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मुलायम की वजह से कभी सीएम नहीं बन पाए थे अजित सिंह

जयंत चौधरी अखिलेश यादव के लिए बैटिंग कर रहे हैं ताकि अखिलेश फिर से मुख्यमंत्री बन सकें. अखिलेश यादव जयंत चौधरी के साथ गठबंधन कर चुके हैं ताकि पश्चिमी यूपी में अखिलेश को बढ़त मिल सके. ये दोनों ही अपने-अपने पिता की राजनीतिक विरासत को संभाल रहे हैं. जिनकी दोस्ती का मकसद 2022 का चुनाव है. लेकिन आज से करीब 42 साल पहले इन दोनों लोगों के पिता की गाढ़ी दोस्ती भी चुनाव की वजह से टूट गई थी और तब उस जंग में अखिलेश के पिता मुलायम सिंह यादव बाजी मार ले गए थे.
 
11 अक्टूबर, 1988 को जयप्रकाश नारायण का जन्म दिन था. उस दिन भारतीय राजनीति में एक नई पार्टी का उदय हुआ, जिसका नाम रखा गया जनता दल. इसमें जनमोर्चा, जनता पार्टी, लोकदल अजित और लोकदल बहुगुणा के साथ ही कांग्रेस (एस) का विलय किया गया था. 1989 में उत्तर प्रदेश में विधानसभा के चुनाव होने थे. तब उत्तर प्रदेश में विधानसभा की कुल 425 सीटें हुआ करती थीं. कांग्रेस विरोधी लहर में जनता दल ने 356 सीटों पर चुनाव लड़ा. उसे कुल 208 सीटें आईं, जबकि कांग्रेस 410 सीटों पर चुनाव लड़कर भी 94 सीटें ही हासिल कर सकी. बहुमत किसी के पास नहीं था, लेकिन जनता दल सबसे बड़ी पार्टी थी. उसे सरकार बनाने के लिए कम से कम पांच और विधायकों का समर्थन चाहिए था.

 

जनता दल था अलग-अलग दलों का समूह 

लेकिन असली लड़ाई तो जनता दल के नेता की थी, क्योंकि जनता दल कोई एक दल न होकर अलग-अलग दलों का समूह था, जिसके हर नेता की राजनीतिक महत्वाकांक्षा थी. और ये राजनीतिक महत्वाकांक्षा केंद्र में सरकार बनाने के समय सामने आ चुकी थी. तब तय ये हुआ था कि प्रधानमंत्री तो चौधरी देवीलाल बनेंगे. खुद वीपी सिंह कई इंटरव्यू में ये बात कह चुके थे कि नेता का चुनाव संयुक्त मोर्चा ही करेगा. लेकिन जब नेता चुनने की बारी आई और चौधरी देवी लाल के नाम का प्रस्ताव किया गया तो चौधरी देवीलाल ने कहा कि वो सिर्फ ताऊ ही बने रहना चाहते है. उन्होंने प्रधानमंत्री पद के लिए विश्वनाथ प्रताप सिंह के नाम का प्रस्ताव रख दिया. वीपी सिंह का नाम आते ही चौधरी अजित सिंह ने उस नाम का अनुमोदन कर दिया. इससे नाराज चंद्रशेखर चिल्ला उठे और सदन से बाहर निकल गए. आखिरकार वीपी सिंह ही देश के प्रधानमंत्री बने.
 
इस दौरान यूपी विधानसभा के भी नतीजे आ ही चुके थे. प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने तय किया कि उत्तर प्रदेश के नए मुख्यमंत्री होंगे चौधरी अजित सिंह. मुलायम सिंह यादव का नाम प्रदेश के उपमुख्यमंत्री के लिए तय किया गया. लेकिन मुलायम ने इसका विरोध कर दिया. और इस विरोध की वजह थी अजित सिंह से 1987 में हुई उनकी पुरानी अदावत. तब अजित सिंह के पिता चौधरी चरण सिंह ने लोकदल का कार्यकारी अध्यक्ष हेमवती नंदन बहुगुणा को बना रखा था. लेकिन चरण सिंह के बेटे तो अजित सिंह ही थे, लिहाजा लोकदल के नेता भी अजित सिंह की सुनते थे. उनके कहने पर ही लोकदल के विधायकों ने बैठक बुलाई और उत्तर प्रदेश में अपने नेता प्रतिपक्ष मुलायम सिंह यादव को विपक्ष के नेता के पद से हटा दिया. साथ ही उन्हें लोकदल से भी बाहर कर दिया गया. अजित सिंह ने अपने आदमी को नेता प्रतिपक्ष बना दिया.

