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लोकसभा चुनाव परिणाम 2024

UTTAR PRADESH (80)
43
INDIA
36
NDA
01
OTH
MAHARASHTRA (48)
30
INDIA
17
NDA
01
OTH
WEST BENGAL (42)
29
TMC
12
BJP
01
INC
BIHAR (40)
30
NDA
09
INDIA
01
OTH
TAMIL NADU (39)
39
DMK+
00
AIADMK+
00
BJP+
00
NTK
KARNATAKA (28)
19
NDA
09
INC
00
OTH
MADHYA PRADESH (29)
29
BJP
00
INDIA
00
OTH
RAJASTHAN (25)
14
BJP
11
INDIA
00
OTH
DELHI (07)
07
NDA
00
INDIA
00
OTH
HARYANA (10)
05
INDIA
05
BJP
00
OTH
GUJARAT (26)
25
BJP
01
INDIA
00
OTH
(Source: ECI / CVoter)

'रामचरित मानस' में दलितों के अपमान के बहाने कौन-सी हो रही है ये नई राजनीति?

रामचरितमानस की रचना गोस्वामी तुलसीदास ने चार सदी पहले की थी, लेकिन आज उनकी कुछ चौपाइयां राजनीति का ऐसा औजार बन गई हैं कि कोई ये समझ नही पा रहा है कि अब अचानक आखिर ऐसा क्यों हो रहा है. रामचरित मानस की एक चौपाई को दलितों का अपमान बताते हुए अब इस पर ऐतराज भी जताया जा रहा है और उसके बहाने अपनी सियासी रोटियां भी सेंकी जा रही है, लेकिन बड़ा सवाल ये है कि दलितों की राजनीति करने वाले नेताओं को अब तक ये ख्याल क्यों नहीं आया कि रामचरित मानस में लिखी इस पंक्ति-  'ढोल गंवार शूद्र पशु नारी, सकल ताड़ना के अधिकारी' का विरोध जब पहले आज तक कभी नही हुआ,तो फिर आखिर अभी ही क्यों हो रहा है?

यूपी देश का सबसे बड़ा सूबा है,जहां दलितों की आबादी सबसे ज्यादा है.लोकसभा चुनाव होने में अभी सवा साल का वक्त बचा है, लेकिन बीजेपी को घेरने के लिये विपक्ष को कोई मुद्दा तो चाहिये ही,सो उसने तलाश लिया.यूपी में समाजवादी पार्टी के बड़े दलित नेता स्वामी प्रसाद मौर्य हैं, जिन्होंने रामचरित मानस के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. उन्होंने रामचरित मानस में लिखी जातिसूचक और नीची जातियों का अपमान करने वाली पंक्तियों को हटाने के लिए केंद्र सरकार से लड़ाई मोल ले ली है.जाहिर है कि सरकार उनकी मांग पर कोई गौर तो नहीं करेगी, लेकिन सवाल ये भी उठता है कि वे इस मुद्दे को उछालकर कितने दलितों को सपा के पाले में ले आयेंगे? ये भी सच है कि मौर्य के बयान ने राजनीति में एक नए विवाद को जन्म दे दिया है, लेकिन सियासत का इतिहास बताता है कि ऐसे किसी भी मसले को किसी सोची-समझी रणनीति के तहत ही उछाला जाता है.खासकर तब जबकि एक खास वर्ग की भावनाओं को सियासी रंग देते हुए उसे अपने साथ लेने की हर मुमकिन कोशिश को परवान चढ़ाया जाये.

निष्पक्षता से आकलन किया जाये तो पिछले साल हुए यूपी विधानसभा के चुनावों में दलितों के एक बड़े तबके का मायावती की बीएसपी से मोहभंग हुआ था और उसने सपा के पाले में जाने की बजाय बीजेपी को शायद अपना ज्यादा खैरख्वाह समझा भी और खुलकर उसे वोट भी दिया. इसे बीजेपी की सोशल इंजीनियरिंग का सफल प्रयोग भी कह सकते हैं कि उसने बीएसपी से नाराज इस मजबूत वोट बैंक को सपा या कांग्रेस में जाने देने की बजाय अपने साथ लाने में उम्मीद से ज्यादा कामयाबी हासिल की. रामचरित मानस को लेकर दिये मौर्य के इस ताजा बयान को उसी कड़ी के रुप में देखा जा रहा है कि सपा का सारा फोकस अब इसी पर है कि मायावती से नाराज होकर जो दलित वोट बीजेपी के पास चला गया है,उसे किसी भी सूरत में अपने पाले में लाने के लिए हर तरह की तिकड़म का इस्तेमाल किया जाये. इसीलिए सियासी गलियारों में ये चर्चा जोरों पर पर है कि रामचरित मानस के जरिये दलितों का अपमान होने वाला बयान उन्होंने खुद नहीं दिया,बल्कि उनसे दिलवाया गया है.

