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(Source:  ECI | ABP NEWS)

साजिश या विफलता, बालासोर में इलेक्ट्रॉनिक लॉकिंग सिस्टम के साथ क्या हुआ, मौतों का कौन देगा जवाब...?

ओडिशा के बालासोर में 2 जून की शाम को ट्रेन एक्सीडेंट के बाद जो तस्वीरें देश के सामने आयी वो दिल दहलाने वाली थी. खौफनाक मंजर और राजनीतिक बयानबाजी के बीच रेलवे में एक साथ तीन ट्रेनों के टकराने की सीबीआई जांच की जा रही है. ऐसा शक है कि किसी तरह की 'छेड़छाड़' की गई है, जिसके चलते 275 से ज्यादा लोगों की जान चली गई और 1100 लोग घायल हुए. स्टेशनों और ट्रेनों में किसी तरह की जांच के लिए मुख्य तौर पर जीआरपी यानि गवर्नमेंट रेलवे पुलिस की जवाबदेही बनती है. लेकिन, ये ऐसे संदिग्ध 'आपराधिक कृत्यों' की जांच करने में सक्षम नहीं हैं. यही वजह है कि सरकार प्रतिष्ठित केन्द्रीय जांच एजेंसी सीबीआई से इस पूरे मामले को जांच करवा रही है. 

केन्द्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने रविवार को कहा कि बालासोर में हुई खौफनाक घटना के लिए रेलवे बोर्ड ने सीबीआई जांच की मांग की. रेल मंत्री की टिप्पणी उस वक्त आई, जब इससे पहले उन्होंने ये दावा किया इस घटना के लिए जिम्मेदार 'अपराधियों' और 'मुख्य वजह' का पता लगा लिया गया है. उन्होंने कहा कि प्वाइंट मशीन की सेटिंग बदल दी गई थी. ऐसा क्यों और कैसे किया गया इसका खुलासा जल्द जांच रिपोर्ट में किया जाएगा.

छेड़छाड़ का क्यों उठा सवाल?

रेल मंत्री ने कहा कि इस खौफनाक घटना की मुख्य वजह का पता लगा लिया गया है और मैं इसके बारे में अभी ज्यादा नहीं बता सकता, पहले रिपोर्ट आ जाने दीजिए. इस वक्त मैं सिर्फ इतना ही कह पाऊंगा कि इसकी असल वजह और आपराधिक कृत्य के लिए जिम्मेदार लोगों की पहचान कर ली गई है. समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, रेलवे के अधिकारियों ने भी 'तोड़फोड़' और इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग सिस्टम के साथ छेड़छाड़ की संभावना जताई.

लेकिन सवाल ये है कि कैसे कोरोमंडल एक्सप्रेस दूसरी पटरी लूप लाइन पर चली गई, जबकि इसे मेन लाइन पर होना चाहिए? हावड़ा से चेन्नई जा रही कोरोमंडल एक्सप्रेस को मेन लाइन से होकर गुजरना था. मालगाड़ी लूप लाइन पर लायी गई ताकि हावड़ा-चेन्नई कोरोमंडल एक्सप्रेस को रास्ता दिया जा सके. इस एक्सप्रेस ट्रेन को मेन लाइन से सीधे गुजरना था, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया.

स्टेशन एरिया में भारतीय रेलवे की तरफ से लूप लाइन्स इसलिए बनाई जाती है ताकि ज्यादा से ज्यादा ट्रेनें वहां पर खड़ी हो पाए और संचालन सुगमतापूर्वक हो पाए. पूरी लंबाई वाली मालगाड़ी को समायोजित करने के लिए लूप लाइनें आम तौर पर 750 मीटर लंबी होती हैं.

ऐसे कैसे हुआ हादसा?

दरअसल, कोरोमंडल एक्सप्रेस सीधे जाने की बजाय इंटरलॉकिंग सिस्टम में कुछ खामियों के चलते लूप लाइन पर चली गई और वहां पर खड़ी मालगाड़ी में जोरदार टक्कर मारी. इसके चलते भारी जान-माल का नुकसान हुआ. जैसे ही कोरोमंडल एक्सप्रेस मालगाड़ी से टकराई, उसके कुछ बॉगी टूटकर दूसरी लाइन पर चली गई, जहां से बेंगलुरु-हावड़ा सुपरफास्ट एक्सप्रेस गुजर रही थी और उसकी आखिरी के दो कोच से जा टकराई.


साजिश या विफलता, बालासोर में इलेक्ट्रॉनिक लॉकिंग सिस्टम के साथ क्या हुआ, मौतों का कौन देगा जवाब...?

रेलवे का इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग सिस्टम एक फेल-सेफ सिस्टम है. सिस्टम के फेल होने की ऐसी दुर्लभ स्थिति में ये बचाव करता है. यानी, उस स्थिति में एक्सप्रेस ट्रेन को रेड सिग्नल मिलना चाहिए था न कि खड़ी मालगाड़ी की ओर जाना चाहिए था. मुख्य यही वजह है जिसके चलते छेड़छाड़ का शक किया जा रहा है और रेलवे ने इस घटना की सीबीआई जांच की सिफारिश की. रेलवे बोर्ड ने कोरोमंडल एक्सप्रेस के लोको पायलट को ये कहते हुए वर्चुअली क्लीन चिट दे दी कि ये दुर्घटना इंटरलॉकिंग सिस्टम में किसी तरह की बदलाव के चलते हुई हैं.

