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कांग्रेस के अस्तित्व और भविष्य का सवाल, 5 राज्यों के चुनाव का 2024 के नतीजों पर नहीं पड़ेगा असर, 8 प्रदेश पर पार्टी की नज़र

आने वाले कुछ महीने भारतीय राजनीति और संसदीय व्यवस्था के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं. अगले साल अप्रैल-मई में आम चुनाव होना निर्धारित है. उससे पहले इस साल नवंबर में 5 राज्यों में विधान सभा चुनाव होने जा रहा है. इनमें मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलंगाना और मिज़ोरम शामिल हैं.

मिज़ोरम में 7 नवंबर को, मध्य प्रदेश में 17 नवंबर, राजस्थान में 23 नवंबर और तेलंगाना में 30 नवंबर को मतदान होना है. इसके साथ ही छत्तीसगढ़ में दो चरण में मतदान होगा. यहाँ पहले चरण का मतदान 7 नवंबर और दूसरे चरण का मतदान 17 नवंबर को होना है. इन सभी राज्यों में मतों की गिनती एक ही दिन 3 दिसंबर को होगी.

ऐसे तो ये सारे विधान सभा चुनाव हैं, लेकिन चंद महीने बाद होने वाले लोक सभा चुनाव पर इनके नतीजों का कितना प्रभाव पड़ेगा, इसको लेकर भी तमाम तरह के कयास लगाने के साथ अनुमान का दौर जारी है.

कांग्रेस के अस्तित्व और भविष्य का सवाल

पाँच राज्यों में विधान सभा चुनाव और अगले साल आम चुनाव भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए जितना महत्वपूर्ण है, उतना ही ये सारे चुनाव कांग्रेस के अस्तित्व और भविष्य के लिए मायने रखता है. नवंबर में जिन राज्यों में चुनाव हो रहा है, उसका कोई ख़ास असर लोक सभा चुनाव पर नहीं पड़ने वाला है. अतीत के अनुभव भी यही कहते हैं. लेकिन मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलंगाना और मिज़ोरम  के विधानसभा चुनाव नतीजों का कांग्रेस पर बहुत असर पड़ने वाला है, यह तय है.

इन पाँच राज्यों में से राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के सामने अपनी सत्ता बरक़रार रखने की चुनौती है. मध्य प्रदेश में बीजेपी और शिवराज सिंह चौहान युग का अंत करने के लिए कमलनाथ की अगुवाई में कांग्रेस एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा रही है. वहीं अलग राज्य बनने के बाद से ही तेलंगाना में कांग्रेस लगातार जूझ रही है, जहां इस बार वो भारत राष्ट्र समिति के सर्वेसर्वा के. चंद्रशेखर राव का विकल्प बनने के लिए मुसलसल-जद्द-ओ-जहद में है.

कांग्रेस के लिए पिछला एक दशक बेहद ख़राब

कांग्रेस के लिए पिछला एक दशक कितना ख़राब रहा है, यह कांग्रेस के साथ ही पूरा देश जानता है. तमाम कोशिशों के बावजूद कांग्रेस केंद्र की राजनीति के लिहाज़ से हाशिये पर है. चाहे जनाधार का मसला हो या पार्टी की छवि का मुद्दा, पिछले एक दशक से कांग्रेस इन दोनों बिंदुओं पर जूझ रही है. आम चुनाव, 2024 में बीजेपी की अगुवाई वाली नरेंद्र मोदी सरकार को चुनौती देने के लिए कांग्रेस समेत 28 दलों का विपक्षी गठबंधन 'इंडिया' काग़ज़ पर बन भी चुका है. इसके बावजूद तमाम राज्यों में फ़िलहाल लोक सभा चुनाव के लिहाज़ से जो राजनीतिक समीकरण और हालात हैं, उसको देखते हुए  2024 में कांग्रेस के प्रदर्शन में कोई ख़ास बदलाव होने के आसार कम ही नज़र आ रहे हैं.

कांग्रेस के प्रदर्शन में सुधार की संभावना वाले राज्य

आम चुनाव, 2024 में कांग्रेस के प्रदर्शन में सुधार की संभावना तभी है, जब वो उन लोक सभा सीटों के हिसाब से बड़े राज्यों में बीजेपी की बादशाहत को समाप्त करने में कामयाब होगी, जहाँ उसका सीधा मुकाबला बीजेपी से होता है. इन राज्यों में गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, छत्तीसगढ़ के साथ ही हरियाणा, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश शामिल हैं.

