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असम: 8 आदिवासी समूहों ने तो हथियार डाल दिए, लेकिन खूंखार संगठन अब भी हैं सक्रिय !

Assam Tribal Groups: अक्सर हिंसा की आग में सुलगने वाले असम में शांति बहाली को लेकर सरकार को बड़ी कामयाबी मिली है. राज्य में उग्रवाद की हिंसा में शामिल रहे 8 आदिवासी संगठनों के करीब 1100 लोगों ने अपने हथियार डालकर मुख्यधारा में शामिल होने का फैसला लिया है.

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की मौजूदगी में असम सरकार और 8 जनजातीय समूहों के प्रतिनिधियों के बीच आज (गुरुवार, 15 सितंबर 2022) एक समझौते पर हस्ताक्षर हुए. हालांकि ये कहना अभी जल्दबाजी होगी कि इसके बाद असम पूरी तरह से शांत हो जाएगा क्योंकि उग्रवाद में लिप्त दिमासा नेशनल लिबरेशन आर्मी (DNLA) नामक संगठन इस समझौते में शामिल नहीं हुआ है.

आदिवासियों का ये वही उग्रवादी संगठन है, जिसने पिछले साल अगस्त में असम के एक जिले में सात ट्रकों में आग लगा दी थी. इस हादसे में पांच ट्रक ड्राइवर जिंदा जल गए थे. इस संगठन के उग्रवादी असम के अलावा नागालैंड में भी सक्रिय हैं.

वैसे गृह मंत्री अमित शाह ने तो यही कहा है कि असम और पूरे उत्तर पूर्व के लिए आज का दिन बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि एक लंबी प्रक्रिया के बाद नॉर्थ-ईस्ट को शांत और समृद्ध बनाने का काम पूरा हुआ है. हालांकि, उन्होंने भी ये माना है कि सरकार का सबसे बड़ा एजेंडा नॉर्थ-ईस्ट में शांति बहाल करना है और सरकार हर विवाद को 2024 तक खत्म करना चाहती है. 

उग्रवाद में देखी गई गिरावट

सरकार को इस जमीनी हकीकत से भी अपना मुंह नहीं मोड़ना होगा कि समूचे नॉर्थ-ईस्ट में पूर्वोत्तर में सौ से भी अधिक जातीय समूह हैं. अलग-अलग जनजाति समूह के ये लोग अलग राज्य की मांग करते रहे हैं. बोडो जाति के लोगों ने भी अलग राज्य की अपनी मांग को अभी छोड़ा नहीं है.

बहुत से समूह असम को भारत से अलग करने को लेकर दशकों तक संघर्ष करते रहे हैं. हालांकि अलग राज्य की ये सभी मांगें पुरानी हैं लेकिन इन सभी को कुछ न कुछ देकर शांत कर दिया गया. पिछले सात-आठ साल में अधिकांश विद्रोही समूहों को सरकार ने शांति वार्ता के लिए मना लिया, जिसके चलते वहां उग्रवाद में काफी गिरावट देखी गई.

2019 में किया गया था DNLA का गठन

इसके बावजूद पूर्वोत्तर में अब भी कई ऐसे उग्रवादी संगठन सक्रिय हैं, जो गाहे-बगाहे किसी बड़ी वारदात के जरिये अपनी मौजूदगी का अहसास कराते रहते हैं. इनमें से ही एक है-दिमासा नेशनल लिबरेशन आर्मी. (डीएनएलए) का गठन 15 अप्रैल, 2019 को किया गया था और इसकी स्थापना सूचना एक प्रेस विज्ञप्ति के जरिए मीडिया को दी गई थी.यह संगठन दावा करता है कि स्वतंत्र दिमासा राष्ट्र की मांग को लेकर वह हर तरह का संघर्ष करने के लिए प्रतिबद्ध है. यह भी कहा जाता है कि संगठन का मकसद दिमासा समाज में भाईचारा कायम करना और दिमासा साम्राज्य को वापस पाना है.

नाइसोदाओ दिमासा कर रहा है गुट का नेतृत्व 

इस गुट का नेतृत्व नाइसोदाओ दिमासा कर रहा है, जबकि इसका सचिव खारमिनराओ दिमासा है. इस गुट ने नागरिक संशोधन विधेयक का भी जमकर विरोध किया था. डीएनएलए असम, नागालैंड और खासतौर पर असम के दीमाहसाओ जिले में काफी सक्रिय है. इसी जिले में पिछले साल अगस्त में इस गुट के उग्रवादियों ने सात ट्रकों में आग लगाकर ड्राइवरों को जिंदा जला डाला था.

दरअसल, इस वारदात से पहले मई महीने में असम राइफल्स और राज्य पुलिस ने ज्वाइंट ऑपरेशन चलाकर डीएनएलए के सात उग्रवादियों को मार गिराया था. माना गया कि उसका बदला लेने के मकसद से इसी गुट ने आगजनी की इतनी बड़ी घटना को अंजाम दिया था.

अमित शाह ने इस समझौते को बताया महत्वपूर्ण 

बताते हैं कि साल 2003 में 17 दिमासा लोगों की हत्या कर दिए जाने के बाद उनकी विधवाओं ने संकल्प लिया था कि वे अपने पतियों की मौत का बदला लेंगी क्योंकि उनके पतियों का कछार जिले से अपहरण कर हमार पीपुल्स कन्वेंशन डेमोक्रेट्स के उग्रवादियों ने मार डाला था.

हालांकि, गृह मंत्री अमित शाह ने आज हुए इस त्रिपक्षीय समझौते को महत्वपूर्ण उपलब्धि बताते हुए कहा कि आज एक बड़ा मील का पत्थर पार कर हम आगे बढ़ रहे हैं. वहीं, असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा के मुताबिक इस समझौते से आदिवासी जनजाति के लोगों को सामाजिक न्याय मिलेगा, आर्थिक विकास का एक बहुत बड़ा मौका मिलेगा और साथ ही राजनीतिक अधिकार भी मिलेगा. 

इन आदिवासी संगठनों के साथ हुए समझौते 

सरकार ने जिन आदिवासी संगठनों के साथ त्रिपक्षीय शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए वे हैं- बिरसा कमांडो फोर्स (BCF), असम की आदिवासी कोबरा मिलिट्री (ACMA), ऑल आदिवासी नेशनल लिबरेशन आर्मी (AANLA), आदिवासी पीपुल्स आर्मी (APA), संथाली टाइगर फोर्स (STF), एएएनएलए-एफजी (AANLA-FG), बीसीएफ-बीटी (BCF-BT), एसीएमए-एफजी (ACMA-FG). लेकिन जब तक पूर्वोत्तर की धरती पर एक भी विद्रोही गुट सक्रिय है, तब तक वहां पूरी तरह से अमन-चैन कायम होने की उम्मीद करना, खुद को मुगालने में रखने जैसा ही है.

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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