पांच वोटों से चुनाव जीतकर मुलायम बने थे मुख्यमंत्री

मुलायम को ये अपमान याद था. वहीं चंद्रशेखर को भी याद था कि कैसे अजित सिंह ने प्रधानमंत्री पद के लिए वीपी सिंह के नाम का अनुमोदन किया था. मुलायम के पास मौका था अजित सिंह को सबक सिखाने का. चंद्रशेखर के पास मौका था वीपी सिंह और चौधरी अजित सिंह को एक साथ सबक सिखाने का. तो चंद्रशेखर ने मुलायम सिंह यादव का समर्थन कर दिया. चंद्रशेखर के समर्थन के बाद मुलायम अड़ गए कि मुख्यमंत्री तो वही बनेंगे. वहीं विश्वनाथ प्रताप सिंह ने भी चौधरी अजित सिंह के नाम पर इतनी शिद्दत से दिलचस्पी नहीं दिखाई. किसी विधायक तक को नहीं कहा कि उसे चौधरी अजित सिंह का समर्थन करना होगा. उन्होंने कहा कि अब मुख्यमंत्री पद के लिए गुप्त मतदान होगा और जो जीतेगा, वही प्रदेश का मुख्यमंत्री बनेगा.
 
इसके लिए मधु दंडवते, चिमन भाई पटेल और मुफ्ती मोहम्मद सईद को पर्यवेक्षक बनाकर लखनऊ भेजा गया. वहीं मुलायम सिंह यादव ने दांव चला और बाहुबली डीपी सिंह और अपने साथी बेनी प्रसाद वर्मा की मदद से अजित सिंह खेमे के 11 विधायक तोड़ लिए. तय समय पर विधानसभा के तिलक हॉल में वोटिंग हुई. वहीं बाहर मुलायम और अजित के समर्थक अपने-अपने नेता के लिए ज़िंदाबाद के नारे लगा रहे थे. नतीजा आया तो मुलायम सिंह यादव पांच वोटों से अजित सिंह से चुनाव जीत गए थे. और फिर पांच दिसंबर 1989 को मुलायम सिंह यादव पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने.
 
उस वक्त अजित सिंह का मुख्यमंत्री बनने का जो सपना टूटा तो वो फिर कभी प्रदेश के मुख्यमंत्री नहीं बन पाए. हालांकि जिस दिन मुलायम सिंह यूपी के मुख्यमंत्री बने उसी दिन उनकी निष्ठा का इनाम देते हुए वीपी सिंह ने अजित सिंह को केंद्र में मंत्री बना दिया. वहीं मुलायम भी लंबे समय तक मुख्यमंत्री पद पर काबिज नहीं रह सके. जब चंद्रशेखर ने जनता दल से अलग होकर समाजवादी जनता पार्टी बनाई तो मुलायम उनके साथ चले गए. बाद में मुलायम चंद्रशेखर से भी अलग हो गए और अपनी समाजवादी पार्टी बनाई. वहीं अजित सिंह भी कांग्रेस के साथ गए, लेकिन 1996 में अलग होकर अपनी पार्टी बनाई राष्ट्रीय लोकदल, जिसके मुखिया अब उनके बेटे जयंत चौधरी हैं. हालांकि मुलायम और अजित से बीच के रिश्ते की कड़वाहट वक्त के साथ कम होती गई और दोनों फिर से साथ भी आए. और अब 2022 के चुनाव के लिए फिर से उन दोनों नेताओं के बेटे भी एक साथ हैं. 

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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