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विपक्षी एकता से घबराई सरकार बदलना चाहती संवैधानिक संस्थाएं, इंडिया बनाम भारत की बहस बेमानी, राष्ट्रवाद नहीं है ये छिछोरावाद

देश में इंडिया बनाम भारत पर इस वक्त विवाद चल रहा है. सरकार की तरफ से 18 सितंबर से 5 दिवसीय विशेष सत्र लाने का एलान किया गया. इसके बाद इंडिया पर विवाद उस वक्त शुरू हुआ जब जी 20 शिखर सम्मेलन के लिए डिनर पर भेजे गए निमंत्रण पत्र पर 'प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया' की जगह 'प्रेसिडेंट ऑफ भारत' लिखा गया. इसके बाद से कयास यह लगाए जाने लगे कि देश का नाम अब केवल भारत रह जाएगा. विपक्षी दल इसके खिलाफ लामबंद होकर इसे साजिश बता रहे हैं. हालांकि, सरकार की तरफ से अभी कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है, लेकिन पूरे देश में एक बहस का दौर शुरू हो गया है. 

संविधान बदलने की साजिश 

पहली बार ऐसी घटना घट रही है, जहां पर प्रेसिडेंट ऑफ भारत लिखा गया है. सारे देश, सारी दुनिया 'प्रसिडेंट ऑफ इंडिया' जानती है. 10 दिन पहले वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप में नीरज चोपड़ा को गोल्ड मिला. उसमें भी ये एनाउंसमेंट हुआ था- Neeraj comes from India. इंडिया सारी दुनिया में चलता है, लेकिन हमारे जयशंकर जी जो हैं, उनका क्या कहा जाए. हालांकि, तर्कहीन लोगों से तर्क कर सकते हैं, महामुखोपाध्याय लोगों से तर्क नहीं किया जा सकता है. पहली बार ऐसी घटना घट रही है. संविधान में क्या लिखा गया है? वी, द पीपल ऑफ इंडिया...तो, इनसे कहना चाहिए कि ये किताब पढ़ें, जेएनयू में बहुत पढ़ा भी होगा. प्रधानमंत्री भी पढ़ें, गृहमंत्री भी पढ़ें और भाजपा के अज्ञानी लोग भी पढ़ें. संविधान सभा के अंदर 1949 ईस्वी के सितंबर में जो बहस हुई, उसमें भारत और इंडिया के सवाल पर खूब बहस हुई है. भारत हटाने के लिए एक संशोधन प्रस्तुत हुआ था. वह संशोधन किसने प्रस्तुत किया था? एच वी कामत और सेठ गोविंददास ने. इस संशोधन को संविधान सभा ने प्रचंड बहुमत से अस्वीकृत कर दिया था.

ये नया संविधान बनाने की तैयारी है क्या? प्रधानमंत्री जी संसद की सीढ़ियों पर सिर टेकते हैं, फिर संविधान बदलने की तैयारी में भी दिखते हैं. मैं एक सवाल पूछना चाहता हूं. इससे पहले प्रधानमंत्री जी ने 11 प्रोजेक्ट्स का नाम 'इंडिया' से जोड़कर रखा है. तब उनको भारत का ख्याल नहीं आया था. अब इतिहास का हवाला, भरत मुनि से लेकर दुष्यंत के पुत्र तक की बात की जाती है.  

अनुवाद की बात पर आइए. अब नाम है, यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका, उसको हम संयुक्त राज्य अमेरिका कहते हैं. ये जो राष्ट्रवाद के नाम पर छिछोरावाद फैलाया जा रहा है, इसे रोकना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया, चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया, इन सबको क्या करेंगे? सारा कुछ बदल देंगे, फिर उसके लिए तो अनुमति लेनी होगी, पूरी लंबी प्रक्रिया होगी. वैसे, फर्क क्या पड़ता है? हम भारत के लोग...या वी, द पीपल ऑफ इंडिया कहिए. ये गुरु गोलवलकरवाद है, तर्कहीनता है. ये तर्कहीन लोगों का अपना अध्यात्म है और बाकी कुछ नहीं है. 

असल मुद्दों से भटका रही है सरकार

भाजपा के पास कोई मुद्दा नहीं है. वे विपक्ष की एकता से परेशान हैं. घमंडिया गठबंधन कह कर परेशान हैं. अब उन्होंन देख लिया कि वन नेशन, वन इलेक्शन तो चलेगा नहीं. उनको पता है कि 52, 57, 62,67 में एक पार्टी को बहुमत मिला था, तो राज्यों में भी उसी पार्टी को बहुमत मिला था. जब से ये बंट गया, अलग-अलग राज्यों में जब अलग समय पर चुनाव हुए तो विपक्ष की भी सरकारें बनीं. 8 राज्यों में कांग्रेस के विरोधी दल जीते और सरकार बनाई. ये घबराए लोग हैं. विपक्ष के लोगों ने इंडिया नाम ले लिया, तो इनको परेशानी है. इनके हाथ में कुछ नहीं है. इनके हाथ में गरीबी, बेकारी, भुखमरी, बड़बोलापन और जुमलेबाजी के अलावा कुछ है क्या, इसीलिए ये संविधान में परिवर्तन चाहते हैं. संवैधानिक संस्थाओं को बदलना चाहते हैं. आप ये बात कीजिए कि मणिपुर में क्या हो रहा है, आज तीन महीने हो गए हैं. ये इंडिया नाम जो है, वह हिंदुस्तान के फेडरलिज्म को प्रजेंट करता है. यह किसी योगी या संन्यासी की बात नहीं करता. वी, द पीपल ऑफ इंडिया. हम काले हैं, गोरे हैं, दक्षिण के हैं, उत्तर के हैं. वी यानी हम हैं. विपक्ष के हाथों शिकस्त के डर से ये बौखलाए हुए हैं. 

