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ब्लॉग: अब सुधर जाएगी सवा सौ करोड़ देशवासियों की ज़िंदगी!

नोट और वोट का रिश्ता पुराना है. नोटबंदी ने देश में तूफान मचा रखा है. मंगलवार रात आठ बजे से पहले तक सबकी सांसें रुकी हुई थीं. सब इस बात के इंतज़ार में थे कि बस अब पड़ोसी मुल्क को जवाब देने का ऐलान होने ही वाला है. सीमा पार से लगातार होने वाले हमलों और अपने सैनिकों की शहादत की ख़बरों से देश आहत ही नहीं बेचैन भी है. सेना प्रमुखों से, मंत्रिमंडल के सहयोगियों से बैठकें करने के बाद अब प्रधानमंत्री कोई निर्णायक फैसला सुनाने ही वाले हैं. लेकिन मुद्दों को मोड़ने में माहिर और गंभीरता का चोला ओढ़े शब्दों के इस जादूगर का पिटारा जब खुला तो पूरा देश एक दूसरी ही दिशा में मुड़ गया. खबरों का अंदाज़ बदल गया, आम आदमी की चिंताएं बदल गईं, प्राथमिकताएं बदल गईं और कूटनीतिक बहसों और अटकलबाज़ियों का रुख बदल गया.

काला धन एक बेहद दिलचस्प जुमला है. ये आपको डराता भी है, लालच भी दिलाता है और इसे वापस लाने का चुनावी वादा आपके सपने भी जगाता है. अच्छे दिन की परिकल्पना आपकी उम्मीदों को नए पंख देती है. लेकिन मोदी का ये अंदाज़ और अर्थव्यवस्था को नई ऊंचाई देने का दावा करने वाला यह फैसला नई बहस को जन्म दे चुका है.

सोशल मीडिया पर तारीफों के पुल बांधे जा रहे हैं, ऐसा लग रहा है मानो काला धन बस अब आपके खाते में सफेद धन की तरह आने ही वाला है. ये भी लग रहा है कि अब नकली नोटों का खेल खत्म हो गया, आतंकवादियों के हौसले पस्त हो गए, उनकी फंडिंग रूक गई और सरकार ने भ्रष्टाचारियों की कमर तोड़ कर रख दी. टीवी की बहसों में योग गुरू बाबा रामदेव से लेकर बीजेपी और संघ के तमाम नेतागण और विचारक इसे 56 इंच के सीने की ताकत बताते नहीं थक रहे हैं.

बेशक मोदी ने रातोंरात ये कलेजे वाला काम किया और जापान पहुंचकर देश को तरक्की के नए मायने समझाने में, एक नई आर्थिक ताकत बनाने में लग गए हैं. बाकी काम वो राहुल गांधी सरीखे नेताओं के लिए और आम आदमी के लिए छोड़ गए हैं.

मोदी जानते हैं कि इस देश में कुछ समय तक लोग परेशानियों का रोना रोते हैं, किसी फैसले को लेकर हो हल्ला मचाते हैं, सियासत करने वाले अपना काम करते हैं, मीडिया में बहसें होती हैं और ऐसे फैसलों पर सवाल उठते रहते हैं. इसलिए बेहतर है कि मुद्दों को नई दिशा दे दीजिए, जनता का ध्यान तमाम ज़रूरी सवालों से कुछ ऐसे हटा दीजिए कि वो बस इन्हीं मुश्किलातों को हल करने की जद्दोजहद में उलझी रहे.