इस बारे में अपना नाम ना जाहिर करने की शर्त पर रिटायर्ड सीनियर सेक्शन इंजीनियर ने एबीपी डिजिटल टीम के साथ बातचीत करते हुए बताया कि जब लूप लाइन में मालगाड़ी खड़ी थी और कोरोमंडल एक्सप्रेस मेन लाइन पर थी, सिग्नल नहीं दिया गया होगा. ऐसे में कैसे प्वाइंट लूप लाइन का सेट हो गया? सिस्टम के हिसाब से उसे लूप लाइन में नहीं आना चाहिए था. उन्होंने बताया कि रूट बटन और सिग्नल बटन दबाने पर अपने आप रूट सेटिंग हो जाती है. पहले असिस्टेंट स्टेशन मास्टर के जरिए रूट सेट किया जाता था. उसके बाद सिग्नल आता था. लेकिन अब रूट सेटिंग टाइप पैनल है, जिसमें असिस्टेंट स्टेशन मैनेजर को दो बटन दबाना है. इसके बाद अगर लाइन खाली है तो सिग्नल अपने आप आ जाएगा.

कैसे काम करता है सिग्नल

असिस्टेंट स्टेशन मास्टर, जो ऑन ड्यूटी गाड़ी पास करता है, वो गाड़ी को किस लाइन में लेना है, ये वही डिसाइड करते हैं. कंट्रोल रूम से बात करते वे गाड़ी को आगे बढ़ाते हैं या फिर उसे रोकते हैं. कंट्रोल रूम से बात करते ही वे इस बारे में कुछ करते हैं.

इलेक्ट्रोनिक लॉकिंग सिस्टम में अंडरग्राउंड वायर होता है, तो बालासोर ट्रेन एक्सीडेंट की स्थिति में या तो हो सकता है कि केबल कट गया हो. स्टेशन में पैनल होता है, वहां पर रिले रूम रहता है. रिले रूम से अंडर ग्राउंड केबल के जरिए तार से प्वाइँट और सिग्नल तक जुड़ा रहता है. ऐसा सुनने में आ रहा है कि वहां पर केबल का काम हुआ था. ऐसे में अगर केबल की तार कट गई होगी, क्योंकि जहां-तहां गड्ढा खोदा जा रहा है, रिमॉडलिंग का काम चल रहा है. हो सकता है कि केबल कट गया हो, ऐसे में अगर उसे जोड़ने में गलती हो गई हो या 2 नंबर की बजाय 3 नंबर को जोड़ दिया हो तो गलत इंडिकेशन आ सकता है. लेकिन ये सब संभावनाएं व्यक्त की जा रही है, लेकिन वास्तव में वहां पर क्या हुआ ये बात जो उस साइट पर होगा वही बता पाएगा.

वे बताते हैं कि कवच सिस्टम भी तब काम करता है जब एक ही लाइन पर दो गाड़ी आ रही हो. लेकिन अचानक इस तरह से हो तो कवच भी काम नहीं करेगा. कवच सिस्टम में दरअसल इंजन में टेक्नॉलोजी लगी होती है और वो स्टेशन से जुड़ा होता है. अगर उस लाइन पर गाड़ी दूसरी साइड से आ रही है तो इंजन में ऑटोमेटिक ब्रेक लगा देगा.

रिटायर्ड सीनियर सेक्शन इंजीनियर आगे बताते हैं कि आजकल ऐसे इंजन आ रहे हैं कि 90 सेकेंड तक इंजन में ड्राइवर कोई एक्टिविटी नहीं करता है तो इंजन ये समझता है कि मेरा ड्राइवर सो गया है. इसके बाद हूटर से इंजन के अंदर काफी तेज आवाज आती है. अगर उस हूटर इंजन बजने के बाद ड्राइवर सजग हो गया या एक्टिविटी दिखाई तो ठीक हैं, नहीं तो ऑटोमेटिक इंजन में ब्रेक लग जाता है. इसके बाद गाड़ी वही खड़ी हो जाएगी. हालांकि, अभी ये हर इंजन में नहीं है. 

वे आगे बताते हैं कि बालासोर में जिस तरह का ट्रेन एक्सीडेंट हुआ है, ऐसे में या तो वहां जरूर कोई काम हुआ है, जिसके चलते कोई गलती हो गई हो क्योंकि सिस्टम फेल नहीं हुआ है. काम होने के बाद उसकी पेस्टिंग ठीक से न किया हो, कुछ भी वजह हो सकती है. इलेक्ट्रेनिक लॉकिंग सिस्टम खराब तो होता ही है, लेकिन उसको ठीक करने के लिए स्टाफ मौजूद रहते हैं. केबल कटने पर सिस्टम फेल होता है और ये काम होने की वजह से बराबर कटता रहता है. ऐसे में जरूरी है कि जहां पर केबल गया हो वहां पर खुदाई न हो, क्योंकि डबल-ट्रिपल लाइनिंग चल रही होती है, ऐसे में इन चीजों का ख्याल रखना जरूरी है.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]

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