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लोकसभा चुनाव परिणाम 2024

UTTAR PRADESH (80)
43
INDIA
36
NDA
01
OTH
MAHARASHTRA (48)
30
INDIA
17
NDA
01
OTH
WEST BENGAL (42)
29
TMC
12
BJP
01
INC
BIHAR (40)
30
NDA
09
INDIA
01
OTH
TAMIL NADU (39)
39
DMK+
00
AIADMK+
00
BJP+
00
NTK
KARNATAKA (28)
19
NDA
09
INC
00
OTH
MADHYA PRADESH (29)
29
BJP
00
INDIA
00
OTH
RAJASTHAN (25)
14
BJP
11
INDIA
00
OTH
DELHI (07)
07
NDA
00
INDIA
00
OTH
HARYANA (10)
05
INDIA
05
BJP
00
OTH
GUJARAT (26)
25
BJP
01
INDIA
00
OTH
(Source: ECI / CVoter)

लालकृष्ण आडवाणीः जिन्होंने आजादी के बाद भारत की राजनीति को सबसे ज्यादा किया प्रभावित

साल 2023 में सरकार ने दो भारत रत्न देने की घोषणा की. एक बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर जिन्हें मरणोपरांत भारत रत्न घोषित किया गया, और दूसरा लालकृष्ण आडवाणी को. कर्पूरी ठाकुर से जुड़ी कहानियों से लोग एक निष्कर्ष पर पहुंचे कि वो सादगी और ईमानदारी के प्रतीक थे. हालांकि, लालकृष्ण आडवाणी चूंकि हमारे बीच हैं, और व्यक्ति के व्यक्तित्व पर हम भारतीय अक्सर तब ज्यादा ध्यान देते हैं जब वो हमारे बीच नहीं होता है, इसलिए हमने ध्यान नहीं दिया, लेकिन हम अगर लालकृष्ण आडवाणी के जीवन में झांकने की कोशिश करेंगे तो पाऐंगे कि वो भी सादगी, सरलता और ईमानदारी के जीवंत प्रतीक हैं. 

हर दाग से रहे दूर

जब जैन हवाला डायरी का मामला सामने आया तो उन्होंने इस्तीफा देने में एक मिनट भी नहीं लगया. बात 1996 की है, चार्जशीट में आडवाणी का नाम आया, उन्होंने तुरंत त्यागपत्र देने का फैसला किया. अटल नहीं चाहते थे कि वो वो इस्तीफा दें, लेकिन वो नहीं माने, आडवाणी ने फैसला किया कि जब तक जैन हवाला केस में वो बरी नहीं हो जाते तब तक वो संसद की दहलीज पर कदम नहीं रखेंगे. उन्होंने ऐसा ही किया भी. वह 1996 का चुनाव नहीं लड़े. 8 अप्रैल 1997 को जब कोर्ट ने आडवाणी को बाइज्जत बरी किया तो तब जाकर उन्होंने 1998 में गांधीनगर से लोकसभा का चुनाव लड़ा, जिस पर कांग्रेस के पीके दत्ता को  3 लाख वोटों से हराकर वो संसद पहुंचे. 96 साल के आडवाणी ने अपनी आंखों से करीबन पूरी एक शताब्दी को देखा है. उन्होंने अखंड भारत को खंड-खंड होते देखा है. देश की हत्या होते हुए, बंटवारा होते हुए करीब से देखा है, और शायद यही वजह थी कि कान्वेंट में पढ़ने वाले आडवाणी ने तुष्टीकरण के खिलाफ जो शंख बजाया, उसने जातियों में बंटे कटे समाज को हिंदुत्व के मंच पर एक साथ लाने में अहम भूमिका निभाई. बावजूद इसके वो हमेशा कट्टरपंथ के विरोधी बने रहे.

