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BLOG: भारत के लिए उपलब्धियों भरा साबित हुआ G-20 शिखर सम्मेलन

भारत को दोनों खेमों के बीच संतुलन बना कर चलना था, इसलिए उसने सम्मेलन में यह प्रदर्शित किया कि वह अमेरिका के साथ तो है लेकिन चीन विरोधी खेमे का हिस्सा नहीं है.

जी-20 का दो-दिवसीय शिखर सम्मेलन जापान के ओसाका शहर में बीते शनिवार को संपन्न हो चुका है. समापन के समय वैश्विक तनावों के बावजूद मुक्त व्यापार और आर्थिक वृद्धि के लिए आपसी सहयोग की घोषणा की गई. लेकिन जापान के पीएम शिंजो आबे के विदाई बयान में वैश्वीकरण और विश्व व्यापार तंत्र पर छाए निराशा के बादलों की चिंता छिपी नहीं रह सकी. आबे के मुताबिक इस सम्मेलन में भाग लेने वाले सभी शीर्ष नेताओं ने ठहरी हुई वैश्विक वृद्धि और व्यापारिक तनावों से संबंधित खतरों को रेखांकित किया है. हालांकि भारत समेत अमेरिका, रूस, जापान, ऑस्ट्रेलिया, सउदी अरब आदि देशों ने मुक्त व्यापार तंत्र का समर्थन करते हुए खुले बाजारों को हासिल करने पर विशेष बल दिया है और विश्व अर्थव्यवस्था के स्पष्ट नकारात्मक जोखिमों को भी स्वीकार किया है. लेकिन लगातार बढ़ते संरक्षणवाद और राष्ट्रवादी टकरावों की तरफ से आंख मूंदने का रवैया ही अपनाया गया है.

शिखर सम्मेलन की शुरुआत में ही शिंजो आबे ने जी-20 के सभी सदस्य देशों से आपसी मतभेदों पर जोर देने के बजाए सहमतियां बनाने का आवाहन किया था. लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप तो सम्मेलन से ठीक पहले जापान की सैन्य कमजोरी, जर्मनी के कम सैन्य बजट, चीन को कारोबारी बाधाओं और भारत को ऊंची टैरिफों की वजह से काफी खरी-खोटी सुना कर ओसाका के लिए रवाना हुए थे. यूरोपीय यूनियन के अलावा ब्रिटेन की पीएम टेरेसा मे ने भी रूस को सीधे निशाने पर ले लिया था. यही वजह है कि सम्मेलन के दौरान जाहिरा तौर पर भले ही तू-तू मैं-मैं नहीं दिखी हो, लेकिन यह स्पष्ट दिखा कि इस शक्तिशाली और प्रभावशाली वैश्विक मंच पर दो खेमे सक्रिय हैं, जिसमें एक ओर हैं अमेरिका-जापान और यूरोपीय यूनियन और दूसरे खेमे में चीन और रूस खड़े हो गए हैं.

सम्मेलन के दौरान भारत ने ऑस्ट्रेलिया के साथ विशेष संबंध स्थापित किए हैं, जिसकी बानगी ऑस्ट्रेलिया के नवनिर्वाचित पीएम स्कॉट मॉरीसन का ट्वीट देखने के बाद मिली, जिसमें उन्होंने पीएम मोदी की बड़ी तारीफ की थी. मोदी ने सम्मेलन से इतर आखिरी वार्ता करने के लिए मॉरीसन से मुलाकात की थी और खेल, खनन प्रौद्योगिकी, रक्षा और समुद्री सहयोग (खास तौर पर हिंद-प्रशांत क्षेत्र में) बढ़ाने को लेकर गंभीर चर्चा की थी. भारत को दोनों खेमों के बीच संतुलन बना कर चलना था, इसलिए उसने सम्मेलन में यह प्रदर्शित किया कि वह अमेरिका के साथ तो है लेकिन चीन विरोधी खेमे का हिस्सा नहीं है.

भारत ने अमेरिका और जापान के विपरीत रशिया-इंडिया-चाइना (रिक) में व्यावसायिक संरक्षणवादी नीतियों को मिलने वाले प्रश्रय को प्राथमिकता दी. जहां अमेरिका और जापान हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन को घेरने की रणनीति पर आगे बढ़ते दिखाई दिए, वहीं रूस और चीन मिडिल-ईस्ट में अमेरिकी बर्चस्वाद को सीमित करने के रास्ते पर चलते नजर आए. पीएम नरेंद्र मोदी ने भारत-अमेरिका-जापान के रणनीतिक त्रिकोण को मजबूत करने की रणनीति अपनाई तो दूसरी ओर हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन का दबदबा घटाने की कूटनीति भी जारी रखी.

