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गर्भपात का हक सबको: सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने तोड़ डाली महिलाओं के बीच खड़ी दीवार

अमेरिका को दुनिया का सबसे ताकतवर मुल्क समझा जाता है. साथ ही ये भी माना जाता है कि इस बेहद आधुनिक विचारों व संस्कृति वाले देश में धार्मिक दकियानूसी का कोई स्थान नहीं है लेकिन, उसी अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट ने बीते 24 जून को एक ऐसा फैसला दिया जिसमें कि वहां की महिलाओं को मिले गर्भपात के कानूनी अधिकार को एक ही झटके में खत्म कर दिया. ये हक उन्हें पिछले 50 सालों से मिला हुआ था.

पूरे देश में महिलाओं ने उस फैसले के खिलाफ जमकर प्रदर्शन किए लेकिन, हमारे देश के सुप्रीम कोर्ट ने गर्भपात को लेकर गुरुवार को जो फैसला सुनाया है, वो इस मायने में अहम व ऐतिहासिक है कि शीर्ष अदालत ने महिलाओं के बीच खड़ी होने वाली एक बड़ी दीवार को तोड़कर रख दिया है. वो दीवार है- शादीशुदा होने और अविवाहित रहते हुए गर्भ धारण करने और फिर गर्भपात कराने की. पिछले कई बरसों से महिलाओं के बीच खोदी गई इस खाई को पाटते हुए कोर्ट ने देश की सभी महिलाओं को गर्भपात कराने का हक दे दिया है, चाहें वो विवाहित हों या अविवाहित. दरअसल,सर्वोच्च न्यायालय ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (MTP) एक्ट की परिभाषा को और विस्तार देते हुए फैसला दिया है कि गर्भ धारण करने के 24 सप्ताह की अवधि के भीतर गर्भपात का अधिकार अब सभी को है.

अब तक इस कानून के दायरे से अविवाहित महिलाओं को बाहर रखा गया था. कोर्ट ने एक अविवाहित महिला द्वारा दायर की गई याचिका के वकील की तरफ से दी गई इस दलील को मानते हुए ये भी कहा कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी कानून के दायरे से अविवाहित महिला को बाहर रखना असंवैधानिक है. अदालत ने कहा कि एमटीपी अधिनियम की धारा 3 (2) (बी) का मकसद महिला को 20 से 24 सप्ताह के बाद गर्भपात कराने की अनुमति देना है, इसलिए सिर्फ अविवाहित महिला को इससे बाहर रखना,  संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन होगा. न्यायधीशों ने अपने फैसले में ये भी कहा कि अगर नियम 3बी (सी) को केवल विवाहित महिलाओं के लिए समझा जाता है, तो यह इस रूढ़िवादिता को कायम रखेगा कि केवल विवाहित महिलाएं ही यौन गतिविधियों में लिप्त होती हैं. ये संवैधानिक तौर से टिकाऊ नहीं है. 

अब समझिये कि ये एमटीपी एक्ट है क्या

दरअसल, ये कानून 1971 में बना था और उस दौरान गर्भपात को लेकर समाज में कुछ ऐसी रूढ़िवादिता थी, जिसका ख्याल रखते हुए ही सरकार ने इस कानून को अमली जामा पहनाया था. तब इस कानून में ये प्रावधान था कि अगर किसी महिला का 12 हफ़्ते का गर्भ है, तो वो एक डॉक्टर की सलाह पर गर्भपात करवा सकती है. वहीं अगर 12 से 20 हफ़्ते का गर्भ हो तब गर्भपात के लिए दो डॉक्टरों की सलाह लेनी अनिवार्य थी लेकिन, 20 से 24 हफ्ते की अवधि वाली गर्भवती किसी महिला को गर्भपात कराने की कानूनी इजाज़त नहीं थी.

मोदी सरकार ने पिछले साल इस कानून में बड़ा बदलाव करते हुए ये संशोधन किया कि अब गर्भपात करवाने के लिए मान्य अवधि 20 हफ़्ते से बढ़ाकर 24 हफ़्ते तक होगी. पिछले साल 17 मार्च को संसद के दोनों सदनों से ये संशोधित बिल पास होने के बाद इसने कानूनी शक्ल ले ली. इसमें कहा गया कि गर्भपात के लिए मान्य अवधि विशेष तरह की महिलाओं के लिए बढ़ाई गई है, जिन्हें एमटीपी नियमों में संशोधन के ज़रिए परिभाषित किया जाएगा और इनमें दुष्कर्म पीड़ित, सगे-संबंधियों के साथ यौन संपर्क की पीड़ित और अन्य असुरक्षित महिलाएं (विकलांग महिलाएं, नाबालिग) भी शामिल होंगी.

इस संशोधित कानून में भी अविवाहित महिलाओं को कोई राहत नहीं दी गई और उनके गर्भपात के लिए 20 हफ़्ते की ही समय-सीमा को ही बरकरार रखा गया था. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने उस फर्क को खत्म करते हुए सरकार को ये संदेश भी दे दिया कि संविधान में महिलाओं को मिले अधिकारों को दो श्रेणी में बांटने का मतलब है कि आप देश की नारी-शक्ति के साथ भेदभाव कर रहे हैं, जो मंजूर नहीं है.

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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