बिहार में कुढ़नी के किले को कौन भेदेगा?

बिहार में तीन विधानसभा की सीट खाली हैं. मोकामा, गोपालगंज और कुढ़नी. अभी उपचुनाव का ऐलान नहीं हुआ है लेकिन उम्मीद है कि जल्द हो जायेगा. कुढ़नी के राजद विधायक अनिल सहनी भत्ता घोटाले में दोषी करार दिए गए हैं जिस वजह से उनकी सदस्यता जानी है. और कुढ़नी में चुनाव होगा.
अनिल सहनी राजद से पहले जेडीयू में रह चुके हैं. इनके पिता महेंद्र सहनी कभी जनता दल के बड़े नेता थे. उनके गुजरने के बाद अनिल सहनी को नीतीश कुमार ने राज्यसभा भेजकर निषाद वोट बैंक को अपने साथ जोड़े रखने की रणनीति अपनाई. बाद में अनिल सहनी घोटाले में घिरे फिर राजद से विधायक बन गए. जिस कुढ़नी सीट से अनिल सहनी विधायक बने वो मुजफ्फरपुर जिले की सीट है. शहर के उत्तर और पूर्व में आने वाला कुढ़नी पहले भी चर्चा में रहा है.
नीतीश सरकार में मंत्री रहे मनोज कुशवाहा यहां जेडीयू से तीन बार जीते. 2015 में जेडीयू के मनोज कुशवाहा को बीजेपी के केदार गुप्ता ने हराया. 2020 में मनोज कुशवाहा को टिकट नहीं मिला और बीजेपी के केदार गुप्ता महज 700 वोटों से अनिल सहनी से हार गए.
कुढ़नी चूंकि शहर से सटा हुआ है इसलिए यहां शहरी नेताओं का प्रभाव है. 1995 में बाहुबली अशोक सम्राट चुनाव लड़ कर हार चुके हैं. अशोक सम्राट भूमिहार जाति के बाहुबली थे और बाद में पुलिस मुठभेड़ में मारे गए. 2000 के चुनाव में आनंद मोहन की पार्टी बिहार पीपुल्स पार्टी ने ब्रजेश कुमार को उम्मीदवार बनाया था. जो दूसरे नंबर पर रहकर हार गए.
ब्रजेश कुमार अभी बालिका गृह कांड में जेल में है. 2000 तक के चुनाव में भूमिहार जाति के उम्मीदवार पर लालू विरोधी पार्टियां दांव लगाती रही लेकिन 2005 में जेडीयू ने कुशवाहा जाति के मनोज कुशवाहा को उतारकर समीकरण बदल दिया. तब से भूमिहार नेताओं को टिकट नहीं मिला.
इस बार समीकरण बदला हुआ है. भूमिहार वोट बैंक को लेकर हर पार्टियां पजेसिव दिख रही है . ऐसे में भूमिहार दावेदार बीजेपी से दावा करने लगे हैं. बीजेपी अगर यहां से किसी भूमिहार उम्मीदवार पर दांव लगाने की सोचती है तो फिर बीजेपी युवा मोर्चा के प्रवक्ता रहे शशि रंजन की किस्मत खुल सकती है.
शशि रंजन की खास बात ये है की पार्टी में किसी विशेष गुट से जुड़े नहीं हैं. इलाके के सामाजिक कार्यक्रमों में सक्रिय रहते हैं. युवाओं में लोकप्रिय हैं. गिरिराज सिंह और विवेक ठाकुर जैसे स्वजातीय नेताओं का साथ तो हैं ही नित्यानंद राय के भी करीबी माने जाते हैं.
शशि रंजन को उम्मीदवार बनाकर बीजेपी बोचहां चुनाव में हुए भूमिहार वोट बैंक के नुकसान की भरपाई कर सकती है. शशि रंजन की कमजोरी सिर्फ उनका नया होना ही हो सकता है. ऐसे में पूर्व मंत्री सुरेश शर्मा, बीजेपी जिला अध्यक्ष रंजन कुमार पर भी बीजेपी विचार कर सकती है.
वैसे गैर भूमिहार उम्मीदवार पर बीजेपी विचार करती है तो फिर पूर्व विधायक केदार गुप्ता का दावा मजबूत है. देवीलाल भी एक दावेदार हो सकते हैं. केदार गुप्ता की दावेदारी बाहरी के नाम पर खत्म हो सकती है. क्योंकि इलाके में बाहरी और लोकल का मुद्दा काफी गर्म रहा है. ऐसे में शशि रंजन बीजेपी के लिए सबसे मुफीद उम्मीदवार हो सकते हैं.
जहां तक महागठबंधन का सवाल है तो सीट पर जेडीयू का दावा हो सकता है और तब मनोज कुशवाहा उम्मीदवार होंगे. मनोज कुशवाहा के लिए ही जेडीयू इस सीट पर दावा करेगी. वैसे कुछ मुस्लिम नेता भी भाग दौड़ कर रहे हैं. जेडीयू ने किसी भूमिहार को टिकट देने का मन बनाया तो नवीन मनियारी पर दांव लगा सकती है. नवीन छात्र राजनीति की उपज हैं और समता पार्टी के जमाने से ही नीतीश कुमार के साथ जुड़े रहे हैं.
अगर राजद ने उम्मीदवार देने का फैसला किया तब भी उम्मीदवार मनोज कुशवाहा के ही होने की संभावना है. लोजपा ने अगर उम्मीदवार उतारा तो फिर नीलाभ कुमार को टिकट मिल सकता है. नीलाभ पूर्व विधायक साधु शरण शाही के परिवार से आते हैं और यूथ ब्रिगेड के नाम से संगठन बनाकर सक्रिय रहे हैं.
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