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राजद नेता आलोक मेहता पर ईडी के छापे याद दिलाते हैं राजद के कुशासन की विरासत

थोड़े दिन हुए जब पुलिस एक दिन पटना मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल में एक हॉस्टल के कमरे में लगी आग की जांच करने पहुंची. जब 9 जनवरी को पुलिस जांच करने पहुंची तो चाणक्य हॉस्टल के इस कमरे में 2.75 लाख रुपये के आलावा नीट परीक्षा के एडमिट कार्ड और फर्जी ओएमआर शीट भी जले हुए पाए गए! पिछले वर्ष हुए नीट परीक्षा धांधली मामले की याद एक बार फिर से इस घटना ने ताजा कर दी. बिहार एक “रंजीत डॉन” मामले में वर्षों लालू प्रसाद के काल में परीक्षाओं में ऐसे घोटाले झेल चुका है, इसलिए पुरानी यादें ताजा होनी ही थीं.

ये इकलौता मामला नहीं था जिसने बिहारवासियों को जनवरी शुरू होते ही पुराने बुरे वक्त की यादें दिला दी हों, जिसे कभी पटना हाईकोर्ट ने 'जंगलराज' कह दिया था. ईडी ने पिछले दिनों ताबड़तोड़ छापे भी मारे हैं. ये छापे एक को-ऑपरेटिव बैंक में हुए करोड़ों के घोटाले के सिलसिले में पड़ रहे थे. वैशाली शहरी विकास को-ऑपरेटिव बैंक से 383 फर्जी ऋण के खाते बनाकर 83.50 करोड़ यानी करीब सौ करोड़ रुपये का गबन कर लिया गया था. ये छापे उसी सिलसिले में थे.

क्या था को-ऑपरेटिव घोटाला?

इन घोटालों की प्राथमिकी पूर्व में को-ऑपरेटिव के महाप्रबंधक लेखा सह-सूचना प्रौद्योगिकी रहे शाहबाज आलम ने करवाई थी. तब बैंक के निलंबित मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी और उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के वसतौरा निवासी विपिन तिवारी, निलंबित अध्यक्ष वैशाली जिले के औद्योगिक थाना क्षेत्र के चक धनौती निवासी संजीव कुमार को आरोपित बनाया गया था. निलंबित प्रबंधक, पटना निवासी सैयद शहनाज वजी, हाजीपुर के लिच्छवी फूड्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड शीत भंडारण के प्रबंधक वीरेंद्र कुमार, महुआ को-आपरेटिव कोल्ड स्टोरेज लिमिटेड के प्रबंधक राजीव नयन सिंह समेत 11 लोगों का नाम इस मामले में आरोपितों में शामिल है. प्राथमिकी में इन आरोपितों के विरुद्ध 383 ऋण खातों से कुल 79.02 करोड़ तथा 4.48 करोड़ रुपये नकदी का गबन प्रतिभूति, जाली शीत भंडारण रसीद, जाली जीवन बीमा पॉलिसी आदि को आधार बनाकर किया गया, ऐसा आरोप लगाया गया है.

किस खाते से पैसे कहां गए इसकी जांच जब शुरू हुई तो रिजर्व बैंक की एक रिपोर्ट से यह पता चला कि बैंक के मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी विपिन तिवारी के व्यक्तिगत खाते में दिसंबर 2021 से दिसंबर 2022 के बीच लगभग 29 करोड़ रुपये लेन-देन हुआ. विपिन तिवारी के खाते में 2.53 करोड़ मेहरा ट्रेवल, नितिन मेहरा एवं 74 लाख एन. डायमेंशन के खातों से जमा करवाया गया था. इससे पहले द वैशाली शहरी विकास को-ऑपरेटिव बैंक लि. के विभिन्न खातों से आरटीजीएस और निफ्ट के माध्यम से मेहरा ट्रेवल्स के खाते में 7.12 करोड़ और एन. डायमेसन के खाते में 2.27 करोड़ भेजे गए थे.