कमंडल से मंडल का जवाब
यह वो समय था, जब बीजेपी विश्व हिंदू परिषद के राम मंदिर अभियान पर जोर दे रही थी.  साथ ही, वीपी सिंह के नेतृत्व वाली सरकार का समर्थन भी कर रही थी. साल 1989 में हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी के 85 सांसद जीते थे. साल 1984 में यह संख्या केवल दो थी. राम मंदिर को चुनावी मुद्दा बनाने के बीजेपी के  विचार का उद्देश्य था जाति विभाजन को खत्म करते हुए बड़े हिंदू समाज को अपने वोटबैंक में बदलना. वीपी सिंह के मंडल आयोग वाले कदम ने एक ही समुदाय के भीतर जाति को धर्म के खिलाफ खड़ा कर दिया. इतना ही नहीं, उन्होंने स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले से घोषणा कर दी कि पैगंबर मोहम्मद के जन्मदिन पर सार्वजनिक अवकाश मनाया जाएगा. इससे बीजेपी के कमंडल अभियान को भी चुनौती मिली. एक महीने बाद, 25 सितंबर को बीजेपी के लालकृष्ण आडवाणी ने मंडल विरोधी आंदोलन और शरद यादव, राम विलास पासवान और लालू प्रसाद यादव जैसे सामाजिक न्याय के नए नेताओं को जवाब देने के लिए सोमनाथ से अयोध्या तक रथयात्रा शुरू की. वीपी सिंह ने हिंदुत्व अभियान में गहरी सेंध लगा दी थी.

कांग्रेस को सत्ता से बेदखल करने के लिए बीजेपी ने वीपी सिंह को बाहर से समर्थन दिया था, लेकिन वीपी सिंह ने जातिवाद का ऐसा अग्निबाण छोड़ा जिससे बीजेपी भी झुलस गई. कोई भी नेता इसका सीधा विरोध नहीं कर सकता था. ऐसा में आडवाणी संभले और रथारूढ़ होकर सोमनाथ से अयोध्या के लिए कूच किया. ये ऐसा दांव था जहां आकर सियासत और शतरंज एक हो गये. आडवाणी ने ऐसा दांव चला जो मंडल का सीधा विरोध तो नहीं था, लेकिन वीपी सरकार को धूल में मिलाने के लिए काफी था. हुआ भी वही. आखिरकार मजबूर होकर वीपी सिंह ने बिहार के तत्कालीन सीएम लालू प्रसाद यादव को आडवाणी को गिरफ्तार करने का आदेश दे दिया. 23 अक्टूबर को समस्तीपुर में रथयात्रा रोक ली गई. इसी के साथ बीजेपी ने केंद्र से समर्थन वापस लिया और जनता दल सरकार गिर गई. 1991 में चुनाव हुए, और वीपी सिंह को शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा.

1 तीर से कई निशाने

मंडल की काट,वीपी को मात,जातियों का साथ, ये सब लाल कृष्ण आडवाणी ने एक ही वार से साध लिया. वीपी सिंह के मंडल पर लिए फैसले से हिंदुत्व का विचार घायल हो चला था, लेकिन आडवाणी के अभियान ने उसे जितनी तेजी से ठीक किया, उसे आप किसी संजीवनी से कम नहीं मान सकते. पहली बार पता चला कि यूं ही आडवाणी को अटलजी का हनुमान नहीं कहते थे. आडवाणी का रथ सोमनाथ से जैसे जैसे अयोध्या की ओर बढ़ा वैसे हिंदुत्व का तेज मंडल से उपजे जातिवाद को ग्रसता गया. ये आडवाणी ही थे, जिन्होंने धर्म का सहारा तो लिया, लेकिन उसे उन्माद की ओर नहीं ले गए. वो पहले दिन से बाबरी ढांचे को लेकर कोर्ट की ओर देख रहे थे. इसलिए जब ढांचा टूटा तब भी बीजेपी में इस पर दुख व्यक्त करने वाले वो इकलौते नेता थे.

1980 से 1990 के बीच आडवाणी ने भाजपा को एक राष्ट्रीय स्तर की पार्टी बनाने के लिए अपना पूरा समय दिया, इसका परिणाम ये सामने आया कि 1984 में महज 2 सीटें हासिल करने वाली पार्टी को 1989 में लोकसभा चुनावों में 86 सीटें मिली जो उस समय के लिहाज से काफी बेहतर प्रदर्शन था. पार्टी की स्थिति 1992 में 121 सीटों और 1996 में 161 पर पहुंच गई. आजादी के बाद पहली बार कांग्रेस सत्ता से बाहर थी और बीजेपी सबसे अधिक संख्या वाली पार्टी बनकर उभरी. अपनी अच्छी सेहत के राज को लेकर उन्होंने कहा था कि ’’वो भूख से कम खाते हैं’’। बाबरी ढांचे से लेकर जिन्ना तक लीक से हटकर बोलने वाले आडवाणी ने ये भी जोर देकर कहा था कि वो कट्टरपंथी नहीं हैं।

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]

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