आपातकाल: देश के लिए काला अध्याय तो कांग्रेस के लिए न मिट पाने वाला दाग

भारत के गौरवशाली इतिहास में 25 जून एक ऐसी तारीख है जिसे सिर्फ काले दिन के रुप में ही पिछले 46 सालों से याद किया जा रहा है और आने वाली न जाने कितनी पीढ़ियां इसे इसी रुप में याद करती रहेंगी. 46 बरस पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगाकर लोकतंत्र की हत्या तो की ही थी, साथ ही देश की सबसे पुरानी कहलाने वाली अपनी ही पार्टी कांग्रेस के माथे पर भी ऐसा काला दाग लगा दिया जिसे चाहकर भी वह आज तक धो नहीं पायी है और शायद कभी धो भी नहीं पायेगी.
आपातकाल के दौरान लोगों के मौलिक अधिकार छीन लिए गए थे. प्रेस पर सेंसरशिप लगाकर उसका मुंह बंद कर दिया गया और देशभर में आरएसएस के लाखों स्वयंसेवकों को जेलों में डाल दिया गया. लेकिन अगर इसका दूसरा पहलू देखें तो अगर इंदिरा सरकार ने ये अत्याचार न किया होता तो आज देश की राजनीति की शायद ये तस्वीर भी न बन पाती. उन्हीं दिनों की यातना व संघर्ष की आग ने देश की राजनीति को एक ऐसी नयी पौध द जिसने देश की दशा व दिशा बदलकर रख दी.
अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी व सुंदरसिंह भंडारी सरीखे लोग तो खैर उस वक्त जनसंघ के स्थापित नेता थे. लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर दिवंगत अरुण जेटली,विजय गोयल,नीतीश कुमार, लालू प्रसाद यादव,रविशंकर प्रसाद ,शरद यादव जैसे अनेकों नेता उसी आपातकाल की देन हैं.
पीएम बनने के बाद मोदी ने अपने एक भाषण में बताया था कि वे उन दिनों भूमिगत होकर संघ के अन्य साथियों की मदद कर रहे थे क्योंकि आरएसएस पर प्रतिबंध लगा दिया गया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वेबसाइट narendramodi.in पर इमरजेंसी के दौर के कुछ किस्से बताए गए हैं.
आपातकाल लागू होने के बाद कई नेताओं को गिरफ्तार किया जा रहा था. उस दौरान आरएसएस पूरी तरह से सक्रिय था और अंडरग्राउंड रहकर काम कर रहा था. अन्य आरएसएस के प्रचारकों की तरह नरेंद्र मोदी को भी आंदोलन, सम्मेलनों, बैठकों, साहित्य का वितरण आदि के लिए व्यवस्था बनाने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. लेकिन वे अपने संपर्क से ये भी पता कर लेते थे कि गिरफ्तारी के लिए अगला नंबर संघ के किस स्वयंसेवक का है. तब उस व्यक्ति को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाने की जिम्मेदारी उन पर थी.
ऐसी ही एक घटना में उन्होंने संघ के एक वरिष्ठ स्वयंसेवक नाथा लाल जागडा को एक स्कूटर पर ले जा कर सुरक्षित जगह पर पहुंचा दिया था. इमरजेंसी के दौरान सूचना प्रसारण पूरी तरह से बंद था लेकिन तब मोदी संविधान, कानून व कांग्रेस सरकार की ज्यादतियों के बारे में जानकारी देने वाला साहित्य इकट्ठा करते और उसे गुजरात से अन्य राज्यों के लिए जाने वाली ट्रेनों में रखवाकर भिजवाया करते थे. बताया गया है कि मोदी लगातार भेष बदलकर जेल जाया करते थे, जबकि उन्हें गिरफ्तारी का खतरा बराबर था. इस दौरान वह जेल में नेताओं के लिए तमाम महत्वपूर्ण जानकारियां पहुंचाते थे.
उसी दिन को याद करते हुए आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट किया है जिसमें उन्होंने लिखा 'काले दिनों' को भुलाया नहीं जा सकता. उन्होंने कहा कि इस तरह कांग्रेस ने हमारे लोकतंत्र को कुचला. आपातकाल यानी 1975-77 तक देश में संस्थानों का विनाश देखा गया.
(उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है)



























