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दुनिया के लिए विनाशकारी तीन देशों की महत्वाकांक्षा

मानव सभ्यता को बेहतर बनाने का एक ही फार्मूला है सह-अस्तित्व. यानी सबके वजूद को समान रूप से सम्मान देना. हर देश को बगैर उसकी ताकत, उसके रूतबे, उसके रकबे, उसकी फौज के, उसकी संप्रभुता की रक्षा करना. यही बात इंसानों पर भी लागू होती है कि दुनिया तभी बेहतर होगी जब हर इंसान को सम्मान की जिंदगी मिले. ये काम युद्ध से नहीं हो सकता. लेकिन आज दुनिया का एक हिस्सा युद्ध की चपेट में है और वहां युद्ध का दरिया जितनी तेजी से बह रहा है, उसमें डर है कि कहीं हम विश्वयुद्ध के मुहाने पर खड़े ना हो जाएं.

युद्ध मानवता की मृत्यु की नीति है. युद्ध सभ्यता के संहार का सिद्धांत है. युद्ध भूमि में किसी सैनिक के बदन से खून ही नहीं बहता बल्कि उस खून की धार में किसी देवी के माथे का सिंदूर भी धुल जाता है. उस युद्ध के शोर में हमें मासूमों की चीख सुनाई नहीं पड़ती, लेकिन जब युद्ध खत्म होता है तो वो चीत्कार सदियों तक मानव सभ्यता को चैन की नींद सोने नहीं देती. युद्ध हमारे ही हाथों हमारी भावी पीढ़ियों के लिए किया गया सबसे बड़ा, सबसे घृणित, सबसे जघन्य अपराध है. युद्ध मनुष्यता को मिला सबसे बड़ा अभिशाप है. क्या इस अभिशाप और अपराध से मुक्ति नहीं है? ये मुक्ति मिल सकती है अगर दुनिया एक या दूसरे वर्ल्ड पावर के चस्के से मुक्त हो. किसी एक की महत्वाकांक्षा कइयों की साधारण सी जिंदगी को रौंदती चली जाती है.

आज अमेरिका, रूस और चीन दुनिया में तीन ऐसे देश हैं जो विश्व शक्ति होने का दम भरते हैं या सपना देखते हैं. ऐसे में क्या दुनिया को उस दिशा में नहीं बढ़ना चाहिए जहां किसी एक देश की दादागीरी ना चले? भारत इसका संकेत बहुत पहले दे चुका है. साल 2000 में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बिल क्लिंटन हिंदुस्तान आए थे. हैदराबाद हाउस में उन्होंने कहा कि कश्मीर दुनिया का सबसे खतरनाक स्थल है और ये भी कहा कि करगिल युद्ध उन्होंने रुकवाया. तब के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी साथ में थे. उन्होंने जवाब नहीं दिया. शायद कूटनीतिक मजबूरी रही हो. लेकिन राष्ट्रपति के आर नारायणन ने क्लिंटन को समझा दिया कि दुनिया कैसे बदल रही है. नारायणन ने पहली बात तो ये कही कि कश्मीर दुनिया का सबसे खतरनाक स्थल नहीं है. और दूसरी बात जो कही, वो ज्यादा महत्वपूर्ण है. नारायणन ने कहा कि जब दुनिया एक ग्लोबल विलेज (वैश्विक गांव) में बदल रही है तो इस गांव को सारे पंच मिलकर चलाएंगे, कोई चौधरी नहीं चलाएगा. अमेरिका बहुत नाराज हुआ.

लेकिन इस दुनिया की रक्षा, इस दुनिया के लोगों की जिंदगी, इस दुनिया को कायम रखना किसी अमेरिका की नाराजगी से कहीं ज्यादा अहमियत रखता है. भारत तब भी इस बात को समझता था, अब भी समझता है. आप याद कीजिए कि जब दुनिया अमेरिका और सोवियत संघ के शीत युद्ध में उलझी हुई थी, तब भारत ने एशियाई उप महाद्वीप के देशों को जोड़कर सार्क बनाया था. ये एक शानदार पहल थी, जिसमें भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, मालदीव, श्रीलंका जैसे देश सहयोग से खुद को बेहतर बनाते. 1980 के दशक का वा दौर एटम बम बनाने और दिखाने का दौर था. उस समय राजीव गांधी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में कहा था कि दुनिया बिना अणु शक्ति के एक दूसरे के सहयोग से चले, हमें इस दिशा में कदम बढ़ाना चाहिए. लेकिन दुनिया की छोड़िए, हमारे कदम ही बहक गए और हम एटम बम बनाने लगे. अगर एटम बम से रक्षा होती तो दुनिया में इतने युद्ध नहीं होते.

एटम बम बनाना हो या एटम बम बनाकर खुद को शक्तिशाली मानना हो, ये मनुष्य की घृणा से उपजी भावना है. रूस के महान साहित्यकार दोस्तोयेस्की ने कहा था कि आखिरकार इस दुनिया को सौंदर्य ही बचाएगा. लेकिन दुनिया कैसे बचेगी, इसकी एक बेहतर, उदार और मानवीय व्याख्या गांधी ने दी. गांधी ने बताया कि इस दुनिया को प्रेम बचाएगा. मानव मन को दो परस्पर विरोधी भावनाएं खींचती हैं. एक प्रेम, दूसरी घृणा. ये दुनिया बची हुई है तो इसलिए कि इसमें घृणा की तुलना में प्रेम की तीव्रता और चाहत ज्यादा है. जिस दिन घृणा की भावना प्रेम पर भारी पड़ेगी, दुनिया खुद ब खुद विनष्ट हो जाएगी. तब किसी के बाहुबल की जरूरत नहीं होगी, ना एटम बम की, ना लंबी चौड़ी फौज की.

आज रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन वही काम कर रहे हैं जो दूसरे विश्वयुद्ध का आरंभ करते हुए एडोल्फ हिटलर ने किया था. आज अमेरिका वही काम कर रहा है, जो उसका नैसर्गिक लक्षण है यानी किसी का जब तक दोहन हो, तब तक दोहन करो और वो मुश्किल में फंस जाए तो उसको अकेला मरने के लिए छोड़ दो. और चीन वो काम कर रहा है जो भावी इतिहास की किताबों में खतरनाक पन्ने जोड़ेगा. रूस और अमेरिका की जंग में वो अपने सर्वशक्तिमान होने के मनसूबे बांध रहा है. इन तीनों देशों की दादागीरी और मक्कारी दुनिया को तहस-नहस कर देगी.

इस बीच भारत ने जरूर एक अच्छा काम किया. जैसा भारत सरकार की तरफ से बताया गया, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से बात की. जो जानकारी दी गई, उसके मुताबिक प्रधानमंत्री मोदी ने पुतिन को शांति और संयम की सलाह दी. मोदी ने जो कहा है, वो भारत की स्वाभाविक पहचान के अनुरूप है. अगर पुतिन को सद्बुद्धि आए और यूक्रेन आने समय में अमेरिका और नाटो के चंगुल से खुद को आजाद कर ले तो दुनिया यूं ही आबाद रह सकती है. हमारी आने वाली पीढ़ियां हम पर गर्व कर सकती हैं कि देखो, कैसे समझ और संयम से युद्ध से बचा गया. नहीं तो युद्ध होगा तो कांपता कलेजा भले युद्ध घोष करे, लेकिन मानव मन इन अपराधों के नीचे दबा रहेगा.

(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)

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