उत्तर प्रदेश और बिहार में कांग्रेस की स्थिति नाज़ुक

इनके अलावा बाक़ी राज्यों में कांग्रेस उस परिस्थिति में नहीं है, जहाँ उसके प्रदर्शन में 2014 या 2019 के मुक़ाबले अप्रत्याशित सुधार होने की संभावना है. उत्तर प्रदेश और बिहार में कांग्रेस की स्थिति बेहद दयनीय या नाज़ुक कहा जा सकता है. दूर-दूर तक इसकी गुंजाइश कम ही है कि अगले चंद महीनों में इन दोनों राज्यों में कांग्रेस की स्थिति बदल जायेगी. जो मौजूदा स्थिति है, इन दोनों ही राज्यों में आम चुनाव, 2024 में जीत के लिहाज़ से कांग्रेस की दावेदारी दो-तीन सीटों से ज़्यादा की नहीं है. वो भी ऐसा तब संभव है, जब विपक्षी गठबंधन के तहत उसे बाक़ी सहयोगियों की मदद मिल सके. कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में 2019 में महज़ एक लोक सभा सीट पर और 2014 में दो सीट पर जीत मिली थी. उसी तरह से बिहार में कांग्रेस 2019 में सिर्फ़ एक लोक सभा सीट और 2014 में दो सीट ही जीत पायी थी.

पश्चिम बंगाल में भी लाभ की गुंजाइश कम

पश्चिम बंगाल में भी कांग्रेस का जनाधार सिकुड़कर लगभग नगण्य की स्थिति में पहुंच चुका है. यहाँ काँगेस जिस हालत में पहँच चुकी है, विपक्षी गठबंधन 'इंडिया' के बैनर तले 2024 के लोक सभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी एक या दो सीट से ज़्यादा कांग्रेस को देने के लिए तैयार नहीं होंगी. ममता बनर्जी के रुख़ से यह ज़ाहिर है. अगर कांग्रेस यहाँ अकेले चुनाव लड़ती है, तो उसके लिए एक या दो सीट निकालना भी मुश्किल होगा. ममता बनर्जी कतई नहीं चाहेंगी कि विपक्षी गठबंधन के नाम पर पश्चिम बंगाल में कांग्रेस को अधिक सीट मिले क्योंकि ऐसा होने से प्रदेश में बीजेपी के जीतने की संभावना को बल मिल जायेगा. विपक्षी गठबंधन के तहत पश्चिम बंगाल में कांग्रेस के अधिक सीटों पर चुनाव लड़ने का मतलब ही 'बीजेपी का लाभ और टीएमसी का नुक़सान' है. ऐसे भी पश्चिम बंगाल में कांग्रेस को लोक सभा चुनाव, 2019 में कुल 42 में दो सीटों और 2014 में 4 सीटों से संतोष करना पड़ा था.

ओडिशा के बारे में सोचना भी मुश्किल

ओडिशा की बात करें, तो यहाँ पर बीजेपी बहुत ही तेज़ी से कांग्रेस का विकल्प बनकर उभरी है. नवीन पटनायक की बीजू जनता दल की प्रभावशाली राजनीतिक हैसियत और बीजेपी के बढ़ते कद को देखते हुए ओडिशा में आम चुनाव, 2024 में कांग्रेस के लिए कुछ बड़ा और बेहतर करना असंभव-सी प्रतीत हो रहा है. ओडिशा में कांग्रेस आम चुनाव 2019 में  कुल 21 में से महज़ एक सीट कोरापुट जीत पायी थी. कांग्रेस 2014 में तो यहाँ खाता तक नहीं खोल पायी थी. दूसरी तरफ़ बीजेपी को आम चुनाव 2014 में ओडिशा में सिर्फ़ एक सीट पर जीत मिली थी, जबकि 2019 में उसकी सीट की संख्या बढ़कर 8 हो गयी थी.

महाराष्ट्र में लाभ की संभावना है, लेकिन ज़्यादा नहीं

महाराष्ट्र की बात करें, तो यहाँ कांग्रेस 2024 में एनसीपी (शरद पवार गुट) और शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) के साथ चुनाव लड़ने वाली है. पिछले 15 महीने में महाराष्ट्र की राजनीति ने किस तरह से करवट ली है, इसके हम सब देखते आए हैं. उद्धव ठाकरे और शरद पवार दोनों ही पार्टी में विभाजन के बाद अपनी विरासत और अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं.

