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BLOG: BHU में बेटियों की पिटाई, इस घटना से बीजेपी को डरना चाहिए

अब इस घटना से बीजेपी को क्यों डरना चाहिए. आप कह सकते हैं कि लड़कियां सिर्फ बीजेपी शासित राज्यों में नहीं छिड़ती है. ऐसा देश भर में होता है भले ही किसी दल की सरकार हो. सही तर्क. लेकिन हाल के दिनों में छात्र राजनीति के मैदान में बीजेपी को मात खानी पड़ी है. राजस्थान में जरुर कुछ जगह यूनिवर्सिटी कालेज चुनावों में एबवीपी का परचम लहराया लेकिन दिल्ली से लेकर हैदराबाद में एबीवीपी को पिटना पड़ा है.

बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी यानि बीएचयू में में छेड़खानी का विरोध कर रही लड़कियों पर पुलिस का बर्बर लाठीचार्ज एक बड़ा मुद्दा बन गया है. धरने पर बैठी बीएचयू की बेटियां छेड़खानी पर रोक लगाने की मांग कर रही थी ताकि उन्हें पढ़ने के लिए ज्यादा समय मिल सके, सुरक्षित माहौल मिल सके. यूनिवर्सिटी में अगर बेटियों को सुरक्षित माहौल नहीं मिलेगा तो फिर कहां मिलेगा. शोहदों से बचाने की जिम्मेदारी यूनिवर्सिटी प्रशासन की होती है. बेटियां यही कह रही थी कि वीसी साहब उनके बीच आकर सुरक्षा का भरोसा भर दें. होना तो यही चाहिए था कि वीसी साहब को धरनास्थल जाना चाहिए था, बात करनी चाहिए थी, एक कमेटी का गठन करना चाहिए था और पुलिस प्रसाशन से मदद की गुहार करनी चाहिए थी. ऐसा होता तो न तो धरना जारी रखने की नौबत आती और न ही प्रधानमंत्री के दौरे को देखते हुए सख्ती करनी पड़ती. लेकिन हुआ उल्टा.

पुलिस को बुला लिया गया. आधी रात को बुलाया गया. डंडों लाठियों के साथ बुलाया गया और निहत्थी बेटियों की जबरदस्ती पिटाई की गयी. यहां भी महिला पुलिस कहीं नजर नहीं आई. कुछ लड़कियों ने तो पुलिस पर अमर्यादित हरकतें करने के भी गंभीर आरोप लगाए हैं. अब जाकर योगी सरकार जागी है. यूनिवर्सिटी प्रशासन से रिपोर्ट मांगी है. यूनिवर्सिटी ने भी जांच कमेटी बनाई है. यह कब रिपोर्ट देगी, रिपोर्ट में किसकी जिम्मेदारी तय होगी, रिपोर्ट सामने आने पर दोषियों के खिलाफ क्या कड़ी कार्रवाई होगी. यह कुछ तय नहीं है.

बड़ा सवाल उठता है कि आखिर यूनिवर्सिटी के अंदर पुलिस का क्या काम. पुलिस को अंदर जाने दिया ही क्यों गया. यही सवाल तब उठा था जब दिल्ली के जेएनयू में पुलिस दाखिल हुई थी. पुलिस अंतिम विकल्प होना चाहिए लेकिन देखा गया कि यूनिवर्सिटी प्रशासन ने पुलिस को पहले विकल्प के रुप में ही इस्तेमाल किया. धरना दे रही बेटियों के पास अधिकारी क्यों नहीं पहुंचे, छेड़खानी के आरोपी लड़कों के पीछे पुलिस क्यों नहीं भेजी गयी, खुद वीसी साहब को अपना दफ्तर छोड़ बेटियों के पास जाने का समय क्यों नहीं मिला. जिस राज्य में बेटियों को शोहदों से बचाने के लिए एंटी रोमियो स्काड बनाए गए और थानों में विशेष व्यवस्था की गयी उसी राज्य के एक शहर में शोहदें क्यों मनमानी करते रहे. कहां गया शहर का एंटी रोमियो दल. यह कुछ ऐसे जरुरी सवाल हैं जो यूनिवर्सिटी प्रशासन से भी पूछे जाने चाहिए और योगी सरकार से भी. सवाल महिला आयोग से भी पूछे जाने चाहिए जो हमेशा घटना होने के बाद ही जागता है और घटनास्थल का दौरा करके बयान जारी कर देता है. सोशल मीडिया में इस खबर पर यूनिवर्सिटी से लेकर सरकार तक की जमकर खिल्ली उड़ाई जा रही है. कांग्रेस नेताओं के काशी दौरे शुरु हो गये हैं. समाजवादी पार्टी भी विरोध कर रही है.