इसीलिए मोदी ने रूस और चीन के साथ बैठक करने के साथ-साथ ब्रिक्स के शीर्ष नेताओं के साथ अलग से मुलाकात की. भारत की हमेशा यह रणनीति रही है कि चीन हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सीधी चुनौती और खतरा न बनने पाए. इसमें उसे कितनी सफलता मिली है, यह तो भविष्य में चीन की समुद्री गतिविधियों को देख कर ही पता चलेगा. लेकिन यह स्पष्ट हो चुका है कि जी-20 सम्मेलन में अमेरिकी संरक्षणवाद को झटका लगा है.

जी-20 आर्थिक और वित्तीय मुद्दों पर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के लिए 1999 में गठित एक केंद्रीय मंच है. इसमें यूरोपीय यूनियन के देशों के अलावा 19 अन्य प्रमुख देश शामिल हैं. इसके सदस्यों में अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, चीन, फ्रांस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, मेक्सिको, रूस, सउदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण कोरिया, तुर्की, ब्रिटेन और अमेरिका जैसे विकसित और विकासशील देश शुमार हैं. शिखर सम्मेलन में सभी देश विश्व व्यापार संगठन में सुधार लाने की जरूरत पर जोर देते नजर आए. लेकिन भारत के लिए इस सम्मेलन की प्रमुख उपलब्धि यह रही कि पीएम मोदी अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप को यह समझाने में सफल रहे कि भारत किसी हाल में अपने हितों के साथ समझौता नहीं करने वाला.

यह तो तय था कि मोदी और ट्रंप के बीच आपसी व्यापार, ईरान तेल संकट और रक्षा से जुड़े मुद्दों समेत अमेरिकी उत्पादों पर भारत द्वारा बढ़ाए गए आयात शुल्क को लेकर चर्चा अवश्य होगी, और खटास भी बढ़ सकती है. लेकिन मोदी ने जितने सहज ढंग से ट्रंप का सामना किया और विभिन्न मसलों पर बातचीत की और बदले में ट्रंप ने भी जिस तरह मोदी को अपना दोस्त बताते हुए जिस तरह भारत के साथ अमेरिकी संबंधों को और ज्यादा मजबूत करने पर जोर दिया, उससे यही साबित होता है कि ट्रंप समझ चुके हैं कि मोदी के नेतृत्व वाले भारत को धौंस दिखला कर दबाया नहीं जा सकता.

जापान यात्रा पर निकलने से पहले ट्रंप ने भारत को भी निशाने पर लिया था और साफ कहा था कि अमेरिकी उत्पादों पर आयात शुल्क बढ़ाने का भारत का फैसला उन्हें कतई मंजूर नहीं है. लेकिन सम्मेलन के दौरान इस मुद्दे को तो छोड़िए, रूसी मिसाइल सिस्टम एस-400 खरीदने के भारत के फैसले पर भी दोनों के बीच कोई चर्चा नहीं हुई, जबकि अमेरिकी प्रशासन इस सौदे को लेकर सख्त आपत्ति जता चुका था. ओसाका में मोदी-ट्रंप की मुलाकात से ठीक पहले अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोंपियो भारत दौरे पर आए थे, जिनके सामने भारत ने स्पष्ट कर दिया था कि वह अमेरिका के साथ रिश्ते मजबूत करने के साथ-साथ ईरान समेत अन्य देशों से अपने ऐतिहासिक रिश्तों की अनदेखी हरगिज नहीं करेगा और अपने राष्ट्रीय हितों के मद्देनजर ही फैसले लेगा.

भारत ने इसका उदाहरण तभी पेश कर दिया था जब अमेरिका द्वारा भारत को तरजीही राष्ट्र वाली जीएसपी व्यवस्था से बाहर करने के विरोध में भारत ने भी जैसे को तैसा जवाब देकर अमेरिकी उत्पादों पर आयात शुल्क बढ़ा दिया था. जी-20 सम्मेलन से भारत को यह भी हासिल हुआ कि साझा घोषणा-पत्र में भगोड़े आर्थिक अपराधियों को किसी तरह का संरक्षण न देने की पुरानी भारतीय मांग को शामिल कर लिया गया है. भारत विश्व समुदाय से एक लंबे अरसे से गुजारिश करता रहा है कि ऐसे भगोड़ों के खिलाफ सख्त रवैया अपनाया जाना चाहिए और इस समस्या के समाधान के लिए काला धन की ही तरह अंतर्राष्ट्रीय नियम-कानून बनाए जाने चाहिए, ताकि एक देश के आर्थिक अपराधी दूसरे देशों में शरण न ले पाएं और वहां की नागरिकता न हासिल कर पाएं, साथ ही उनके प्रत्यर्पण में भी आसानी हो. कुल मिलाकर इस बार का जी-20 शिखर सम्मेलन भारत के लिए उपलब्धियों भरा साबित हुआ है.

(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)

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