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क्या मिताली राज के खेल के बाद नहीं टूटेगी आपकी नींद ? कोविड ने बढ़ाया जेंडर गैप

खिलाड़ियों की एसोसिएशंस उन्हें सशक्त बनाती हैं. किसी भी देश की टीम मजबूत तभीबनती है, जब उसके खिलाड़ियों को पूरी तरह प्रोटेक्टेड होते हैं. तब वे निश्चिंत होकर अपने खेल पर ध्यान देपाते हैं. जनवरी 1978 में टीम ने पहली बार वर्ल्ड कप खेला. यह उनका पहला वन डे इंटरनेशनल भी था. इसदौरान 1988 में ऑस्ट्रेलिया में होने वाली वर्ल्ड कप सीरिज छूट गई. यह दस्तूर चलता रहा.

मिताली राज ने आखिर वह परचम लहराया है, जिसे छूना सबसे बस की बात नहीं. भारतीय क्रिकेट कप्तान मिताली ने हाल ही में वन डे इंटरनेशनल में सात हजारों रनों का आंकड़ा छू लिया है. ऐसा करने वाली वह दुनिया की पहली महिला क्रिकेटर हैं. वैसे रिकॉर्ड कायम करना उनके लिए कोई बड़ी बात नहीं है. इसके चंद दिन पहले वह 10 हजार इंटरनेशनल रनों का आंकड़ा भी पार कर चुकी हैं.

यह उपलब्धियां तब हैं, जबभारतीय महिला क्रिकेट टीम गैप ईयर की त्रासदी झेल रही है. कोविड-19 की वजह से उसका पूरा साल बर्बादहुआ है. इससे पहले बड़ा खेल उसने 2020 के मार्च महीने में ऑस्ट्रेलिया के साथ खेला था. यह श्रृंखला थीटी-20 वर्ड कप. इसके बाद एक साल तक सब शांत रहा. पुरुष टीम इंटरनेशनल दौरे करती रही, महिला टीमको नेशनल कैंप भी नसीब नहीं हुआ. ऐसे में मिताली का प्रदर्शन महिला क्रिकेट की तरफ देश की नींद तोड़नेका काम भी करता है.

गैप ईयर भारतीय टीम के लिए कोई नई बात नहीं यह गैप आना, महिला क्रिकेटर्स के लिए कोई नई बात नहीं है. भारत में विमेन्स क्रिकेट एसोसिएशन ऑफइंडिया यानी डब्ल्यूसीएआई का गठन 1973 में हुआ था. इसके तीन साल बाद अक्टूबर 1976 में महिला टीमको इंटरनेशनल क्रिकेट खेलने का मौका मिला. जनवरी 1977 तक टीम ने आठ टेस्ट खेले जिनमें से दो बाहरहुए थे. लेकिन फिर एक साल का गैप आ गया. जनवरी 1978 में टीम ने पहली बार वर्ल्ड कप खेला. यह उनका पहला वन डे इंटरनेशनल भी था. लेकिन फिर 54 महीने टीम खाली बैठी रही. डब्ल्यूसीएआई के पासपैसे नहीं थे. इसके बाद 1982 में महिला टीम को ओडीआई वर्ल्ड कप खेलने का मौका मिला. फिर 1986 तकटीम 35 इंटरनेशनल मैच खेल चुकी थी. हां, गैप फिर आया, और वह करीब साढ़े चार साल का था. इसदौरान 1988 में ऑस्ट्रेलिया में होने वाली वर्ल्ड कप सीरिज छूट गई. यह दस्तूर चलता रहा.

महिला क्रिकेट की दशा को सुधारने के लिए 2006 में डब्ल्यूसीएआई का विलय बीबीसीआई में कर दिया गया.इससे एक साल पहले सभी नेशनल बोर्ड्स और उनके महिला खेल संघों का विलय आईसीसी में किया गयाथा. बीसीसीआई आठ देशों के नेशनल बोर्ड्स में से आखिरी था जिसने अपने देश के महिला क्रिकेट के प्रबंधनका काम संभाला. इसमें भी काफी समय लगा. मार्च 2007 से मई 2008 की लंबी अवधि.

इस दौरान महिलाटीम ने कोई इंटरनेशनल गेम नहीं खेला. हां, बीसीसीआई के साथ विलय के बाद महिला क्रिकेटर्स को अच्छाइंफ्रास्ट्रक्चर मिला. मैच फीस और दैनिक भत्ता मिलना शुरू हुआ. ट्रैवलिंग आसान हुई. रिटायर्ड खिलाड़ियों कोपेंशन की घोषणा की गई. इसका असर भी देखने को मिला. टी20 और वनडे सीरीज दोनों में ही भारतीय टीमका प्रदर्शन उम्दा रहा. अगले साल आईसीसी ओडीआई रैंकिंग में वह दूसरे स्थान पर रही. 2020 की शुरुआतमें टी20 त्रिकोणीय श्रृंखला के फाइनल में भी पहुंची. उसने टूर्नामेट के पहले मैच में ऑस्ट्रेलिया को हराया.

