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भारत को आंतरिक मामलों में नहीं चाहिए विदेशों से 'उधार का ज्ञान', अपने लोकतंत्र पर है पूरा भरोसा

अमेरिका ने हाल में ही केजरीवाल की गिरफ्तारी और कांग्रेस के फ्रीज एकाउंट पर टिप्पणी की है. दोनों मामलों में अमेरिका के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि इन मुद्दों पर अमेरिका की नजर है. इस मामले में भारत के विदेश मंत्रालय ने भी अमेरिकी मिशन की कार्यवाहक उप-प्रमुख को तलब किया था. जानकारों का कहना है कि भारत के निजी मामलों में अमेरिका दखल कर रहा है. भारत और अमेरिका के संबंध हालिया दिनों में काफी ठीक जा रहे हैं, लेकिन लेकिन अमेरिका को भारत के आंतरिक मामलों में दखल देने से बचना होगा. हालांकि इन दो मुद्दों पर ही नहीं बल्कि भारत के कई मामलों में अमेरिका दखल देता आ रहा है.

अमेरिका की दखलंदाजी नागवार

संविधान के अनुच्छेद 370 का मामला हो, नागरिकता संशोधन कानून का मामला हो,  या फिर कोई अन्य मामला हो. अक्सर अमेरिका के कानून बनानेवाले और विदेश मंत्रालय भारत के आंतरिक मामलों में दखल देते आ रहे है. ऐसे में भारत अपने यहां के मामलों में अमेरिका को दखल अंदाजी नहीं करने देगा. ये अंतरराष्ट्रीय न्यायिक व्यवहार है. यह संबंधों में भी खलल डाल सकता है. अमेरिका आधुनिक विश्व का सबसे पुराना लोकतंत्र है, लेकिन भारत का वैशाली गणराज्य पहला लोकतंत्र था दुनिया का और अभी भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है. दोनों के बीच में एक साझा मुल्य है. लोकतांत्रिक मुल्यों के आधार पर भी भारत और अमेरिका दोनों देश आगे की ओर बढ़ रहे हैं. इसलिए अमेरिका को भारत के लोकतंत्र में एक विश्वास रखना होगा, भारत के आंतरिक मामलों में दखल देने से बचना होगा. भारत अपने नियम और कानून के हिसाब से ही देश के मसले को देखेगा.  

भारत का परस्पर सम्मान में भरोसा 

भारत अमेरिका के आंतरिक मामलों में कभी भी दखल नहीं देता है. अमेरिका में कई तरह के विषय है, उसमें नस्लभेद का मामला एक है, वहां पर कई तरह की हिंसा होती रहती हैं, हथियार कंट्रोल को लेकर कई तरह की कमजोरियां है. उसमें कई लोगों की जान जाती है, उसमें भारत के लोग भी कई बार जद में आ चुके हैं, लेकिन आज तक इस तरह के मामलों में भारत ने बड़ी जिम्मेदारी दिखाते हुए आधिकारिक तौर पर कभी अमेरिका के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं किया है. क्योंकि भारत नियमों पर आधारित व्यवस्था का सम्मान करता है. जो यूएन में एक व्यवस्था बनाई गई थी, जिसमें कहा गया था कि राष्ट्रों को एक दूसरे के आंतरिक मामलों में कोई हस्तक्षेप करने से बचना चाहिए. अ-हस्तक्षेप की नीति ही भारत की विदेश नीति का एक अभिन्न अंग है, और भारत इसका जिम्मेदारी से पालन भी करता है. भारत अमेरिका से ये अपेक्षा भी करता है कि जो अमेरिका लोकतंत्र की दुहाई देता है, लोकतंत्र के मुल्यों के बारे में बात करता है, उसे लोकतंत्र की भावना का सम्मान करते हुए दूसरे के आंतरिक मामलों में बोलने से बचना चाहिए. अमेरिका के बयान के बाद भारत ने भी कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है, और उम्मीद है कि इससे शायद अमेरिका कुछ सीखेगा.

