नेपाल के रास्ते भारत में घुसपैठ की हिमाकत कर रहा है चीन!

चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापक माओत्से तुंग ने बरसों पहले एक नारा दिया था,'सौ फूल खिलने दो; सौ विचारों में मुक़ाबला होने दो. ' बाद के सालों में उन्होंने इस नारे में तब्दीली करते हुए कहा कि," सोचने का साहस दिखाओ, बोलने की हिम्मत जुटाओ. चलने की ताक़त दिखाओ". बीते जुलाई में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने अपने सौ बरस पूरे कर लिए हैं और अब वहां के हुक्मरान सिर्फ चलने की नहीं बल्कि भारत समेत दूसरे छोटे देशों की ज़मीन हथियाने की ताकत दिखा रहे हैं. लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश में तो उसकी ये कोशिश बदस्तूर जारी है. लेकिन भारत के लिए सबसे बड़ी चिंता का विषय ये है कि उसने हमारे पड़ोसी और ताकत के लिहाज से कमजोर समझे जाने वाले नेपाल में भी कब्ज़ा जमाना शुरु कर दिया है. सुरक्षा व सामरिक लिहाज़ से ये भारत के लिए एक ऐसी चुनौती है,जिससे निपटने के लिए मोदी सरकार को नेपाल के साथ मिलकर तत्काल कोई ऐसा उपाय करना होगा कि चीन अपने पैर और आगे पसारने की हिमाकत न कर सके.
नेपाल की प्रतिष्ठित वेबसाइट है-काठमांडू पोस्ट. उसने वहां की सरकार की एक कमेटी के हवाले से ये रिपोर्ट छापी है कि चीन ने नेपाल के हुम्ला जिले में कंटीली बाड़ लगाकर पूरे इलाके को घेर लिया है और वहाँ रहने वाले लोगों को उसे पार करने से रोका जा रहा है,जबकि वो नेपाल का ही हिस्सा है. ये अन्तराष्ट्रीय सीमा नियमों का खुला उल्लंघन है लेकिन चीन की पुरानी फ़ितरत रही है कि वो ऐसे किसी भी नियम को मानने में अपनी तौहीन समझता है. वैसे भी नेपाल, भारत की तरह इतना ताकतवर तो है नहीं कि वो उसे मुंहतोड़ जवाब दे सके. लेकिन ये भी सच है कि वह दुनिया का इकलौता हिन्दू राष्ट्र है और भारत का मित्र भी है. लिहाज़ा,ऐसे हालात में बड़े भाई का ये फ़र्ज़ बनता है कि वे छोटे पर आई इस आफ़त का मुकाबला करने के लिए वह उसके साथ खड़ा हो.
दरअसल,तिब्बत को हथियाने के बाद चीन ने भारत में घुसपैठ करने के लिए पहले अरुणाचल को और फिर लद्दाख को अपना निशाना बनाया. जब उसे लगा कि वहां मुकाबला बराबरी का है और अपनी दाल इतनी आसानी से नहीं गलने वाली है,तब उसने नेपाल को सबसे ज्यादा महफूज़ मानते हुए वहां अपनी दादागिरी दिखाने का पूरा गेम प्लान ये सोचकर ही बनाया है कि यहां तो उसे हर सूरत में कामयाबी मिलेगी ही. हालांकि कुछ साल पहले गुजरात में साबरमती नदी के किनारे झूला झूलने वाले चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग इतने नादान या नासमझ नहीं हैं कि उन्हें अहसास ही न हो कि ये हरकत करने के बाद सबसे पहले भारत ही नेपाल के साथ आयेगा. लेकिन कहते हैं कि समूची दुनिया पर राज करने की भूख रखने वाले किसी भी हुक्मरान ने महान सिकंदर की मौत के बाद उनके ताबूत से बाहर निकले दोनों खाली हाथों से शायद अब तक कोई सबक नहीं लिया. अगर लिया होता,तो दुनिया की तस्वीर आज कुछ और ही होती.