बीजेपी के साथ एकनाथ शिंदे और शरद पवार के भतीजे अजित पवार के हाथ मिलाने विपक्षी गठजोड़ के लिए  2024 का सफ़र बेहद मुश्किल होने वाला है. ऐसे में महाराष्ट्र में कांग्रेस चाहकर भी कुछ बड़ा हासिल करने की स्थिति में नहीं है. महाराष्ट्र में कुल 48 लोक सभा सीट है. गठबंधन के तहत कांग्रेस को बमुश्किल 15 से 20 सीटें चुनाव लड़ने के लिए मिल सकती हैं. उनमें भी बीजेपी की अगुवाई में एनडीए की मज़बूत चुनौती को देखते हुए कांग्रेस के लिए महाराष्ट्र में 5 से 10 सीटों पर जीत हासिल करना भी बड़ी कामयाबी होगी. महाराष्ट्र में कांग्रेस को आम चुनाव, 2019 में महज़ एक और 2014 में दो सीट पर ही जीत मिल पायी थी. पिछले दो चुनाव की तुलना में 2024 में कांग्रेस को महाराष्ट्र में चंद सीटों का लाभ हो सकता है, लेकिन सीटों की संख्या बहुत बढ़ जायेगी, ऐसा नहीं कहा जा सकता है.

बेहतरी के लिए आंध्र प्रदेश से नहीं है कोई आस

आंध्र प्रदेश में भी कांग्रेस के बेहतर प्रदर्शन के नज़रिये से कुछ ख़ास संभावना नहीं दिख रही है. आंध प्रदेश की राजनीति पर 2019 से वाईएस जगनमोहन रेड्डी का प्रभुत्व क़ायम है. वाईएसआर कांग्रेस की मौजूदा ताक़त को देखते हुए आंध्र प्रदेश में तमाम विपक्षी दलों के लिए 2024 की राह बेहद काँटों भरी नज़र आ रही है. उसमें भी जून 2014 में आंध्र प्रदेश से अलग होकर तेलंगाना के नये राज्य बनने के बाद से यहाँ कांग्रेस की स्थिति और भी पतली हो गयी है.

आंध्र प्रदेश की राजनीति पर कांग्रेस की पकड़ तो तेलंगाना राज्य बनाने की घोषणा के बाद से ही कमोबेश ख़त्म हो गयी थी. यहाँ 2014 के विधान सभा चुनाव में महज़ 21 सीट जीतकर कांग्रेस चौथे नंबर की पार्टी बनने को विवश हो गयी. कांग्रेस के हाथ से सत्ता तो गयी हीं, वोट शेयर के तौर जनाधार भी सिकुड़कर 11.71% पर पहुँच गया. लोक सभा चुनाव, 2014 में कांग्रेस साझा आंध्र प्रदेश की कुल 42 में से केवल दो ही सीट जीत पायी. रही-सही उम्मीद भी 2019 के लोक सभा चुनाव और विधान सभा चुनाव में पूरी तरह से ख़त्म हो गयी. इन दोनों ही चुनाव में कांग्रेस का खाता तक नहीं खुल पाया.

तेलंगाना में भी बेहतरी की गुंजाइश कम

तेलंगाना में भी कांग्रेस के प्रदर्शन में बेहतरी की गुंजाइश बहुत ज़्यादा नहीं है. कांग्रेस यहाँ कितना भी ज़ोर लगा ले, 2024 में उसे कुछ ख़ास फ़ाइदा होने की संभावना कम है. इसके पीछे कारण है कि तेलंगाना की राजनीति पर अब तक केसीआर का एकछत्र दबदबा रहा है. इसके साथ ही यहाँ 2019 के लोक सभा चुनाव से बीजेपी ने अपना तेज़ी से विस्तार किया है.

तेलंगाना में कुल 17 लोक सभा सीट है. आंध्र प्रदेश से अलग होकर नया राज्य बनने के बाद तेलंगाना के लोगों के लिए 2019 पहला लोक सभा था. इसमें केसीआर की पार्टी को 9, बीजेपी को 4 और कांग्रेस को 3 सीटों पर जीत मिली थी. वहीं असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम को एक सीट पर जीत मिली थी. फ़िलहाल यहाँ की जो राजनीतिक स्थिति है, उसमें कांग्रेस के लिए पिछले प्रदर्शन या'नी 3 सीट से बेहतर करना आसान नहीं है.

