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दुश्मन के रेडार को चकमा, समुद्र की लहरों पर 52 KMPH की स्पीड... जानें, चीन-पाक से मुकाबले में विंध्यगिरि युद्धपोत क्यों अहम

भारतीय नौसेना के प्रोजेक्ट 17ए के छठे स्टील्थ फ्रिगेट विंध्यगिरि को राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु ने 17 अगस्त को लांच किया और जलावतरण के साथ ही भारतीय नौसेना की सामरिक क्षमता में खासी वृद्धि हो गयी. प्रोजेक्ट 17ए फ्रिगेट्स प्रोजेक्ट 17 (शिवालिक क्लास) फ्रिगेट्स का  ही एक क्लास है, जिसमें बेहतर स्टील्थ फीचर्स, उन्नत हथियार, सेंसर और प्लेटफ़ॉर्म प्रबंधन सिस्टम हैं. एडवांस्ड स्टील्थ फ्रिगेट्स का डिज़ाइन भारतीय नौसेना के लिए तकनीकी रूप से उन्नत युद्धपोतों को डिजाइन करने में युद्धपोत डिजाइन ब्यूरो की ताकत को भी दिखाता है. चीन की विस्तारवादी नीति का प्रतिकार करने के लिए भारतीय नौसेना को हर तरह से तैयार रहना ही होगा. 

नौसेना को करना होगा मजबूत

नौसेना की भूमिका भारतीय रक्षातंत्र में बढ़ती जा रही है और खासकर जिस तरह से समुद्र के रास्ते आर्थिक गतिविधियां बढ़ती जा रही हैं और जिस तरह से हिंद-प्रशांत क्षेत्र में जो तनाव है, चीन की विस्तारवादी नीति को लेकर, उसे देखते हुए नौसेना की ताकत लगातार बढ़ाई जा रही है. एक बड़ा तथ्य जो हाल के चार-पांच वर्षों में जुड़ा है, वह ‘आत्मनिर्भरता’ का है. इसी का नतीजा है प्रोजेक्ट विंध्यगिरि. परियोजना 17ए के तहत यह छठा युद्धपोत है. तकनीकी भाषा में इसे ‘फ्रिगेट’ कहते हैं. अच्छी बात ये है कि इसमें कई स्तरों पर काम चल रहा है. ऐसे सात पोत बनने हैं, जिसमें से ये छठा युद्धपोत था, जिसका जलावतरण 17 अगस्त को माननीया राष्ट्रपति जी के हाथों हुआ.

पाकिस्तान के साथ मिलकर खेलता चीन  

विंध्यगिरि एक प्रक्रिया के तहत फ्रिगेट को पाना है. कोशिश यह रहती है कि नौसेना की जो बहुद्देश्यी भूमिका है, जैसे नजर रखना, दुश्मनों पर निगरानी रखना. वह निगरानी भी कई स्तरों पर होती है. जो सबमरीन हैं, उनकी निगरानी करना भी एक काम है. नौसेना ने यह भी कहा है कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में, भारत की जहां तक पहुंच है, यानी मलक्का जलडमरूमध्य तक, जो चीनी नौसेना की गतिविधियां बढ़ी हैं. चीन के फ्रिगेट हों या युद्धपोत, उन्हें पाकिस्तान की बंदरगाहों पर भी देखा गया है. चीन की तरफ से एक तरह का जाल बिछाने की कोशिश है, जिसके कारण वह पाकिस्तान में, श्रीलंका में भी बंदरगाह बना रहा है, वहां भी युद्धपोत डॉक करते देखे गए हैं. इन सबको देखते हुए भी नौसेना को अद्यतन किया जा रहा है और भारत जानता है कि उसे किसी भी हालत के लिए तैयार रहना है.

भारत है हर अनहोनी के लिए तैयार

इसके अलावा हमारा दूसरा विमानवाहक पोत सेवा में है. खासकर युद्धपोतों की जो लगातार निगरानी रख सकें. इसकी के तहत प्रोजेक्ट 17ए के तहत इनका निर्माण हो रहा है. यह भी याद रखना चाहिए कि प्रोजेक्ट 75 के तहत कलवरी टाइप के जो सबमरीन थे, उनको भी और आगे बढ़ाया जा रहा है. पहले चरण में हमने खुद मुंबई के मडगांव डॉकयार्ड में छह पनडुब्बियां बनाईं जो फ्रिज डिजाइन का था. अब इसे और आगे बढ़ाया जा रहा है. तो, हर स्तर पर तैयारियां हो रही हैं, भारत किसी भी चुनौती के लिए तैयार है. ब्रह्मोस का सफल परीक्षण अभी हाल ही किया गया था. उसके बाद इसका वायुसेना का जो वैरिएंट है, उसे विकसित किया गया और वह अब वायुसेना का हिस्सा है. सबसे पहले हमने आइएनएस विशाखापट्टनम से ब्रह्मोस का नौसैनिक प्रारूप लांच किया गया था.