बात करते हैं कि आखिर चीन की ये करतूत कैसे उजागर हुई, उसके अगले प्लान के बारे में तो अभी कोई भी नहीं जानता. भारत की तुलना में नेपाल और चीन की सीमा में बहुत कम फर्क है और चीन अब इसे ही भारत में घुसपैठ करने का सबसे सेफ तरीका मान रहा है. सामरिक विशेषज्ञ मानते हैं कि नेपाल सरकार की नींद भले ही अब खुली हो लेकिन उसने पिछले करीब दो साल से यहां की बॉर्डर पर अपनी गतिविधियां बेहद तेजी से बढ़ाई हैं. कुछ महीने पहले नेपाल सरकार को बाहरी सूत्रों के हवाले से चेताया गया कि चीन आपकी जमीन पर कब्ज़ा कर रहा है और आप खामोश होकर बैठे हैं,कुछ कीजिये. तब नेपाल के गृह मंत्रालय ने एक कमेटी बनाई,जिसे नाम दिया गया-स्टडी पैनल. इसको जिम्मा दिया गया कि वो सीमावर्ती इलाकों में जाकर देखे कि कहीं चीन ने हमारी जमीन पर अवैध तरीके से कब्ज़ा तो नहीं कर लिया.
इस कमेटी ने पिछले महीने नेपाल के गृह मंत्री बाल कृष्ण खांड को जो रिपोर्ट सौंपी है,वो बेहद चौंकाने वाली है. इस रिपोर्ट के मुताबिक सीमावर्ती इलाके हुम्ला में नेपाल-चीन सीमा पर पिलर संख्या 4 से 13 तक कई ऐसी चीजें देखने को मिली हैं,जो बेहद परेशान करने वाली हैं. इस स्टडी पैनल ने अपनी रिपोर्ट में सरकार को कुछ सिफारिशें भी की हैं,जिन पर कब,कैसे,कितना अमल हो पायेगा,ये कोई नहीं जानता. रिपोर्ट के मुताबिक, जिस सीमा का उल्लंघन हुआ है,उसका निर्धारण चीन और नेपाल के बीच साल 1963 में हुआ था. उसी वक़्त सीमा को चिन्हित करने के लिए खंभे लगाए गए थे. लेकिन चीन ने इसी सीमा का उल्लंघन करके नेपाल के क्षेत्र पर कब्जा कर लिया है और यहां उसने बाड़ भी लगा दिए हैं.
इसी रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि पिलर 5 (2) और पिलर 4 के बीच चीन की सेना नेपाल के लोगों को अपने मवेशियों को चराने की इजाजत नहीं दे रही है. यानी ,वो नेपाल के नागरिकों को उन्हीं के इलाके में आने से जबरन रोक रही है. हालांकि ये रिपोर्ट मिलने के बाद नेपाल सरकार ने ये मुद्दा चीनी दूतावास के जरिए चीन सरकार के सामने उठाया है और इसे सुलझाने के लिए कई दौर की चर्चा भी हुई. इसी हफ्ते नेपाल के विदेश मंत्री नारायण खड़का ने चीनी विदेश मंत्री वांग यी से इस सीमा-विवाद को लेकर फोन पर बातचीत भी की है. लेकिन नतीजा अभी तक सिफर ही रहा है. स्टडी पैनल की रिपोर्ट के आधार पर छापी गई रिपोर्ट में ये भी दावा किया गया है कि, ‘ऐसा पाया गया है कि चीन ने नेपाली क्षेत्र में बाड़ लगाए हैं. नेपाली क्षेत्र में ही चीन 145 मीटर लंबी नहर भी बना रहा है औऱ वह यहां सड़क बनाने की भी पूरी तैयारी में है.
इस विवाद को नेपाल-चीन का आपसी मामला बताकर इसलिये भी दरकिनार नहीं किया जा सकता कि चीन, तालिबान व पाकिस्तान को खैरात देने वाला मुल्क भी है और अब अगर वो नेपाल के लिए भी अपनी तिजोरी खोल देता है,तो ये भारत के लिए खतरे की सबसे बड़ी घंटी होगी. बेहतर होगा कि इसकी आवाज़ सुनने से पहले ही हम इसे खामोश कर दें.
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