तमिलनाडु में भी वृद्धि की संभावना कम

जहाँ तक बात तमिलनाडु और केरल की है, तो इन दोनों ही राज्यों में कांग्रेस के लिए 2019 से बेहतर प्रदर्शन करना एक तरह से दिन में तारा देखने जैसा ही है. तमिलनाडु में कांग्रेस डीएमके के साथ है. इस गठजोड़ में कांग्रेस की भूमिका छोटे भाई सरीखा है. तमिलनाडु में कुल 39 लोक सभा सीट है.

आम चुनाव, 2019 में बतौर डीएमके सहयोगी कांग्रेस 8 सीट जीतने में कामयाब रही थी. वहीं आम चुनाव, 2014 में प्रदेश की सभी सीटों पर अकेले चुनाव लड़ते हुए कांग्रेस का पूरी तरह से सफ़ाया हो गया था. तमिलनाडु में कांग्रेस बतौर डीएमके सहयोगी 2009 के लोक सभा चुनाव में 8 और 2004 में 10 सीट जीतने में सफल रही थी.

हालांकि तमिलनाडु में डीएमके साथ के बावजूद कांग्रेस के लिए 2024 में पिछले तीन चुनाव का प्रदर्शन दोहराना आसान नहीं होगा. इसका कारण है कि आम चुनाव 2024 में एआईएडीएमके की दावेदारी मज़बूत हुई है. इसके साथ ही प्रदेश में बीजेपी अपना जनाधार ख़ुद के दम पर बढ़ाने के लिए एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा रही है.

केरल में 2019 से बेहतर प्रदर्शन लगभग असंभव

केरल की राजनीति की कहानी ही कुछ अलग है. यहाँ बीजेपी की कोई ख़ास पकड़ नहीं है. वर्तमान में विपक्षी गठबंधन में बतौर सहयोगी कांग्रेस और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) या'नी सीपीएम ही केरल की राजनीति में शुरू से एक-दूसरे के राजनीतिक प्रतिद्वंदी रहे हैं. बीजेपी केरल में अपना जनाधार बढ़ाने का भरपूर प्रयास कर रही है, लेकिन अभी तक उसे सफलता हासिल नहीं हो पायी है. आम चुनाव 2024 में भी केरल में असली लड़ाई कांग्रेस और सीपीएम के बीच ही होनी है.

आम चुनाव, 2019 में यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के तले कांग्रेस को केरल की कुल 20 में से 15 लोक सभा सीटों पर जीत मिली थी. वहीं कांग्रेस की अगुवाई वाली यूडीएफ के हिस्से में 19 सीट आ गयी थी. यह केरल में कांग्रेस का अब तक का सबसे अच्छा प्रदर्शन था.

'इंडिया' गठबंधन की वज्ह से देशव्यापी स्तर पर कांग्रेस और सीपीएम दोनों ही एक साथ हैं और केरल में बीजेपी की राजनीतिक हैसियत चुनाव जीतने के लिहाज़ से कुछ ख़ास नहीं है. ऐसे में कांग्रेस और सीपीएम के बीच केरल में सीटों के बँटवारे को लेकर किस फॉर्मूले पर सहमति बनती है, यह बेहद दिलचस्प होने वाला है. यह तो भविष्य में पता चलेगा, लेकिन अभी ही यह ज़रूर कहा जा सकता है कि केरल में कांग्रेस की स्थिति 2019 से और बेहतर होने की संभावना कतई नहीं है. कांग्रेस को केरल में 2014 में 8 और 2009 के लोक सभा चुनाव में 13 सीटों पर जीत मिली थी. कांग्रेस केरल में 2024 में पिछली बार की तरह ही फिर से 15 सीट ही हासिल कर ले, उसके लिए यही बड़ी बात होगी.

