनियादी फर्क ये है कि वहां पुलिस-प्रशासन पर बल प्रयोग करने का आरोप लगा था. लेकिन यहां तो केंद्र के ही एक गृह राज्य मंत्री के बेटे पर आरोप लगाया गया है कि उन्होंने अपने समर्थकों के साथ दो-तीन एसयूवी गाड़ियों के नीचे प्रदर्शनकारी किसानों को रौंद डाला. हालांकि, इस आरोप की आधिकारिक पुष्टि अब तक किसी ने भी नहीं की है.
जबकि गृह राज्यमंत्री अजय कुमार मिश्रा ने इस पूरे मामले पर सफाई देते हुए कहा, ''लखीमपुर खीरी में घटनास्थल के पास मेरा बेटा मौजूद नहीं था, इसके वीडियो साक्ष्य हैं.'' इसके साथ ही उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में ''किसानों के प्रदर्शन में शामिल कुछ तत्वों'' ने बीजेपी के तीन कार्यकर्ताओं, एक चालक को पीट-पीट कर मार डाला.
उन्होंने कहा कि बीजेपी कार्यकर्ताओं की कार पर पथराव किया गया जिससे वाहन पलट गया; दो लोगों की इसमें दबकर मौत हो गई, इसके बाद बीजेपी कार्यकर्ताओं की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई." उनका दावा है कि ''कार्यकर्ताओं ने नहीं बल्कि किसानों ने कार्यकर्ताओं पर हमला किया. वहां किसानों के रूप में कुछ अराजक तत्व भी शामिल थे, जिन्होंने इस घटना को अंजाम दिया है. इस मामले की निष्पक्ष तरीके से जांच होगी."
उनके इस बयान के बाद मामला कुछ ज्यादा पेचीदा होता नजर आ रहा है क्योंकि अब उस घटना को लेकर तकरीबन समूचा विपक्ष एकजुट हो गया है, जो सियासी फायदा उठाने के लिए हर तरह की कोशिश करेगा. किसान नेता राकेश टिकैत समेत विपक्ष के तमाम प्रमुख नेताओं ने सोमवार को लखीमपुर खीरी पहुंचने का एलान किया है. जाहिर है कि प्रशासन उन्हें घटनास्थल तक पहुंचने से रोकेगा और नतीजतन सरकार और उनके बीच टकराव और ज्यादा बढेगा.
इस पूरे मामले पर किसान नेता राकेश टिकैत ने जिस धमकी भरे अंदाज में अपना गुस्सा जाहिर किया है, उसे अगर किसानों ने अंजाम देना शुरु कर दिया, तो वह स्थिति योगी सरकार के लिए निश्चित ही चिंता का विषय बन सकती है क्योंकि चुनाव होने में ज्यादा वक्त नहीं बचा है. टिकैत ने कहा है, ''सरकार होश में आए और किसानों के हत्यारों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर गिरफ्तारी सुनिश्चित करे.अगर सरकार होश में ना आई तो भाजपा के एक भी नेता को घर से नहीं निकलने दिया जाएगा.'' इस धमकी को अगर राजनीतिक भाषा में समझा जाए,तो इसके बहुत गहरे मायने भी हैं.
संयुक्त किसान मोर्चा ने इस घटना को लेकर एक अहम मांग ये भी की है कि पूरे मामले की जांच सुप्रीम कोर्ट के सीटिंग जज से करवाई जाये, क्योंकि उन्हें राज्य सरकार की जांच पर कोई भरोसा नहीं है. ये तो किसान नेता भी जानते हैं कि सरकार इस मांग को इतनी आसानी से मानने वाली नहीं है लेकिन चुनाव से पहले अगर इस आग को बुझाना है, तो योगी सरकार को ये मांग इसलिये भी फौरन मान लेनी चाहिए कि जब इसमें उनकी पार्टी की कोई ग़लत भूमिका ही नहीं है,तो फिर डर कैसा.
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