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"मोदी" सरनेम में आखिर ऐसी क्या खास बात है?

राहुल गांधी को जिस "मोदी" सरनेम की मानहानि करने का दोषी ठहराते हुए दो साल की सजा सुनाई गई है, उसका वास्ता न तो किसी खास समुदाय से है और न ही किसी विशेष जाति से है. मोदी हिंदू भी हो सकते हैं, मुस्लिम भी और पारसी भी. ये भी जरुरी नहीं कि सारे 'मोदी' अन्य पिछड़ा वर्ग यानी OBC ही हों. कुछ इस श्रेणी में आते हैं, तो बाकी नहीं. मोदी सरनेम लगाने वालों की आबादी गुजरात के अलावा राजस्थान,उत्तर प्रदेश और बिहार में भी है. बीजेपी विधायक पुर्णेश मोदी की शिकायत याचिका पर सूरत कोर्ट में हुई जिरह के दौरान भी राहुल के वकील ने इस मुद्दे को उठाते हुए तर्क दिया था कि उनके मुव्वकिल ने  पुर्णेश मोदी को कोई व्यक्तिगक्त क्षति नहीं पहुंचाई है, क्योंकि हमारे देश में "मोदी" कोई विशिष्ट समुदाय नहीं है. लिहाज़ा,कानूनी आधार पर ये मानहानि का मामला बनता ही नही है. ये अलग बात है कि कोर्ट ने उनकी दलील नहीं मानी.

बता दें कि 14 अप्रैल 2019 को पुर्णेश मोदी ने सूरत के चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट की कोर्ट में Private Complaint दायर कर राहुल गांधी पर आरोप लगाया था कि उन्होंने अपने भाषण में सारे मोदियों को "चोर" बताकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत मोदी सरनेम वाले 13 करोड़ लोगों की मानहानि की है. अपनी शिकायत में उन्होंने ये भी कहा था कि देश में जो कोई भी अपने नाम के साथ "मोदी" सरनेम लगाता है, उन सबका वास्ता मोदी समाज के मोधवनिक समुदाय (Modhvanik Community)से है, जो समूचे गुजरात के अलावा अन्य प्रदेशों में भी बसते हैं. याचिका दायर होने से एक दिन पहले 13 अप्रैल को ही राहुल गांधी ने कर्नाटक के कोलार में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए नीरव मोदी और ललित मोदी का नाम लेकर सवाल उठाया था कि सारे चोर आखिर मोदी सरनेम वाले ही क्यों होते हैं? 

राहुल गांधी के वकील किरीट पान वाले ने कोर्ट में दलील दी थी कि पुख्ता तौर पर ऐसा कोई समुदाय नहीं है, जो "मोदी" नाम से पहचाना जाता हो.बाद में, उन्होंने एक अंग्रेजी अखबार से बातचीत में कहा कि ये तो पुर्णेश मोदी हैं, जिन्होंने (Modh Vanik Community)को मोदी समुदाय बता डाला, जबकि वास्तव में इसका कोई प्रमाण नहीं है. बेशक 13 करोड़ लोग ये सरनेम लगाते हैं, लेकिन उनकी पहचान एक अलग  मोदी समुदाय के तौर पर आज भी नहीं है. महज एक वाक्य को अपमान सूचक नहीं माना जा सकता,  क्योंकि राहुल ने किसी समुदाय का अपमान नहीं किया है.

Modhvanik Communityमें सिर्फ मोदी ही नहीं बल्कि अन्य कई जातियों के लोग भी आते हैं.उनके मुताबिक सही पहचान स्थापित होने पर ही कोई केस बनता है,जबकि यहां ऐसा नहीं है. दिलचस्प बात ये है कि शिकायतकर्ता पुरनेश मोदी,उनके वकील हसमुख लालवाला और राहुल के वकील किरीट पानवाला,तीनों ही मोधवनिक समुदाय से ताल्लुक रखते हैं. इस समुदाय के लोग मोधेश्वरी माता को अपनी कुलदेवी मानते हैं, जिनका मंदिर मेहसाणा जिले में मोधेरा सूर्य मंदिर के निकट स्थित है. पिछले साल अक्टूबर में गुजरात चुनाव से पहले पीएम मोदी भी इस मंदिर में गये थे. मोटे अनुमान के मुताबिक उत्तर व दक्षिण गुजरात में बसने वाले इस समुदाय की आबादी करीब 10 लाख है. गुजरात में मोदी सरनेम बनिया भी लगाते हैं,तो पोरबंदर के मछुआरे भी लगाते हैं,जो खरवास कहलाते हैं. इसी तरह लोहान्स कहलाने वाले व्यापारी भी यही सरनेम इस्तेमाल करते हैं.

अब सवाल उठता है कि क्या सारे मोदी OBC हैं, तो इसका जवाब है कि ऐसा नहीं है. यहां तक कि सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में आरक्षण के लिए जो केंद्रीय सूची बनी हुई है, उसमें भी "मोदी" नाम से किसी समुदाय या जाति का कोई उल्लेख नहीं है. कुल 104 समुदायों को ओबीसी मानने वाली इस सूची में एंट्री नंबर 23 पर गुजरात की जिन जातियों को ओबीसी माना गया है, वे घांची (मुस्लिम),तेली,मोध घांची तेली-साहू और तेली-राठौर हैं. ये सभी पारंपरिक रुप से खाद्य तेल के पेशे से जुड़े हुए हैं. इसी समुदाय के पूर्वी उत्तर प्रदेश में रहने वाले कुछ लोग गुप्ता तो कुछ मोदी सरनेम का उपयोग करते हैं. इसी तरह से केंद्रीय सूची में बिहार के कुल 136 समुदायों को ओबीसी माना गया है, लेकिन उसमें भी "मोदी" शामिल नहीं है. हालांकि, एंट्री नंबर 53 पर 'तेली' है.

इसी समुदाय से वास्ता रखने वाले बीजेपी नेता सुशील कुमार मोदी ने राहुल गांधी के खिलाफ अलग से केस दायर कर रखा है. राजस्थान से 68 समुदाय इस सूची में हैं, जिसमें तेली तो है, लेकिन "मोदी" ओबीसी की श्रेणी में नहीं है. पीएम मोदी घांची जाति से संबंध रखते हैं, जो OBC की केंद्रीय सूची में शामिल है. ये भी संयोग है कि अक्टूबर 2001 में मोदी के पहली बार गुजरात का मुख्यमंत्री बनने से महज डेढ़ साल पहले ही इस जाति को केंद्रीय सूची में शामिल किया गया था. मुम्बई से वास्ता रखने वाले टाटा स्टील के पूर्व चेयरमैन रूसी मोदी और फ़िल्म अभिनेता सोहराब मोदी पारसी थे, लेकिन वे ताउम्र अपने नाम के साथ "मोदी" सरनेम ही लगाते रहे.

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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