जेपी के 'चेलों' की राह पर अन्ना के सियासी 'शिष्य'!

आजकल आम आदमी पार्टी में सियासत के शतरंज पर दो 'भाई' अपने-अपने मोहरे बिछाने में लगे हुए हैं. भावुकता के भाव में कुमार विश्वास कह रहे हैं कि वह जल्द फैसला लेंगे. अपना छोटा भाई बता चुके दिल्ली के मुखिया अरविंद केजरीवाल तो सामने नहीं आ रहे हैं लेकिन नंबर दो माने जाने वाले मनीष सिसोदिया के तेवर विश्वास पर तीखे हैं. हर खेल की तरह सियासत में भी कब किसकी बाजी पलट जाए पता ही नहीं चलता.
कभी इंडिया टीम की तरह साथ जूझने वाले खिलाड़ी आजकल आईपीएल मैच आपस में ही खेल रहे हैं. आज अन्ना हजारे केजरीवाल से कुछ निराशा जाहिर करते हैं तो मुझे सियासी इतिहास में जय प्रकाश नारायण की याद आती है. जेपी के कुछ चेले अर्धनायक बने तो कुछ आपस में ही गुत्थम-गुत्थी करते नजर आए. अन्ना आंदोलन से निकले नायक आज उसी राह पर हैं. आम आदमी पार्टी में झगड़ा बढ़ता जा रहा है. देश में चल रही बदबूदार सियासत से ऊब चुके लोगों को अन्ना आंदोलन में आशा की किरण दिखी थी. उसी आंदोलन से निकले केजरीवाल समेत पूरी टीम पर दिल्ली ने ऐसा भरोसा जताया कि वह दिल्ली की सियासत में रिकॉर्ड बन गया. 70 में 67 सीट...लेकिन ये क्या.. सत्ता हासिल होते ही पार्टी के बड़े चेहरों में मनमुटाव शुरू हुआ जो अभी तक थमने का नाम नहीं ले रहा है. जिस तरह योगेंद्र यादव, प्रशांत भूषण, प्रोफेसर आनंद कुमार, आतंरिक लोकपाल एडमिरल रामदास को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया गया, तमाम सवाल केजरीवाल की सियासत पर उठने लगा. आम आदमी पार्टी में उठापटक का दौर खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है. अब ताजा मामला वरिष्ठ नेता और कवि कुमार विश्वास का है.
सियासत की गलियों में अक्सर चर्चा होती है कि केजरीवाल वन टू टेन तक खुद ही रहना चाहते हैं. यही वजह है कि सत्ता में आने के बाद जब मीडिया योगेंद्र यादव को चाणक्य और क्या क्या नाम देने लगा तो केजरीवाल को अखरने लगा. फिर परिणाम सबके सामने है. कुमार विश्वास का मामला थोड़ा अन्य लोगों से अलहदा रहा. कुमार और केजरीवाल के परिवार तमाम वक्त पर साथ रहते दिखे. पारिवारिक सामंजस्य खूब बनता रहा. लेकिन सियासी महत्वाकांक्षा दोनों के बीच आड़े आती रही. आम आदमी पार्टी में दरअसल दो विचारधाराओं का खेल दिखता रहा. एक राष्ट्रवादी और दूसरा लेफ्ट.. राष्ट्रवादी खेमे का नेतृत्व कुमार विश्वास करते रहे तो दूसरा खेमा इनके खिलाफ सियासी शतरंज बिछाता रहा. केजरीवाल की करीबी टीम ने कुमार विश्वास को हासिए पर रखा, ऐसा इनको लगता है. लेकिन पंजाब और दिल्ली एमसीडी में कुमार विश्वास का पार्टी द्वारा उपयोग नहीं किया जाना इसके संकेत भी दे रहा है. कुमार के पास पार्टी का कोई अहम पद भी नहीं है.
खैर, फिलहाल केजरीवाल वर्सेज कुमार विश्वास का झगड़ा बढ़ता जा रहा है. कुमार विश्वास ने बेहद भावुक होकर कहा, ”मैंने जो वीडियो में बोला वो मेरी नहीं देश की आवाज थी. अगर देश की आवाज लाने के लिए मुझसे कोई भी संगठन, सरकार या कोई भी व्यवस्था नाराज होगी तो मैं अपनी आवाज बंद नहीं करूंगा मैं लगातार बोलूंगा.” जरा ध्यान दीजिए इस बयान पर. सूत्रों के मुताबिक केजरीवाल की तरफ से माफी मांगने के लिए कहा गया है. कुमार के बाद टीवी पर सामने आए मनीष सिसोदिया ने कहा, ”उन्हें पीएसी में बुलाया था लेकिन वो नहीं आए. टीवी पर बयान बाजी कर रहे हैं. टीवी पर बयानबाजी से कार्यकर्ताओं का मनोबल टूट रहा है. कार्यकर्ताओं का मनोबल इस बात से टूटता है कि पार्टी के नेता पीएसी में बात नहीं करते टीवी पर बयान बाजी करते हैं.” मनीष सिसोदिया ने कहा, ”टीवी पर बयान दे कर किस पार्टी को, किन लोगों और किस तरह की ताकतों को फायदा पहुंचाया जा रहा है, ये सब कार्यकर्ता देख रहा है. वो आएं पीएसी में अपनी बात रखें.” इशारा स्पष्ट बीजेपी की तरफ था. अब जरा यह पढ़िए-इस्तीफा देने के बाद आप विधायक अमानतुल्लाह ने कहा, ‘मैं अपनी बात पर कायम हूं कि कुमार विश्वास बीजेपी और आरएसएस के एजेंडे पर काम कर रहे हैं.’
खैर..अब सवाल यह है कि क्या कुमार विश्वास पार्टी छोड़ेंगे? कुमार विश्वास का अगला कदम होगा क्या? खबरों की दुनिया में यह खबर लगातार बनी हुई है कि दिल्ली के आधे से ज्यादा विधायक कुमार विश्वास के साथ हैं. कुमार विश्वास के करीबी भी कह रहे हैं कि इनके घर लगातार विधायक मिलने आ रहे हैं. अर्थात.. अब सियासी बिसात बिछेगी. मिलते सियासी संकेत तो यही बता रहे हैं कि कुमार विश्वास पार्टी नहीं छोड़ेंगे. केजरीवाल टीम भी इंतजार करेगी कि वह खुद पार्टी छोड़ दें लेकिन ऐसा होता दिख नहीं रहा है. यदि पंजाब, गोवा, दिल्ली एमसीडी में करारी हार के बाद केजरीवाल की टीम कुमार विश्वास को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाती है तो इससे सियासी 'शहीद' का दर्जा कुमार को मिल जाएगा. राष्ट्रवाद के इस बहते बयार में उनका वीडियो भी इन्हें नायक बनाने में अहम योगदान देगा. इस तरह कुमार को सियासी फायदा जरूर मिलेगा. लेकिन यदि भावुक कवि हावी हुआ तो कुमार इस्ताफा देकर सियासत से दूर चले जाएंगे.
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नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आकड़ें लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.



