यूपी की राजनीति में स्वामी प्रसाद मौर्य को आज भी दलितों के एक बड़े चेहरे के रुप में पहचाना जाता है और कुछ इलाकों में उनका खासा जनाधार भी है.लिहाजा,उन्होंने ये शिगूफा छोड़कर एक नया विवाद तो पैदा कर ही दिया है. हालांकि ये कोई नहीं जानता कि आगामी लोकसभा चुनाव में उन्हें या उनकी पार्टी को किस हद तक फायदा मिलेगा. ऐसा माना जाता है कि गोस्वामी तुलसीदास ने अयोध्या में रहते हुए ही रामचरितमानस की रचना 1631 में  मुगल बादशाह अकबर के शासन काल के दौरान की थी. उनकी रचना मुख्यत:अवधी भाषा में है लेकिन उसमें संस्कृत ,उर्दू , फारसी शब्दों का भी प्रयोग किया गया है. माना तो ये भी जाता है कि तुलसीदास जी ने इसमें श्री राम के चरित्र की साधारण मनुष्य से तुलना करते हुए विवेचना की है, इसलिए इसे रामचरितमानस कहते हैं, लेकिन स्वामी प्रसाद मौर्य को इसकी एक चौपाई अब अचानक खलने लगी है. वे इस चौपाई का उदाहरण देते हुए सवाल उठा रहे हैं- 'ढोल गंवार शूद्र पशु नारी, सकल ताड़ना के अधिकारी', यानी 50 परसेंट आबादी है महिलाओं की, वो महिलाएं किसी वर्ग की हों, सामान्य वर्ग की हों, दलित की हों, पिछड़े की हों, अगड़े की हों, हिंदू की हों, मुसलमान की हों, किसी भी वर्ग की हों, कौन अधिकार दिया मुसलमानों को अपमानित करने के लिए, महिलाओं को अपमानित करने के लिए, किसने अधिकार दिया पिछड़ों को गाली देने के लिए, किसने अधिकार दिया शूद्र कहकर दलितों-पिछड़ों और आदिवासियों को, इंसान की जिंदगी तो बहुत दूर, जानवर से बदतर जिंदगी जीने के लिए उन्होंने मजबूर किया, क्या यही धर्म है? और कहते हैं.. अगर तुलसीदास की रामायण पर कोई टिप्पणी करता है तो हिंदू भावना आहत होती है.''

मौर्य से मीडिया के साथियों ने सवाल पूछा था कि क्या वह चौपाई और दोहे को प्रबंधित करने की बात कर रहे हैं? तो उन्होंने कहा, ''स्वाभाविक रूप से, यह धर्मनिरपेक्ष देश है, किसी को किसी भी धर्म को, किसी को गाली देने का अधिकार नहीं है. इन्हीं तुलसीदास जी की रामायण में लिखा है कि 'जे बरनाधम तेलि कुम्हारा, स्वपच किरात कोल कलवारा', जातिसूचक शब्दों का उपयोग करते हुए अधम जातियों में इनको गिनने का पाप किया है. 'पूजहि विप्र सकल गुण हीना, पूजहि न शूद्र गुण ज्ञान प्रवीणा' (सही चौपाई- 'पूजहि विप्र सकल गुण हीना, शुद्र न पूजहु वेद प्रवीणा'), ये कहां का प्रमाणपत्र दे रहे हैं कि कितना भी मूर्ख ब्राह्मण हो,उसकी पूजा करिये, लेकिन कितना भी बड़ा विद्वान क्यों न शूद्र हो, उसका सम्मान न करिये, ये तुलसी बाबा लिखते हैं?''क्या यही धर्म है ? 

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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