BLOG: बच्चे स्कूल में 'हत्यारे' बन रहे हैं या फिर ये घर का असर है?

लखनऊ के एक स्कूल में 'दीदी' ने एक बच्चे की जान लेने की कोशिश की. पहली क्लास का बच्चा चीख़ता रहा, चिल्लाता रहा और अपनी ज़िंदगी की भीख मांगता रहा लेकिन सातवीं क्लास की 'दीदी' पर तो जैसे भूत सवार था, वो लगातार चाक़ू से बच्चे पर हमले करती रही. जब बाक़ी बच्चे नीचे प्रेयर कर रहे थे तब ये सब स्कूल के पहले फ़्लोर पर बाथरूम में हुआ.
वहीं आरोपी लड़की हत्या करने की कोशिश की बात से इंकार कर रही है. लेकिन उसके साथ पढ़ने वाली एक लड़की ने चौंकाने वाली बात बताई. उसने कहा कि उसकी सहेली टीवी पर क्राइम शो ख़ूब देखती है. उसने न्यूज़ चैनलों पर रेयान स्कूल वाली ख़बर भी देखी थी. गुरूग्राम के इस स्कूल में भी एक सीनियर लड़के ने एक बच्चे की हत्या कर दी थी.
लखनऊ और गुरूग्राम स्कूल की कहानी बहुत कुछ मिलती जुलती है. दोनों घटनाओं का मक़सद एक ही है. लेकिन ये बात हैरान और परेशान करने वाली है कि एक बच्चा दूसरे छोटे बच्चे का क़त्ल या उसकी कोशिश बस इसीलिए कर दे जिससे स्कूल में छुट्टी हो जाए, ये बड़ी अजीब बात है. यक़ीन करने को दिल नहीं करता है लेकिन ऐसा हो रहा है. जिनके बच्चे स्कूल जाते हैं ज़रा उनकी सोचिए! क्या बीत रही होगी उनके दिलो दिमाग़ पर! बच्चे स्कूल में हत्यारे बन रहे हैं या फिर ये असर घर का है? जो भी है जैसा भी है, बड़ा ख़तरनाक है.
ये घटनायें देहात के किसी सरकारी स्कूल की नहीं हैं. रेयान देश के नामी गिरामी स्कूलों में से एक है. ब्राइट लैंड की गिनती भी लखनऊ के अच्छे स्कूलों में होती है. हम बदल रहे हैं तो हमारे बच्चे भी. सोशल मीडिया ने हमारी आपकी ज़िंदगी और जीने का तरीक़ा बदल दिया है. जब हम छोटे थे तो हमारे बड़े बुजुर्ग बताते थे कि सवेरे उठ कर भगवान को प्रणाम करना चाहिए. अब हम बिस्तर से उठते ही सबसे पहले स्मार्ट फ़ोन ढूंढते हैं. बच्चों की आदतें भी वैसे ही बदलने लगी हैं. मोबाइल फ़ोन पर गेम से लेकर यूट्यूब पर वीडियो में उलझे रहते हैं. चंपक और नंदन को अब कोई बच्चा नहीं जानता है. उनके मन में हीरो कोई और है. घर के किचेन से चाक़ू लेकर बच्चा हत्या करने के इरादे से स्कूल पहुंच जाता है. तो क्या सिर्फ़ स्कूल वाले ही ज़िम्मेदार हैं?
दादी हमें बचपन में महाभारत से लेकर फूल कुमारी तक की कहानियां सुनाती थीं. लेकिन अब घरों से दादी-दादी, नाना-नानी ग़ायब होते जा रहे हैं. अब तो घरों में सुबह होती है और फिर शाम हो जाती है.
दिल्ली में केजरीवाल सरकार ने सभी स्कूलों में सीसीटीवी कैमरे लगवाने का फ़ैसला किया है. इन कैमरों का आउटपुट बच्चों के माता पिता भी देख सकेंगे. लेकिन ये बात कुछ ऐसी है कि अगर सिरदर्द हो तो फिर पेट ठीक होने वाली दवा भी ले ली जाए. बच्चों के बचपन पर पहरा नहीं अपनेपन का भाव होना चाहिए. तो फिर इसकी शुरूआत बाहर या फिर सकूल से नहीं बल्कि घर से होनी चाहिए. हर बच्चे के माता पिता से बस इतनी गुज़ारिश है कि थोड़ा ठहरिए. मसला वक़्त का है और ये वक़्त बच्चों के लिए निकालने की आदत बना लें. वरना रेयान और ब्राइट लैंड जैसे स्कूल तो हर शहर में हैं.
निदा फ़ाज़ली ने क्या ख़ूब लिखा है...
घर से मस्जिद है बहुत दूर
चलो यूँ कर ले
किसी रोते हुए बच्चे को हँसाया जाये
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)



























