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राष्ट्रपति ने अपने पहले ही भाषण में बता दी 75 साल की फर्श से अर्श पर आने की दास्तां

स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू का राष्ट्र के नाम दिया गया पहला संबोधन कई मायने में महत्वपूर्ण है. विभाजन का दंश झेलकर पिछले 75 साल के सफ़र में भारत ने जिस तरह से फर्श से अर्श तक पहुंचने की ऊंचाई को छूकर दिखाया है, वह दुनिया में एक मिसाल है. राष्ट्रपति ने अपने भाषण में 75 साल की इस गौरव यात्रा में हर तबके के योगदान का जिक्र किया, लेकिन महिलाओं, गरीबों व जनजातीय समुदाय के उत्थान पर उनका फोकस कुछ ज्यादा ही रहा. चूंकि राष्ट्र के नाम उनका ये पहला संबोधन था, लिहाज़ा लोगों ने इसे बड़ी गौर से सुना. अगर विश्लेषण करें तो वे देशवासियों पर अपनी ये छाप छोड़ने में कामयाब रहीं कि मेहनत के बल पर एक गरीब भी अपना हर सपना पूरा कर सकता है और भारत के भाग्य विधाता बनने का यही सबसे बड़ा रहस्य है.

राष्ट्रपति अपने संबोधन में देशवासियों को ये याद दिलाना भी नहीं भूलीं कि आज यानी 14 अगस्त के दिन को विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस (Partition Horrors Remembrance Day) के रूप में मनाया जा रहा है. इस स्मृति दिवस को मनाने का उद्देश्य सामाजिक सद्भाव, मानव सशक्तीकरण और एकता को बढ़ावा देना है. अगर गौर किया जाए तो इस दिवस को मनाने के पीछे का मकसद भी यही है कि समाज में बढ़ती हुई असहिष्णुता खत्म करते हुए साम्प्रदायिक एकता को और अधिक मजबूत किया जाये.

25 साल बाद देश आज़ादी का शताब्दी महोत्सव मनायेगा और इसके लिए सरकार अभी से कई तरह की योजनाओं का खाका तैयार करने में जुट गई है. शायद इसीलिए राष्ट्रपति मुर्मू ने स्वाधीनता सेनानियों को नमन करते हुए कहा कि उन्होंने अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया ताकि हम सब एक स्वाधीन भारत में सांस ले सकें. ये उत्सव का मौका है. हर घर तिरंगा अभियान चल रहा है. आज हमारे देश के कोने-कोने में तिरंगा शान से लहरा रहा है. भारत हर दिन प्रगति कर रहा है. देश में सभी को समान अधिकार हैं. हमारा संकल्प है कि वर्ष 2047 तक हम अपने स्वाधीनता सेनानियों के सपनों को पूरी तरह साकार कर लेंगे.

देश को आजादी मिलने के वक़्त से ही महिलाओं को मिले बराबरी के हक का जिक्र करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि अधिकांश लोकतान्त्रिक देशों में वोट देने का अधिकार प्राप्त करने के लिए महिलाओं को लंबे समय तक संघर्ष करना पड़ा था, लेकिन हमारे गणतंत्र की शुरुआत से ही भारत ने सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार को अपनाया, लेकिन कितना अच्छा होता कि अगर राष्ट्रपति अपने भाषण में संसद और विधानसभाओं में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण देने के बरसों पुराने लटके मुद्दे का भी जिक्र कर देतीं तो देश की आधी आबादी और भी ज्यादा खुश होतीं कि सबसे बड़ी आवाज़ भी उनके साथ है.

'आजादी का अमृत महोत्सव' मनाने का उल्लेख करते हुए उन्होंने बताया कि महात्मा गांधी द्वारा निकाली गई दांडी यात्रा की स्मृति को फिर से जीवंत रूप देकर इसे मार्च 2021 में शुरू किया गया. आदिवासी समुदाय में जन्मीं राष्ट्रपति मुर्मू ने सरकार की प्रशंसा करते हुए कहा कि पिछले वर्ष से हर 15 नवंबर को ‘जन-जातीय गौरव दिवस’ के रूप में मनाने का सरकार का निर्णय स्वागत-योग्य है. हमारे जन-जातीय महानायक केवल स्थानीय या क्षेत्रीय प्रतीक नहीं हैं बल्कि वे पूरे देश के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं.

बेटियों को देश का सुनहरा भविष्य बताते हुए राष्ट्रपति ने इसे जोर देकर रेखांकित किया कि भारत के नए आत्मविश्वास का स्रोत देश के युवा, किसान और सबसे बढ़कर देश की महिलाएं हैं. महिलाएं अनेक रूढ़ियों और बाधाओं को पार करते हुए आगे बढ़ रही हैं. सामाजिक और राजनीतिक प्रक्रियाओं में उनकी बढ़ती भागीदारी निर्णायक साबित होगी. आज हमारी पंचायती राज संस्थाओं में निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों की संख्या चौदह लाख से कहीं अधिक है. हमारे देश की बहुत सी उम्मीदें हमारी बेटियों पर टिकी हुई हैं. समुचित अवसर मिलने पर वे शानदार सफलता हासिल कर सकती हैं. हमारी बेटियां फाइटर पायलट से लेकर स्पेस साइंटिस्ट होने तक हर क्षेत्र में अपना परचम लहरा रही हैं. कुल मिलाकर राष्ट्रपति ने अपने संबोधन में समाज के हर पहलू को छूते हुए सभी पीढ़ियों के योगदान को याद किया है.

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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