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जापान के पूर्व पीएम की हत्या, क्या किसी अंतरराष्ट्रीय साजिश का है नतीजा?

भारत के साथ रिश्तों की डोर को मजबूत बनाने वाले जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे की निर्मम हत्या से वैसे तो पूरी दुनिया सन्न है, लेकिन भारत की कूटनीति के लिए ये एक तरह को व्यक्तिगत क्षति है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और आबे के बीच बेहतरीन पर्सनल केमिस्ट्री बनी हुई थी और यही वजह है कि जापान के बाद भारत ने ही सबसे पहले उनकी याद में शनिवार को राष्ट्रीय शोक रखने की घोषणा की है.

वैसे तो दूसरे विश्व युद्ध के दौरान परमाणु बमों की विभीषिका में दुनिया की सबसे बड़ी तबाही झेल चुके जापान में हिंसा अपवादस्वरूप ही होती है, लेकिन एक सच ये भी है कि वहां राजनीतिक हत्या करने या फिर उसकी कोशिश करने का का पुराना इतिहास रहा है और शिंजो आबे ऐसी सियासी हत्या के चौथे शिकार बने हैं. हालांकि जापान का उन देशों में शुमार है, जहां बंदूक रखने को लेकर बेहद कड़े कानून हैं, इसलिए अमेरिका के उलट वहां गन कल्चर जैसा कोई माहौल नहीं है.

जापान में रविवार को वहां की संसद के ऊपरी सदन के चुनाव हैं और शिंजो आबे सत्तारुढ़ लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी के प्रचार के लिए एक चुनावी सभा में भाषण दे रहे थे, तभी उन पर पीछे से गोलियां मारी गईं. सुरक्षाकर्मियों ने हमलावर को मौके पर ही दबोच लिया, लेकिन उसने हत्या की जो वजह बताई है उसे सुनकर जापान के नेताओं से लेकर आम जनता तक हैरान है. आबे के पकड़े गए हत्यारे ने बताया कि वह उनकी नीतियों से नाखुश था. 

स्थानीय मीडिया के मुताबिक आबे पर हमला करने वाला उनसे असंतुष्ट था और वह उनकी हत्या के लिए काफी दिनों से प्लानिंग कर रहा था. पकड़ा गया 41 वर्षीय हत्यारा, जापानी मैरीटाइम सेल्फ डिफेंस फोर्स का पूर्व सदस्य है और उसने अपनी उसने अपनी निजी बंदूक से आबे पर गोलियां चलाई. पुलिस के अनुसार हत्यारे के घर में काफी मात्रा में विस्फोटक भी मिले हैं. उसकी पहचान तेत्सुया यामागामी (41 साल) के तौर पर हुई है. जापानी टीवी ‘एनएचके’ ने बताया कि हमलावर साल 2000 में तीन साल के लिए समुद्री आत्म-रक्षा बल में अपनी सेवाएं दे चुका है.

जापानी पत्रकार तोबिअस हैरिस ने शिंजो आबे पर हमले को लेकर कई ट्वीट किए हैं. उन्होंने अपने ट्वीट में कहा है कि "जो भी जापानी चुनावी प्रचार-अभियान को जानते हैं, उन्हें पता है कि कैंपेन के दौरान नेता और मतदाताओं के बीच की दूरी बेहद कम होती है. हालांकि आबे के साथ सुरक्षा अधिकारी भी होंगे, लेकिन पूरे कैंपेन में सुरक्षा को लेकर कोई कड़ा पहरा नहीं होता है." इसलिए ऐसे मौकों पर किसी भी बड़े नेता को निशान बनाना आसान होता है.

हालांकि जापान में दो दशक बाद ऐसी हाई प्रोफाइल राजनीतिक हत्या हुई है, जिसने पूरे देश को हिलाकर रख दिया है. साल 2002 में डेमोक्रेटिक पार्टी के बड़े नेता और लेखक कोशी इसी देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान चला रहे थे. उन्हें धमकी मिलती रही, लेकिन उन्होंने अपना अभियान जारी रखा. अचानक एक दिन उन्होंने एलान किया कि उनके हाथ कुछ ऐसा लगा है, जिससे सरकार हिल जाएगी. अगले दो दिन बाद ही कोशी की घर में घुसकर हत्या कर दी गई. हत्यारे ने अपना जुर्म कबूल भी कर लिया, लेकिन असल में इसके पीछे कौन था, वो आज भी एक रहस्य ही बना हुआ है.

शिंजो आबे की हत्या की तरह ही 15 मई 1932 को हुई वारदात ने भी जापान को हिलाकर रख दिया था. तब जापान के तत्कालीन प्रधानमंत्री इनुकाई सुयोसी को 12 नौसैनिक अफसरों ने घेरकर गोलियों से भून दिया था. देश के इतिहास में उसे सबसे नृशंस हत्या माना जाता है. दरअसल उस यात्रा पर चार्ली चैप्लिन को भी प्रधानमंत्री के साथ जाना था तो अधिकारियों को लगा कि चैप्लिन अमेरिकी हैं और अगर वो भी मारे गए तो युद्ध छिड़ जाएगा. हालांकि चार्ली ने अपना कार्यक्रम बदल लिया था और वो बच गए.

हालांकि शिंजो आबे की हत्या करने वाले हमलावर ने जो वजह बताई है, वो जापानी जांच एजेंसियों के गले नहीं उतर रही है. उनका कहना है कि अगर आबे की नीतियों से इतना ही नाखुश था तो पैड पर रहते हुए भी उन पर हमला करने की कोशिश कर सकता था. इसलिए हत्याकांड की जांच का सबसे अहम पहलू अब ये है कि कहीं ये किसी बड़ी अंतराष्ट्रीय साजिश का नतीजा तो नहीं है?

वैसे पिछले दो दशकों में भारत-जापान के रिश्तों में आई गर्मजोशी को समझने वाले जानकर कहते हैं कि "भारत में बुलेट ट्रेन परियोजना के अलावा किसी दूसरी चीज़ के लिए शिंजो आबे को याद किया जाएगा तो वो है क्वॉड समूह का गठन. अमेरिकी, जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत इस समूह पर एक साथ आए. साल 2017 में जब दोबारा से इसे रिवाइव किया गय. तब उसमें शिंज़ो आबे की भूमिका अहम रही. यूं तो भारत और जापान के बीच सामरिक सहयोग सबसे ज़्यादा है, लेकिन क्वॉड समूह के ज़रिए जबसे ये चार देश साथ आए हैं, उस वजह से वैक्सीन से लेकर सिक्योरिटी तक हर स्तर पर सहयोग बढ़ा है."

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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