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और टूट गया कारम बांध... पानी में बहे करोड़ों रुपये का जिम्मेदार कौन?

हमारी गाड़ी इंदौर की तरफ फुल स्पीड से भागी जा रही थी. शाम का वक्त था तो गाना भी ये शाम मस्तानी मदहोश किये जाए चल रहा था. दिनभर की थकान के बाद आंखें बोझिल हो रही थी मगर मदहोशी आती उससे पहले ही फोन बज उठा. ये हमारे कामरेड टीवी रिपोर्टर अनुराग अमिताभ थे. जो पिछले तीन दिन से बांध के मुहाने पर बिना हिले डेरा डाल बैठे थे. 

अरे सर कहां चले गये आप, यहां कांड हो गया. क्या हो गया भाई? अरे यहां बांध फिसला जा रहा है. थोड़ी देर में ही इसका काम लग जायेगा. आप कहें तो वीडियो कॉल कर दिखा दूं. मैं समझ गया कि अब पैनिक बटन दब गया है. गाड़ी को सड़क किनारे रूकवाकर अगला फोन रायपुर से रात भर टेवल कर धार आ पहुंचे अपने साथी ज्ञानेंद्र को लगाया. क्या हाल है? बस सर पेनिक है ये बांध कभी भी टूट सकता है आप ज्यादा दूर नहीं गए हो तो आ जायें एक से भले दो. ज्ञानेंद्र का फोन रखते ही स्थानीय स्टिंगर जफर अली का फोन आ गया. सर बांध टूट गया आपको वीडियो भी भेज दिया. व्हाट्सएप खोलकर देखा तो किसी गांव की छत से लिया गया वीडियो था जिसमें पानी की उछलती खौफनाक लहरें दिख रहीं थीं. बस फिर सोचने की गुंजाइश बची ही नहीं थी.

हम मानपुर तक पहुंच गए थे यानि की बांध वाली जगह से तीस-पैंतीस किलोमीटर दूर. हमारे बिना कहे ड्राइवर श्याम ने गाड़ी तेज गति से वापस भगाई. हमेशा अलर्ट रहने वाले हमारे कैमरामेन होमेंद्र ने पहली शंका जताई. सर रास्ता भर रोका ना गया हो तो फंस कर रह जाएंगे और होमेंद्र की बात सच साबित हुई. पानी सड़क पर आने के अंदेशे से एबी रोड पर आवागमन रोक दिया गया था. बस फिर क्या था अगली चुनौती ये हुई कि, इस भारी जाम से अपनी गाड़ी को आगे निकाल कर ले जाना. ऐसे में काम आते हैं हमारे कैमरा और माइक आईडी. 


और टूट गया कारम बांध... पानी में बहे करोड़ों रुपये का जिम्मेदार कौन?

किसी तरह रास्ते में आगे बड़ ट्रालों और गाड़ियों के मालिकों से निवेदन कर गाड़ी किनारे लगवाई. कभी माइक आईडी दिखाकर उनकी गाड़ी किनारे लगवाई तो कभी अनुरोध कर के. पुलिस वालों से फिर आग्रह किया कि बस थोड़ी देर पहले ही वहां से लौटै हैं जहां आप हमें जाने से रोक रहे हैं. पुलिस पसीजी और रास्ते रोकने के लिए लगाये डम को हटाकर हम भाग लिये उसी रास्ते पर जहां से सबको निकाला जा रहा था. रास्ते भर पुलिस और प्रशासन की गाड़ियां गांव वालों से सुरक्षित जगहों या गांव से लगे पहाड़ों पर चढ़ने को एनाउंस कर रहीं थी. रास्ते भर सायरन की डराती आवाज के बीच हम भागे जा रहे थे बांध की ओर मगर ये क्या जहांगीरपुरा के किनारे ही बांध से छूटा पानी इस कदर उफनता भाग रहा था जैसे स्कूल से छूटे बच्चे. 

नदी के चौड़े पाट पर दूर तक मटमैला पानी ही तेज गति से भागता और डरावनी आवाज में शोर करता दिख रहा था. टीवी के लिये इससे अच्छा विजुअल भला क्या होगा? होमेंद्र ने निकाला कैमरा और कंधे पर टांगा लाइव यू कहा आप तो शुरू हो जाइये सब लाइव रिकार्ड होगा. चैनल को जब जितना चलाना होगा चलता रहेगा. इस बीच मेरे ऑफिस से फोन आ चुके थे. जहां हो वहां से लाइव दे दो. हम उत्साहित होकर बांध से निकले पानी की कामेंटी कर रहे थे. दो तीन मिनट बाद ही बताया गया कि लाइव नहीं जा पायेगा. फिलहाल नवनियुक्त राष्ट्रपति जी का भाषण चलेगा. 


और टूट गया कारम बांध... पानी में बहे करोड़ों रुपये का जिम्मेदार कौन?

इस बीच में हम कभी मकान की छतों पर चढ़कर तो कभी नदी के किनारे पहुंच कर वॉकथ्रू किये जा रहे थे. ये नजारा हमारे लिये एकदम नया था. जिस बांध के पास खड़े होकर हम पिछले दो दिन से मंत्री और प्रशासन से सुन रहे थे कि बांध का पानी नियंत्रित तरीके से ही तीन से चार दिन में निकाला जाएगा वहां अचानक पूरा पानी बांध की दीवार तोड़कर तूफानी वेग से निकल जायेगा कल्पना से परे था. मगर यही टेलीविजन पत्रकारिता की चुनौती है कि हर हालात के लिये तैयार रहे. तेरह तारीख की रात को बांध का पानी नियंत्रित ढंग से निकल रहा था तब हम प्रशासन और सरकार की सफलता की कहानी कह रहे थे और चौदह की शाम को यदि पानी ने बांध की दीवार ढहा दी और अनियंत्रित वेग से अपने निचले रास्ते पर चल पड़ा तो ये क्यूं हुआ सरकार की रणनीति की चूक की कहानी कहे जा रहे थे.

थोड़ी देर बाद ही हम और ज्ञानेंद्र टीवी के एक फ्रेम में थे वो बांध से बच कर पहाड़ में छिपे लोगों की कहानी बता रहा था तो हम बांध का पानी कहां जायेगा क्या करेगा इसके अंदेशे सुना रहे थे. खैर रात दस बजे तक 15 एमसीएम बांध का पानी तकरीबन आधे से ज्यादा निकल कर बांध को खाली कर चुका था. बांध स्थल पर सरकार के भेजे तीनों मंत्री राहत की सांस लेकर एक दूसरे से गले मिल रहे थे तो प्रशासनिक अफसर इस बात पर खुश थे कि कोई जान माल की हानि नहीं हुई. 

गांव के लोग भी अपने घरों में लौटने लगे थे और मान रहे थे बाढ़ में तो इतना नुकसान हर साल होता ही था. उधर हमारा काम सवाल उठाना था तो बांध बनने की प्रक्रिया और काम में बरती गई लापरवाही और करोड़ों रुपये पानी में बहने का जिम्मेदार कौन है उधर सरकार इस बात पर अब तक मौन है.

(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)

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