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मस्जिद में नमाज पढ़ने का हक भी छीनकर कहां ले जाओगे ये हमारा प्यारा हिंदुस्तान ?

भारत की कूटनीति को तय करने वाले तमाम नौकरशाहों की नजरें इस वक्त पड़ोसी देश चीन पर लगी हुई है कि वहां 16 तारीख को जब शी जिनपिंग लगातार तीसरी बार राष्ट्रपति बनेंगे, तो उसके बाद ये तानाशाह दुनिया पर किस तरह का कहर बरपाएगा. विदेश सेवा में पारंगत लोग ही ये तय करते हैं कि किस देश के साथ भारत की विदेश नीति क्या होनी चाहिए और उसके मुताबिक ही सरकार अपना अंतिम फैसला लेती है, लेकिन क्या आपने ये सोचा है कि चीन के तानाशाह के लिए इतनी फिक्रमंद होने वाली हमारी सरकार को अपनी आंखों तले हो रहा ऐसा ही तालिबानी बर्ताव आख़िर नजर क्यों नहीं आता? देश की राजधानी दिल्ली से महज कुछ किलोमीटर की दूरी पर बसे हरियाणा के गुरुग्राम की मस्जिद में नमाज पढ़ रहे लोगों को कुछ शरारती तत्व धमकाते हैं, जान से मारने की धमकी देते हैं और उन्हें मस्जिद से बाहर निकलने पर मजबूर कर देते हैं तो इसे हम क्या कहेंगे? 

भारत में रहने वाले करीब 14 फीसदी अल्पसंख्यक समुदाय के साथ जानबूझकर जो बर्ताव किया जा रहा है और उसे अगर कोई भी समझदार इंसान जायज ठहराता है, तो ये मान लीजिए कि हम अपने देश में एक ऐसे गृह युद्ध को न्योता दे रहे हैं, जिसे संभालना बेहद मुश्किल हो जाएगा. चीन में तो वहां के लोगों ने अपने राष्ट्रपति शी जिनपिंग की तीसरी बार ताजपोशी को लेकर जबरदस्त बग़ावत की है. हमारे यहां आम चुनाव 2024 में हैं, पर उससे पहले गुरुग्राम जैसी घटनाएं दोहराने से सबसे बड़ी आशंका ये उठती है कि क्या देश को एक बड़े साम्प्रदायिक फसाद की तरफ धकेला जा रहा है? ऐसी ताकतें चाहे जिस धर्म-मजहब या पंथ से ताल्लुक रखती हों, लेकिन हर राज्य सरकार का पहला कानूनी फ़र्ज़ ये बनता है कि वे इन पर सख्ती से लगाम लगाएं.

क्या है गुरुग्राम का पूरा मामला 

दरअसल, गुरुग्राम की वारदात ज्यादा चिंताजनक इसलिए है कि कोई भी उन्मादी भीड़ किसी और समुदाय के उपासना स्थल पर घुसकर उन्हें जबरन बाहर कैसे निकाल सकती है. खबर ये है कि गुरुग्राम के एक गांव में 200 से ज्यादा लोगों की भीड़ ने एक मस्जिद में तोड़फोड़ की और वहां नमाज अदा कर रहे लोगों पर हमला किया. साथ ही उन्हें गांव से निकालने की धमकी दी. पुलिस ने भोरा कलां गांव में बुधवार रात को हुई घटना को लेकर एफआईआर दर्ज कर ली है, लेकिन अभी तक किसी भी आरोपी की गिरफ्तारी की सूचना नहीं है. सुबेदार नजर मोहम्मद की ओर से दर्ज कराई गई शिकायत के मुताबिक भोरा कलां गांव में मुस्लिम परिवारों के सिर्फ चार घर हैं. उनके मुताबिक हंगामा बुधवार सुबह तब शुरू हुआ, जब राजेश चौहान उर्फ बाबू, अनिल भदौरिया और संजय व्यास के नेतृत्व वाली करीब 200 लोगों की भीड़ ने मस्जिद को घेर लिया और अंदर घुस आए और नमाज़ियों को गांव से निकालने की धमकी दी. पुलिस के मुताबिक, मोहम्मद ने अपनी शिकायत में कहा, “ रात में जब वे मस्जिद में नमाज़ अदा कर रहे थे तो भीड़ फिर से आ गई और नमाज़ियों पर हमला किया तथा नमाज़ अदा करने वाले हॉल पर ताला लगा दिया. उन्होंने हमें जान से मारने की धमकी भी दी.”

मस्जिद बनाने को लेकर हुई झगड़ा

बताया गया है कि जब तक पुलिस मौके पर पहुंची,सारे आरोपी भाग गए. इलाके के मुस्लिमों का कहना है कि "हमें गांव छोड़ने की धमकी दी गई. हर दिन हमें प्रताड़ित किया जा रहा है. जब हम नमाज पढ़ रहे थे तो कुछ लोगों ने हमला किया, जिसमें कुछ नमाजी घायल भी हुए हैं. उन्होंने वहां ताला भी लगा दिया था और उनके पास बंदूके थीं. हमारी मांग है कि पुलिस हमें सुरक्षा मुहैया कराए." हालांकि, इस घटना के बाद इलाके में पुलिस तैनात की गई, ताकि कानून-व्यवस्था को बनाए रखा जाये. लेकिन पुलिस के एसीपी (पटौदी) हरिंदर कुमार ने इंडियन एक्सप्रेस अखबार को कुछ अलग ही बात बताई है. उनके मुताबिक  "कुछ परिवारों ने मिलकर यहां अपनी एक छोटी मस्जिद बनाई थी, जिसके कारण दो समुदायों के बीच लड़ाई हुई थी. हमने स्थिति को नियंत्रित किया और प्राथमिकी दर्ज की है. इस केस में 8-10 आरोपी हैं, जो कि अभी फरार चल रहे हैं. हम दोनों समुदायों से बात कर रहे हैं और मामले को सुलझाने की कोशिश कर रहे हैं. कोई गंभीर रूप से घायल नहीं हुआ है.'

इस मामले के बाद उठ रहे कई सवाल 

मुस्लिम समुदाय के सदस्यों का दावा है कि मुस्लिम परिवार 100 से भी ज्यादा सालों से वहां रह रहे हैं और उन्होंने गांव में डेढ़-दो सौ लोगों के लिए एक छोटी सी मस्जिद बनवाई थी, जिसे लेकर अब बेवजह का बवाल पैदा किया जा रहा है. सवाल ये नहीं है कि सब कुछ चाहते हुए भी पुलिस-प्रशासन ऐसी घटनाओं से अपनी आंखें क्यों फेर लेता है लेकिन बड़ी फिक्र ये है कि गुरुग्राम का ये मॉडल देश के बाकी हिस्सों में भी आजमाया जाने लगा, तब क्या होगा? सवाल ये भी है कि इस 14 फ़ीसदी आबादी को क्या कोई सरकार अरब सागर में फेंकने की हिम्मत जुटा सकती है? अगर नहीं,तो फिर साम्प्रदायिक भाईचारा कायम रखने की तहज़ीब को आख़िर किसलिये मिटाया जा रहा है?

(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)

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