यानि घटना के बाद राजनीति उबाल पर है. उसकी वजह भी है. बीएचयू प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के चुनाव क्षेत्र का हिस्सा है. और लड़कियां तब धरने पर बैठी थीं जब वो खुद वहां के दौरे पर थे. सवाल ये भी उठ रहे हैं कि खुद प्रधानमंत्री ने बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ का नारा दिया है और फिर अगर उन्हीं के इलाके में इस तरह की घटना हो तो फिर ऐसे कैसे बचेगी और पढ़ेंगी बेटियां.

BLOG: BHU में बेटियों की पिटाई, इस घटना से बीजेपी को डरना चाहिए

उधर जगह-जगह कांग्रेस की छात्र इकाई एनएसयूआई से लेकर संघ की छात्र इकाई एबीवीपी तक सड़क पर है. मामला सिर्फ बीएचयू तक सीमित होकर नहीं रह गया है. देश भर में छेड़खानी एक बड़ी समस्या है और हर बेटी के घरवाले इससे दुखी भी हैं और प्रभावित भी. खासतौर से दूसरे जिलों से या राज्यों से बीएचयू आकर वहां पढ़ रही बेटियों के परिजन तो ज्यादा ही चिंतित हैं. ऐसे परिजन देश भर में फैले हुए हैं. आखिर जिस देश की 60 फीसद से ज्यादा आबादी 35 साल से कम हो और जहां महिलाओं की संख्या करीब करीब बराबर की हो उस देश में अगर बेटियों को छेड़खानी के विरोध में धरना देना पड़े और बदले में लाठी खानी पड़े तो फिर सवाल तो उठेंगे ही और सोशल मीडिया में तंज भी कसे जाएंगे.

अब इस घटना से बीजेपी को क्यों डरना चाहिए. आप कह सकते हैं कि लड़कियां सिर्फ बीजेपी शासित राज्यों में नहीं छिड़ती है. ऐसा देश भर में होता है भले ही किसी दल की सरकार हो. सही तर्क. लेकिन हाल के दिनों में छात्र राजनीति के मैदान में बीजेपी को मात खानी पड़ी है. राजस्थान में जरुर कुछ जगह यूनिवर्सिटी कालेज चुनावों में एबवीपी का परचम लहराया लेकिन दिल्ली से लेकर हैदराबाद में एबीवीपी को पिटना पड़ा है. कहीं कांग्रेस जीती है तो कहीं वाम दलों का महागठबंधन. जो बीजेपी 2019 के चुनावों में पहली बार वोट देने वाले करीब तीन साढे तीन करोड़ युवा वोटरों पर नजर रखे हैं उस बीजेपी का इस तरह छात्र राजनीति में पिटना एक चिंता का कारण होना चाहिए. क्या युवा वर्ग का रुख कुछ संकेत दे रहा है. इन संकेतों के पीछे बेरोजगारी है, यह खाओ यह न खाओ , यह पहनों यह न पहनो के बेतुके बयान है. युवा वर्ग आजादी चाहता है. युवा वर्ग आजाद माहौल में पढ़ना चाहता है. युवा अपने पंसद के कालेज में पढ़ना चाहता है, अपनी पंसद के विषय पढ़ना चाहता है , अपनी पंसद की नौकरी अपने पंसद के शहर में करना चाहता है. युवा को इतना दे दो बदले में वह भारत को न्यू इंडिया में बदल कर रख देगा. लेकिन पहले छेड़खानी से तो बेटियों को बचाइए.

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