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पुतिन का भारत दौरा: रुस से मिलने वाली इस सौगात से आखिर क्यों बेचैन हो उठे हैं चीन और अमेरिका ?

भारत को आजादी मिलने के बाद दुनिया के नक्षे पर सबसे पहला देश सोवियत संघ था जिसने न सिर्फ हमसे दोस्ती की बल्कि उसे बदस्तूर निभाया भी. हालांकि बाद के सालों में उसका विभाजन हो गया और वह एक बड़े मुल्क के रुप में रुस बन गया लेकिन अन्तराष्ट्रीय बिरादरी में आए तमाम तरह के उतार-चढाव के बावजूद रुस ने भारत की दोस्ती का वह हाथ छोड़ा नहीं,बल्कि दोनों देश उसे पूरी शिद्दत से निभाते आ रहे हैं.

सैन्य क्षमता के लिहाज से रुस की गिनती दुनिया के तीन ताकतवर देशों में होती है,लिहाज़ा कोविड महामारी के दौर में राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का अपने देश से बाहर निकल कर भारत आना कई लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण इसलिये भी समझा जा रहा है कि इससे पहले वे बीते जून में अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडेन से मिलने जिनीवा गए थे.पुतिन आज खाली हाथ नयी दिल्ली नहीं आ रहे हैं,बल्कि वे अपने साथ कुछ ऐसी सौगात ला रहे हैं,जो भारत को रक्षा-क्षेत्र में पहले से भी और ज्यादा ताकतवर बना देंगीं.यही वजह है कि पुतिन के इस भारत दौरे से चीन के कान खड़े हो गए हैं,तो उधर अमेरिका को भी ये चिंता सताने लगी है कि भारत उसे छोड़कर आखिर रुस के पाले में क्यों जा रहा है.लेकिन कूटनीति व सामरिक मामलों के जानकार मानते हैं कि भारत के लिए इससे बेहतर स्थिति कोई और हो ही नहीं सकती,जबकि वो दुनिया के दो महाशक्ति कहलाने वाले देशों के साथ संतुलन बनाते हुए अपने रिश्तों को आगे ले जाते हुए उन्हें और मजबूत कर रहा है.

हालांकि इस सच को झुठलाया नहीं जा सकता कि अफगानिस्तान की सत्ता में तालिबान के जबरन काबिज़ होने के बाद ऐसा भी मौका आया था,जब दुनिया को लगा कि भारत और रूस के रिश्तों में दरार पड़ रही है,जो आने वाले वक़्त में और गहरी होगी लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पुतिन सरकार की एक -दूसरे को माफिक आने वाली कूटनीति की केमिस्ट्री ने इसे गलत साबित कर दिया.लेकिन रुस की दोस्ती के सच का दूसरा पहलू ये भी है कि वो कभी नहीं चाहता कि भारत और अमेरिका के रिश्ते उस मुकाम तक पहुंचे,जो उसके लिए खतरा बन जाएं.

पिछले दो साल से सीमा पर हालात कुछ ऐसे बने हुए हैं,जो हमें चीन को अपना दुश्मन मानने-समझने के लिए मजबूर करते हैं लेकिन एक सच ये भी है कि चीन और रुस की आपस में रणनीतिक साझेदारी भी है.लिहाज़ा भारत-चीन सीमा पर उपजे इस तनाव से रुस का चिंतित होना स्वाभाविक है.देखना ये है कि इस तनाव को ख़त्म करने के लिए पुतिन अपनी तरफ से क्या पहल करते हैं.वे भारत की बात मानते हुए अपने पार्टनर चीन को किस हद तक समझा पाते हैं और चीन कहाँ तक उस पर अमल करता है.

हालांकि इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि  भारत पिछले लंबे अरसे से अपनी सैन्य ज़रूरतों के लिए रूस पर ही निर्भर रहा है.लेकिन पिछले करीब ढाई दशक से ही भारत ने इजरायल,अमेरिका व अन्य देशों से रक्षा संबंधी साजो-सामान खरीदने की शुरुआत की है.

वैसे पुतिन का ये भारत दौरा कुछ घंटों का ही बताया गया है लेकिन इस दौरान दोनों देशों के बीच कई रक्षा समझौते होने वाले हैं. इससे ना सिर्फ़ भारत की सुरक्षा क्षमताएं बढ़ेंगी बल्कि दोनों देशों के रिश्तों में और भी अधिक गर्मजोशी आने की उम्मीद जताई जा रही है. हालांकि बीते साल भारत और रूस के बीच होने वाली सालाना वार्ता को कोविड-19 महामारी की वजह से टाल दिया गया था.ऐसे में पुतिन के भारत आने के फ़ैसले को दोनों देशों के बीच रिश्ते मज़बूत करने के आलावा इसे अन्तराष्ट्रीय मंच पर एक अलग नजरिये से भी देखा जा रहा है.

अन्तराष्ट्रीय मामलों के जानकार मानते हैं कि दरअसल,पुतिन अपने इस दौरे के जरिये अमेरिका को भी संदेश देना चाहते हैं.क्योंकि इस साल रूस के बाहर पुतिन की ये दूसरी विदेश यात्रा है. अपनी पहली यात्रा पर जून में वो अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन से मिलने जेनेवा गए थे. महामारी की वजह से ही पुतिन न तो जी-20 सम्मेलन में गए और न ही वे ग्लासगो में हुए जलवायु सम्मेलन में ही शामिल हुए. यही नहीं,उन्होंने चीन का अपना प्रस्तावित दौरा भी इसी कारण टाल दिया था.लिहाज़ा,उनके भारत दौरे का निष्कर्ष यही निकाला जा रहा है कि पुतिन ये दिखाना चाहते हैं कि उनकी यात्रा सिर्फ़ भारत के साथ ख़ास रणनीतिक रिश्ते को मज़बूत करने के लिए नहीं है बल्कि दोनों देशों के बीच रिश्तों की गहराई को एक नया आयाम देने के लिए महत्वपूर्ण पहल है.पुतिन इस हक़ीक़त को जानते हैं कि पिछले कुछ सालों में अमेरिका के साथ भारत की नज़दीकियां बढ़ने का सिलसिला लगातार जारी है.जाहिर है कि रूस इससे खुश नहीं है, लिहाज़ा ऐसे माहौल में पुतिन का भारत आना महत्वपूर्ण माना जा रहा है.

हालांकि पुतिन के इस दौरे की खास बात ये है कि वे भारत के लिए एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम को उपहार के बतौर अपने साथ ला रहे हैं.भारत ने साल 2018 में रूस से 5.43 अरब डॉलर में एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम ख़रीदने का सौदा किया था. जिसकी डिलीवरी होने से पहले वे उसका मॉडल भेंट करेंगे.

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ पीस एंड कॉन्फ्लिक्ट स्टडीज़ की विश्लेषक तारा कार्था के मुताबिक "इस सिस्टम की क्षमता 400 किलोमीटर तक है. इसका मतलब ये है कि ये सिस्टम पाकिस्तान में कहीं भी उड़ान भर रहे विमान को पकड़ सकता है. इसके साथ ही ये चीन के साथ सटी देश की सीमा की भी निगरानी कर सकता है. इसका मतलब ये है कि चीन जो अपनी तरफ़ हवाई अड्डे बना रहा है और मिसाइलें तैनात कर रहा है, ये सिस्टम उनसे भी सुरक्षा दे पाएगा." यही कारण है कि भारत इसे अपने सबसे पुराने दोस्त से मिलने वाली नायाब सौगात मान रहा है.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]

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