लेकिन इस गैप ईयर में भेदभाव भी बढ़े अच्छे प्रदर्शन के बावजूद पिछला साल एक अलग ही मुसीबत लेकर आया. कोविड-19 की वजह से खेलों परपाबंदियां लगीं, और सभी देशों की महिला क्रिकेट टीम्स ने परेशानियां झेलीं. लेकिन भारतीय टीम को खेलजगत में मौजूद लिंग भेद का और अधिक एहसास हुआ. महामारी के बीच जुलाई 2020 में पुरुषों की टीमखेलती रही लेकिन महिला टीम को बीसीसीआई की मंजूरी के लिए बेनतीजा इंतजार करना पड़ा. आईपीएलहुए. 53 दिनों में 60 मैच खेले गए. फिर 12 मैच खेलने के लिए पुरुष टीम ऑस्ट्रेलिया चली गई. तैयारी केलिए भी दो मैच हुए. इंग्लैंड के साथ चार मैच और एक टी20 खेला गया. कुल मिलाकर करीब 106 दिन केखेल हुए. लेकिन महिलाओं ने आईपीएल के दौरान चार टी20 मैच ही खेले.

कोई इंटरनेशनल गेम नहीं हुआ.टीम एक साल बाद लखनऊ में दक्षिण अफ्रीका के साथ खेल पाई जिसमें मिताली ने रिकॉर्ड बनाया. वैसे यहअनुभव सिर्फ भारत की महिला क्रिकेटर्स ने ही नहीं किया, बल्कि ऑस्ट्रेलिया, आयरलैंड, यूएसए, नीदरलैंड्स,श्रीलंका, बांग्लादेश, थाईलैंड, पापुआ न्यू गिनी- सभी देशों की टीम्स लगभग घर बैठी रही. किसी ने भी बड़ाटूर्नामेंट नहीं खेला. इस पर यूएन विमेन ने भी चिंता जता चुका है. उसने कहा है कि महामारी की वजह सेखेल संघों की कमाई पर असर हुआ है, इसीलिए वे सिर्फ पुरुष खेलों में निवेश कर रहे हैं ताकि भरपूर दौलतकमाई जा सके. महिला टीम्स की तरफ उनका बिल्कुल ध्यान नहीं है.

लड़कियों के लिए खेल की दुनिया तक पहुंचना पहले ही मुश्किल अधिकतर महिलाओं के लिए खेल की दुनिया में कदम रखना पहले ही काफी मुश्किलों भरा होता है. घर कीचारदीवारी से निकलकर स्कूल जाने, या खेल के मैदान में पहुंचने के लिए उन्हें लंबा संघर्ष करना पड़ता है.फिर खेलना-कूदना अलग बात है, और पेशेवर खेल को चुनना अलग बात. इस दोनों में फर्क करना मुश्किलहोता है. पेशेवर खेल के लिए अलग तरह की मानसिक अवस्था और पारिवारिक सहयोग की जरूरत होती है.फिर अगर किसी तरह पेशेवर खेल को चुनने का फैसला कर भी लिया तो स्रोतों की कमी रहती है. अकादमियोंमें पूरी सुविधाएं नहीं होतीं- अपनी जेब भी खाली होती है.

राज्य की ओर से खेल की स्थिति काफी खराब है. हालांकि 2021-22 के बजट में युवा मामले और खेलमंत्रालय को 2596.14 करोड़ रुपए का आबंटन किया गया है लेकिन यह पिछले साल के मुकाबले230.78 करोड़ रुपए कम है. एक समस्या यह भी है कि युवा मामलों का विभाग पूरी आबंटित राशि को खर्चही नहीं करता. 2018-19 में मानव संसाधन विकास मंत्रालय संबंधी स्थायी समिति ने इस संबंध में अपनीरिपोर्ट सौंपी थी. कमिटी ने यह भी कहा था कि विभाग किसी दूसरे मंत्रालय से कोई समन्वय स्थापित नहींकरता. खेलों में लड़कियों को प्रोत्साहित करने के लिए महिला एवं बाल विकास मंत्रालय से समन्वय कियाजाना चाहिए लेकिन किसी को इससे कोई लेना-देना नहीं है.

संगठन बनाएं और मजबूत बनें खिलाड़ी अपने हक की बात खुद कर सकें, इसके लिए यह भी जरूरी है कि वे संगठित हों. भारत मेंखिलाड़ियों की अपनी कोई संस्था नहीं है. रिटायर्ड खिलाड़ियों की एक संस्था है, इंडियन क्रिकेटर्स एसोसिएशनलेकिन फेडरेशन ऑफ इंटरनेशनल क्रिकेटर्स एसोसिएशंस इसे मान्यता नहीं देते. हालांकि एसोसिएशंस का खुदऐसा मानना है कि खिलाड़ियों की एसोसिएशंस उन्हें सशक्त बनाती हैं. किसी भी देश की टीम मजबूत तभीबनती है, जब उसके खिलाड़ियों को पूरी तरह प्रोटेक्टेड होते हैं. तब वे निश्चिंत होकर अपने खेल पर ध्यान देपाते हैं.

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