राजद नेता आलोक मेहता पर ईडी के छापे याद दिलाते हैं राजद के कुशासन की विरासत

विपिन तिवारी के पास एक आइसीआइसीआइ बैंक खाता भी था और उसकी जांच में पाया गया कि उसमें भी अप्रैल 2020 से दिसंबर 2022 के दौरान 6.67 करोड़ का लेन-देन हुआ. इसमें भी मेहरा ट्रेवल, नितिन मेहरा एवं एन डायमेंशन के खातों से ही लेन देन है. इन्हीं घोटालों के क्रम में राजद नेता और पूर्व मंत्री अलोक मेहता के ठिकानों पर ईडी के छापे पड़ रहे थे.

करीब 35 वर्षों से चल रहे इस बैंक के कामकाज में जब गड़बड़ियां दिखी तो आरबीआई ने जून 2023 में इस बैंक के कामकाज पर रोक लगा दी थी. जांच में खुलासा हुआ कि फर्जी एलआईसी बांड और पहचान पत्रों के नाम पर ही 30 करोड़ से ऊपर की रकम की निकासी कर ली गयी है. आरोप है कि घोटाले की शुरुआत आलोक मेहता के बैंक अध्यक्ष रहते ही हो चुकी थी.

परिवार से ही जुड़ा है पूरा घोटाला

राजद पर पारिवारिक पार्टी होने के आरोप राबड़ी देवी के मुख्यमंत्री बनने के दौर से ही लगते रहे हैं. स्वयं चारा घोटाले से जुड़े मामलों में जेल जाते समय लालू यादव ने अपनी पत्नी राबड़ी देवी को बिहार का मुख्यमंत्री बना दिया था. बाद में फिर उनके पुत्र तेजस्वी यादव राजद के कर्ताधर्ता बने. लालू यादव चारा घोटालों के मामले में सजायाफ्ता अपराधी होने के कारण चुनाव नही लड़ सकते. बिलकुल वही पारिवारिक नीति राजद नेता अलोक मेहता के इस घोटाले में भी दिखाई देती है. न केवल बैंक का प्रबंधन इसी परिवार के पास रहा, बल्कि घोटाले की राशि जिन कंपनियों में गयी है, वो भी अलोक मेहता के परिवार से ही जुड़े हुए हैं. जमापूंजी गंवाने वाले खाताधारकों ने जब विधायक अलोक मेहता के भतीजे संजीव को घेरा तो भतीजे ने ही घोटाले का कच्चा चिट्ठा खोल दिया और आलोक मेहता को घोटालों का जिम्मेदार बता दिया था.

आलोक मेहता के पिता तुलसीदास मेहता ने हाजीपुर में इस वैशाली शहरी को-ऑपरेटिव बैंक की शुरुआत करीब पैंतीस वर्ष पहले की थी और 1996 में इसे आरबीआई का लाइसेंस भी मिल गया. पिता के रसूख के दम पर अलोक मेहता 1995 में ही बैंक के चेयरमैन बन गए थे और उन्होंने 2012 तक ये पदभार संभाला. उजियारपुर से लोकसभा चुनाव 2004 में जीत दर्ज करके अलोक मेहता सांसद भी बन गए थे लेकिन बैंक प्रबंधक की कमान उन्होंने छोड़ी नहीं थी. उन्होंने जब 2012 में पद छोड़ा भी तो अपने पिता तुलसीदास मेहता को ही ये पद दिया था. आरबीआई को 2015 में वित्तीय गड़बड़ियाँ नजर आने लगी और उस मामले में तुलसीदास मेहता पर कार्रवाई भी हुई. उस समय भी वित्तीय कारोबार आरबीआई ने बंद करवाया था, लेकिन पहले खुद कमान 2012 में तुलसीदास मेहता को और 2015 में भतीजे संजीव को कार्यभार देकर अलोक मेहता खुद को बचाते रहे हैं.

फ़िलहाल स्थिति ये है कि घोटालों के सम्बन्ध में दो अलग-अलग एफआईआर हाजीपुर शहर में दर्ज हो गयी है और बैंक के सीईओ और मेनेजर फरार हो गए हैं. भाजपा नेता कह रहे हैं कि मोदी जी की “न खाऊंगा, न खाने दूंगा” वाली नीति का पालन होगा और कड़ी कार्रवाई होगी. हमेशा की तरह राजद जातिवाद और सामाजिक न्याय के कम्बल में घुसकर घी पी रही है और जिनका पैसा डूबा, वो आम जन अब अदालती कार्रवाई का इन्तजार करेंगे.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.]

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