पूर्वोत्तर राज्यों से कांग्रेस को उम्मीद नहीं

सिक्किम समेत पूर्वोत्तर के आठ राज्यों की बात करें, तो इन प्रदेशों में कांग्रेस का कोई ख़ास स्कोप अब बचा नहीं है. सिक्किम, असम, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मणिपुर, मिज़ोरम, त्रिपुरा और मेघालय को मिलाकर लोक सभा की कुल 25 सीट होती है. इनमें असम में सबसे अधिक 14 सीट है. कांग्रेस को असम में आम चुनाव, 2019 और 2014 दोनों ही बार तीन-तीन सीट पर जीत मिली थी. असम को छोड़ दें, तो पूर्वोत्तर के बाक़ी राज्यों से कांग्रेस के लिए 2024 में एक सीट भी जीतने की संभावना बेहद कम है. असम के साथ ही पूर्वोत्तर के बाक़ी कई राज्यों में बीजेपी पिछले एक दशक में लोक सभा के नज़रिये से बेहद मज़बूत हुई है. इसको देखते हुए कांग्रेस के लिए असम में भी पिछला प्रदर्शन दोहराना आसान नहीं होगा.

गोवा में लोक सभा की महज़ दो सीट है

गोवा में लोक सभा की दो सीट है. यहाँ कांग्रेस को 2014 में एक भी सीट पर जीत नहीं मिली थी. वहीं 2019 में वो एक सीट पाने में सफल रही थी. अब तो गोवा की राजनीति में आम आदमी पार्टी भी पकड़ बनाने के लिए जी-तोड़ मेहनत करती दिख रही है. यहाँ 2024 में कांग्रेस दोनों सीट जीत भी लेती है, तो पार्टी के देशव्यापी प्रदर्शन में कोई ख़ास सुधार देखने को नहीं मिलेगा. केंद्रशासित प्रदेश पुडुचेरी, अंडमान और निकोबार, चंडीगढ़, दादरा और नगर हवेली एवं दमन और दीव, लक्षद्वीप में कुल मिलाकर 6 लोक सभा सीट हैं. इससे समझा जा सकता है कि कांग्रेस के लिए इन सीटों पर जीत से भी कुछ ख़ास लाभ नहीं होने वाला है.

कांग्रेस के लिए दिल्ली में राह आसान नहीं

केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली में लोक सभा की 7 सीट है. 2019 और 2014 में बीजेपी को इन सातों सीटों पर जीत मिली थी. अब तो आम आदमी पार्टी के उभार के बाद दिल्ली की राजनीति पर कांग्रेस का कुछ ख़ास प्रभाव रह नहीं गया है. ऐसे में 'इंडिया' गठबंधन के तहत सहयोगी होने के बावजूद आम आदमी पार्टी दिल्ली में कांग्रेस को दो सीट से ज़्यादा देने पर राजी होगी, इसकी कम ही गुंजाइश है. अगर दिल्ली में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी 2024 में अलग-अलग लड़ती है, तो एक बार फिर बीजेपी की दावेदारी दिल्ली की सभी सात सीटों पर बेहद मज़बूत दिख रही है.

केंद्रशासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर में 5 लोक सभा सीट है. वहीं केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख में एक लोक सभा सीट है. जम्मू-कश्मीर की राजनीति में बीजेपी, पीडीपी, नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस चार ध्रुव हैं. उसमें भी बीजेपी, पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस की स्थिति कांग्रेस से काफ़ी ज़्यादा अच्छी है. सीटों की संख्या को देखते हुए भी कांग्रेस के लिए यहाँ से बहुत उम्मीदें नहीं बच जाती हैं.

पंजाब की राजनीति में हाशिये पर है कांग्रेस

पंजाब में भी पिछली बार के मुक़ाबले परिस्थितियां पूरी तरह से बदल चुकी है. आम चुनाव 2019 तक यहाँ की राजनीति पर कांग्रेस की मज़बूत पकड़ थी. हालांकि धीरे-धीरे करके आम आदमी पार्टी ने पंजाब की राजनीति पर कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल के प्रभुत्व को पूरी तरह से नेस्तनाबूद कर दिया है. फरवरी 2022 में हुए विधान सभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की आँधी में कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल की राजनीति की हवा निकल गयी.

इसके अलावा प्रदेश की राजनीति पर पिछले कुछ दशक तक मज़बूत पकड़ बनाकर रखने वाले कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अक्टूबर 2021 में कांग्रेस को छोड़ दिया. इसके बाद से पंजाब में कांग्रेस लगातार कमज़ोर होती गयी है. पंजाब में कुल 13 लोक सभा सीट है. आम आदमी पार्टी जिस स्थिति में है, पंजाब में विपक्षी गठबंधन के तहत 2024 में कांग्रेस को दो से चार सीट से अधिक देने पर तैयार होगी, इसकी संभावना बेहद कम है. अगर पंजाब में कांग्रेस अलग लड़ती है, तो और भी दयनीय स्थिति में पहुंच जायेगी. कांग्रेस को 2019 में यहाँ 8 लोक सभा सीट पर जीत मिली थी. वहीं 2014 में यहाँ कांग्रेस 3 सीट पर ही जीत हासिल कर पायी थी.