पाकिस्तान से होने वाली घुसपैठ, सीमा पार से होने वाले हमले, सैनिकों की शहादत, कश्मीर के हालात के साथ साथ महंगाई और रोज़मर्रा की ज़रूरतों के सवालों से कुछ वक्त को ध्यान हटाया जाए और सबसे ज़रूरी ये कि इसी बहाने सरकारी खज़ाने में कई लाख करोड़ रूपए जमा करा लिए जाएं. बेशक इस मास्टरस्ट्रोक चलने का हौसला मोदी के अलावा किसी में नहीं. अपने संदेश में उन्होंने साफ साफ कहा कि अबतक करीब सवा लाख करोड़ रूपए सरकारी खजाने में जमा हो चुके हैं यानी आप सोचिए कि अपने देश में कितना काला धन पड़ा है. ये तो उसका महज़ तीस या चालीस फीसदी है जो घोषित तौर पर सरकार के पास आया, बाकी तो सफेद होकर उन्हीं के पास है. अब इस नए खेल से कितने लाख करोड़ और आएंगे, ये कुछ दिनों बाद पता चलेगा. सिर्फ स्टेट बैंक के आंकड़े देखिए तो बैंक खुलने के पहले ही दिन 22150 करोड़ रूपए जमा हो चुके हैं. सारे बैंक के आंकड़े आएंगे तो सोच लीजिए कितने होंगे. यानी ये देखकर लग रहा है कि आतंकियों की फंडिंग रूके या न रूके, नकली नोटों पर लगाम लगे न लगे, लेकिन देश के उन तमाम आम लोगों के घरों में ज़रूरत के या फिर गैर ज़रूरत के कितने पैसे कैश पड़े होते हैं.

दरअसल ये वो आम लोग ही जानते हैं कि उनकी रोज़ की ज़िंदगी कैसे चलती है. बैंकों और एटीम में लगने वाली भीड़, लंबी लंबी कतारें इसकी असलियत बयान कर रही हैं. ऐसे में देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने और एक मज़बूत अर्थव्यवस्था वाला भारत बनाने के लिए की गई प्रधानमंत्री की ये पहल तभी कारगर मानी जाएगी जब देश के आम आदमी को इसका फायदा नज़र आएगा. सरकारी ख़जाने भर जाने का फायदा अगर सरकार के ही नुमाइंदे, मंत्रीगण या दबदबे वाले लोग उठाते रहें तो ऐसे काले धन का बाहर आने या न आने से किसी को क्या फर्क पड़ता है.

क्या ये मान लेना चाहिए कि वोटतंत्र में नोटतंत्र अब नहीं चलेगा? क्या ये मान लेना चाहिए कि किसी भी चुनाव में अब धड़ल्ले से रूपए नहीं बहेंगे या फिर 500 या 2000 के नकली नोट बाज़ार में नहीं आएंगे? क्या ये मान लेना चाहिए कि इससे महंगाई कम हो जाएगी, रोज़ाना की मुश्किलें कम हो जाएंगी, आम आदमी के खाते में इस काला धन का इतना हिस्सा खुद ब खुद आ जाएगा जिससे उसका जीवन सुधर सके, किसानों की मुश्किलें कम हो सकें, जिन्होंने मजबूरी में कर्ज़ लें रखे हैं, उनके कर्ज़ माफ हो जाएंगे? बेशक ये सवाल भाजपा को छोड़कर सभी पार्टियां पूछ रही हैं, एक सामान्य आदमी पूछ रहा है और यहां तक कि भाजपा की सहयोगी पार्टियां भी पूछ रही हैं.

जाहिर सी बात है कि अपने देश की जनता बेहद संवेदनशील, सहनशील और धैर्य वाली है, वो मूल रूप से ईमानदार है, मशक्कत के साथ जीवन काटती है और कुछ सपनों के साथ जीते जीते अपनी अंतिम सांस तक पहुंच जाती है. ऐसे में अगर सचमुच सरकारी ख़जाने में जमा हो रहे करोड़ों करोड़ रूपए देशवासियों के काम आते हैं तो मोदी जी का नाम हमेशा हमेशा के लिए अमर हो जाएगा. हमें उम्मीद करनी चाहिए कि ऐसा ही हो.

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ओपिनियन

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