अब जो नौसैनिक प्रारूप है, उसे भी इससे लांच किया जा सकता है. 300 किलोमीटर की दूरी तय करने के कारण यह मध्यम दूरी की मिसाइल कही जा सकती है. जैसा कि पहले भी बताया है, यह फ्रिजेट कहा जाता है. तो, विंध्यगिरि और ऐसे तमाम पोत निगरानी रख सकता है, पनडुब्बियों पर वार कर सकता है औऱ मिसाइलों औऱ दुश्मनों के हथियार पर भी वार कर सकता है. विंध्यगिरि की जो गन है, वह अत्याधुनिक है. वह दुश्मनों के हेलिकॉप्टर वगैरह पर भी हमला कर सकता है. यह सोने में सुहागा की तरह है.

नौसेना है हमारी सुरक्षा का अहमतरीन हिस्सा

नौसेना चूंकि समंदर में रहती है, उत्तर भारत से अलग, तो हमें लगता है कि नौसेना कम ध्यान में है, दूर रहती है, ऐसी आम धारणा है. हालांकि, हमारे स्पेशल इकोनॉमिक जोन से लेकर 7 हजार किलोमीटर से अधिक की समुद्री सीमा की निगरानी नौसेना के जिम्मे है. अरब सागर से पूर्वी अफ्रीका तक और हिंद-प्रशांत जो सीमा है, वहां जो हमारे व्यापारिक हित हैं, उनकी भी रक्षा नौसेना करती है. चाहे वह, समुद्री लुटेरों से हो, दुश्मन देशों या फिर चीन की विस्तारवादी नीति से हो. जहां तक पाकिस्तान की बात है, तो वह तेजी से इस समय अपनी नौसेना का विकास कर रहा है. वह खासकर कॉर्बेट्स और फ्रिगेट्स पर जोर दे रहा है और कहा जा रहा है कि जिस रफ्तार से वह बढ़ रहा है, वह अगले दस से पंद्रह वर्षों में बहुत कुछ पा लेगा. चीन अपने तीसरे एयरक्राफ्ट-कैरियर पर काम कर रहा है, उसने पनडुब्बियां और पोत तैनात कर रखे हैं. भारत के संदर्भ में देखें तो उसे घेरने की कोशिश कर रहा है, जिबुती में तो चीन का नौसैनिक अड्डा ही होगा. आनेवाले समय में पूरा ध्यान हिंद-प्रशांत क्षेत्र पर ही आएगा. नौसेना सिर्फ रक्षा के लिहाज से ही अहम नहीं है, हम जानते हैं कि मालाबार एक्सरसाइज जैसे जो दूसरे एक्सरसाइज हैं, क्वाड है, आसियान है, उससे भारतीय नौसेना की रीच बढ़ी है.

आनेवाले समय में गतिविधियां और सघन होंगी. साउथ चाइना सी से लेकर ईस्ट चाइना सी में भी संकेंद्रण हो रही है औऱ नौसेना इसी लहजे से तैयार हो रही है. एक बात हमें नहीं भूलनी चाहिए कि नौसेना तीनों अंगों में सबसे अधिक आत्मनिर्भर है. इसका अगर प्रतिशत में हिसाब लगाएं तो वह 75 फीसदी है, यानी युद्धपोत हों या हथियार, वह सब भारत अपने दम पर ही निर्मित करता है.

नौसेना हमेशा से ही सुरक्षा का काम करती रही है. भारत की नजह हमेशा इस पर रही है. समस्या रही है चीन की विस्तारवादी नीति. अंडमान सागर या अंडमान-निकोबार में हम अपनी क्षमता को बढ़ा रहे हैं, उसी के आसपास कई द्वीप हैं, जिन पर म्यांमार का कब्जा है. उन द्वीपों को चीन को लीज पर दे दिया गया है. तो, इसका मतलब क्या हुआ? इसका अर्थ यह समझिए कि मलक्का जलडमरूमध्य से लेकर हिंद-प्रशांत क्षेत्र में जो तनाव कायम हो रहा है, चीन उसकी पुख्ता तैयारी कर रहा है. भारतीय नौसेना भी उसी हिसाब से पूरी तरह तैयार है, भविष्य की तैयारी कर रही है.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]  

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