कांग्रेस की उम्मीद 8 राज्यों पर टिकी है

अंत में ले देकर कांग्रेस के प्रदर्शन में बेहतरी के नज़रिया से गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, छत्तीसगढ़ के साथ ही हरियाणा, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश ही बचते हैं. इन राज्यों में सीधा मुक़ाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही होता रहा है और 2024 में भी ऐसा ही देखने को मिलेगा. आम चुनाव 2014 और 2019 के नतीजों के मद्द-ए-नज़र ये 8 राज्य ऐसे हैं, जिनमें बीजेपी शत-प्रतिशत सीट जीतने का लक्ष्य लेकर उतरती आयी है. 2014 में कर्नाटक को छोड़ दें, तो बीजेपी को बहुत हद तक इसमें कामयाबी भी मिलती रही है.

बीजेपी के लिए कुछ राज्य मज़बूत किला समान है

पिछले दो बार के चुनाव नतीजों की कसौटी से परखने पर बीजेपी के लिए ये 8 ऐसे राज्य हैं, जिनमें बीजेपी को हराना लोक सभा चुनाव में बेहद कठिन लग रहा है. इसके बावजूद यह 8 वैसे राज्य हैं, जिनमें 2024 के लिए कांग्रेस की उम्मीद बची है. ऐसा इसलिए है क्योंकि कांग्रेस इन्हीं राज्यों में बीजेपी के सामने सीधे और मज़बूत चुनौती पेश करने की स्थिति में है. अगर कांग्रेस 2024 में इन राज्यों में बेहतर प्रदर्शन कर पायी, तभी 2014 और 2019 की तुलना में उसके देशव्यापी प्रदर्शन में अभूतपूर्व सुधार देखने को मिल सकता है.

लोक सभा चुनाव में बीजेपी की दावेदारी मज़बूत

एक बात और महत्वपूर्ण है कि ये 8 राज्य ऐसे हैं, जिनमें विधान सभा चुनाव में कुछ भी नतीजा रहे, लोक सभा चुनाव में बीजेपी की दावेदारी मज़बूत रहती है. इस पहलू से कांग्रेस के लिए 2024 में इन राज्यों में बेहतर प्रदर्शन करना पहले ही की तरह बेहद चुनौतीपूर्ण रहने वाला है. यहीं वज्ह है कि राजस्थान में कांग्रेस की सरकार रहने के बावजूद आम चुनाव 2019 में बीजेपी ने प्रदेश की कुल 25 में से 24 लोक सभा सीट जीत ली थी. बाक़ी एक सीट भी बीजेपी की सहयोगी राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के हिस्से में गयी थी. कांग्रेस का खाता तक नहीं खुला था. उसी तरह से छत्तीसगढ़ में भी कांग्रेस की सरकार थी, लेकिन बीजेपी 2019 में यहां की 11 में से 9 लोक सभा सीट पर जीतने में सफल रही थी.

राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ क्यों है महत्वपूर्ण?

इन 8 राज्यों में से राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में नवंबर में विधान सभा चुनाव हो रहा है. राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सत्ता बचाने में सफल रहती है और मध्य प्रदेश में बीजेपी को हराकर सत्ता पाने में कामयाब होती है, तो यह 2024 के लिए पार्टी के प्रदर्शन में अभूतपूर्व सुधार की गारंटी नहीं होगी. लेकिन इससे केंद्र की राजनीति में अपनी प्रासंगिकता खोती जा रही कांग्रेस के अस्तित्व और भविष्य को बड़ा सहारा मिल सकता है.  पिछले साल दिसंबर में हिमाचल प्रदेश और इस साल मई में कर्नाटक में मिली जीत के बाद इन तीनों राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में जीत का सिलसिला जारी रहने से भविष्य की राजनीति के लिहाज़ से कांग्रेस को संजीवनी मिल जायेगी.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ़ लेखक ही ज़िम्मेदार हैं.]

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