आज का नहीं भारत में लोकतंत्र

भारत विश्व का बड़ा लोकतांत्रिक राष्ट्र है. भारत के लोकतंत्र से पूरे विश्व को शिक्षा मिलती रही है. भारत को लोकतंत्र की जननी के रूप में भी देखा जा सकता है. लोकतांत्रिक प्रक्रिया वैदिक काल से ही देखने को मिलती है. आजादी के समय भी देखें तो महात्मा गांधी, भीमराव आंबेडकर, रवींद्रनाथ टैगोर जैसे बड़े नेताओं ने भी लोकतंत्र को गहरा और मजबूत करने का काम किया है. भारत के पड़ोसी देशों में देखा जाए तो लोकतंत्र की हालत सही नहीं है लेकिन भारत का लोकतंत्र काफी उतार-चढ़ाव के बाद 21वीं सदी में भी काफी मजबूत है. भारत के लोकतंत्र की तुलना अमेरिका से करें तो लोकतंत्र में जो महात्मा गांधी ने एक्सपेरिमेंट किया था, उससे अमेरिका के मार्टिन लूथर किंग ने भी शिक्षा ली थी, उसमें अहिंसा आंदोलन हो या स्वतंत्रता के समय अन्य आंदोलनों की बात हो. मार्टिन लूथर किंग खुद महात्मा गांधी को एक मार्गदर्शक के रूप में मानते थे. अमेरिका के लोकतंत्र को मजबूत करने में भारत ने कई बार अहम निर्देशन दिया है. इसके बावजूद भारत के लोकतंत्र पर ऊंगली उठाना और कहना कि सब कुछ कानूनी तरीके से होना चाहिए, ये भारत को मंजूर नहीं है. जो भारत दूसरे राष्ट्रों को लोकतंत्र की पाठ पढ़ाता उसे लोकतंत्र की शिक्षा अमेरिका द्वारा दी जा रही है, ये भारत की ओर से स्वीकार्य नहीं है. इसी प्रकार जर्मनी के  राजदूत को भी बुलाया गया और भारत की ओर से कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की गई है. इस तरह से जर्मनी और अमेरिका दोनों को भारत के आंतरिक मामलों में बोलने से बचना चाहिए.

सरकार और मोदी की छवि पर प्रहार

वर्तमान की सरकार, यानी की पीएम मोदी की सरकार के खिलाफ पूरे विश्व में भ्रम और भ्रांतियां फैलाने का काम चल रहा है. ये सब उस समय हो रहा है, जब भारत में लोकसभा के चुनाव होने वाले हैं. ऐसा लग रहा है कि अमेरिका और यूरोप को वामपंथी, उदारवादी और कुछ इस्लामिक और कुछ उद्योगपतियों का भी साथ मिल रहा है कि वर्तमान की सरकार को निशाना बनाना है और उनकी छवि को नीचा गिराना है. भारत के चुनाव को प्रभावित करने के लिए अमेरिका और यूरोप में कई ग्रुप सक्रिय भी हो सकते हैं. इस पर भी भारत को कड़ी नजर रखनी होगी. चाहें वो किसी मीडिया की रिपोर्ट क्यों न हो, सब में एक उद्देश्य दिखाई देता है. इस पर ध्यान देना होगा कि आखिरकार वो कौन सी लॉबी और कौन सा ग्रुप है जो सरकार को नीचा दिखाने पर काम कर रही है. हो सकता है कि ऐसी रिपोर्ट या चीजों को देखकर अमेरिका या जर्मनी या कोई अन्य देश इस तरह की टिप्पणी कर देते हैं. पीएम मोदी और उनके नीतियों को नीचा दिखाने के साथ ही भारत के चुनाव को प्रभावित करने की कोशिश चल रही है. ऐसी साजिशों को रोकने के लिए जो भी कदम हो उठाये जाने चाहिए और जो भी कार्रवाई उचित हो उसे किया जाना चाहिए. 

संबंधों में आ सकती है दरार

भारत ने वॉशिंगटन को नसीहत दी है कि भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप ना करें. अगर इसके बावजूद अमेरिका के विदेश मंत्रालय मैथ्यू मिलर की ओर से कोई प्रतिक्रिया दी जाती है, तो ये भी सवाल उठता है कि भारत का अगला कदम क्या होगा? भारत का सम्मान अमेरिका ने नहीं किया है. फिर से उसी बयान को दोहराया गया है. अगर गैर जिम्मेदार तरीके से भारत के मामलों में अमेरिकी सरकार के द्वारा दखल दी जाती है तो भारत और अमेरिका के जो रणनीतिक संबंध है उस पर नकारात्मक असर देखने को मिल सकता है. ये जगजाहिर है कि भारत अपने आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप किसी को नहीं करने देता है. इससे पहले भी ऐसे मामलों में भारत सरकार ने कड़ी प्रतिक्रिया जताई है. विश्व के किसी भी देश द्वारा भारत के आंतरिक मामलों में दखल दिया जाएगा, तो भारत उस पर आपत्ति जताएगा. अगर अमेरिका ने अपना स्टैंड नहीं बदला तो आने वाले समय में उनके बीच साझेदारी और संबंधों पर नकारात्मक प्रभाव देखने को मिल सकता है. 

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ़ लेखक ही ज़िम्मेदार हैं.] 

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