अतीत से पीछा छुड़ाने की कवायद

हमारे जो संसदीय कार्यमंत्री हैं, वे राजनीतिक ढक्कन हैं. ढक्कन को किसी चीज को बंद करने को लगा देते हैं न. अरे भाई, आप संसदीय कार्यमंत्री हैं तो बताइए न कि 18 से 22 तक संसद का विशेष सत्र किसलिए बुलाया है, किसने बुलाया है? आप ट्वीट पहले कर देते हैं और संसद को बुलाने का अधिकार किसका है? सत्रावसान का, संसद को बुलाने का अधिकार राष्ट्रपति का है. उनका नोटिफिकेशन तीन दिनों बाद आता है. यह कदम दर कदम, औजार दर औजार ये भारतीय संविधान को कमजोर करना चाहते हैं. ये देश को मानते ही नहीं हैं. आरएसएस का एजेंडा क्लेयर है. 54 साल तक देश का झंडा संघ ने नहीं स्वीकारा था. ये बहस बेमतलब की है. आजादी के अमृत महोत्सव में आप सबको श्रद्धासुमन अर्पित कर रहे हैं. शहीदे-आजम भगसिंह, राजगुर, अशफाक उल्ला, अनुशीलन, काकोरी ट्रेन कांड के लोगों को याद कर रहे हैं, कृतज्ञता ज्ञापित कर रहे हैं, तो आप क्यों नहीं मानते अपनी गलती कि आपने आजादी की लड़ाई में योगदान नहीं आया.

23 साल का नौजवान भगतसिंह शहीद हो गया, गोलवलकर को राष्ट्रवाद समझ में नहींं आया. आडवाणी को समझ नहीं आया. जब भगतसिंह को फांसी हुई और सारा देश साम्राज्यवाद मुर्दाबाद के नारे लगा रहे थे, तो नागपुर से लेकर जहां कहीं आरएसएस के लोग थे, इंग्लैंड की महारानी जिंदाबाद के नारे लगा रहे थे. कोई आदमी अपने अतीत से पिंड नहीं छुड़ा सकता. ये अपने अतीत से पीछा छुड़ाने को ये सब कुछ कर रहे हैं. ये छिछोरावाद को राष्ट्रवाद बता रहे हैं. इसलिए, हमारा बुनियादी मतभेद है. 

ये राष्ट्रवाद नहीं, छिछोरावाद है

आजादी की लडा़ई का इन्होंने विरोध किया. इनके मुंह से शहीदे आजम भगतसिंह या अन्य का नाम ऐसा लगता है, जैसे किसी को मां-बहन की गाली दी जा रही हो. ये किसी और देश में होते, तो लोग इनको कुट्टी-कुट्टी कर देते. भगा देते सामाजिक जीवन से. सरदार पटेल को ये आदर्श बताते हैं. उन्होंने ही तो संघ पर प्रतिबंध लगाया था. झूठ बोलते रहे हैं. ये झूठ बोलते हैं कि पटेल को क्या मिला? नेहरू ने उनकी बेटी को, सबको साथ रखा, लोकसभा में अपने साथ रखा. मैं विस्तार में इस पर नहीं जाऊंगा. चंद्रभानु गुप्त जो कांग्रेस के मुख्यमंत्री थे, हर पहली तारीख को स्वतंत्रता सेनानी के घर में भीख मांगकर 25 रुपए का मनीऑर्डर भेजते रहे. ये कभी शिवराज सिंह चौहान से पूछें. चंद्रशेखर आजाद तो मध्यप्रदेश के झाबुआ में पैदा हुए थे. कभी उनकी मां के पास गए? उनके घर को आपने राष्ट्रीय स्मारक बनाया?

वितंडावाद से क्या फायदा है? देश के ऊपर धर्म और जाति का मुलम्मा चढ़ाकर ये लोग सत्ता में आ गए, जिन हाथों से देश का झंडा छीन लेना था, उन्हीं हाथों से ये लोग लालकिले पर झंडा फहराते हैं. जो लालकिला हमारे देश की आजादी का प्रतीक था, उसे भी इन्होंने निजी हाथों में बेच दिया. अब इन्होंने पूंजीपति परिवार को उसे बेच दिया. वही टिकट बेचता है. इस देश की इमेज यह बन रही है कि किस तरह की विचारहीन और तथ्यहीन बातों पर चर्चा कर रहे हैं. 3000 करोड़ रुपया आज जी20 पर खर्च कर रहे हैं. वन नेशन, वनइलेक्शन कैसे होगा? मैं तो लगातार बोल सकता हूं.  

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.] 

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