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Holi 2022 : आखिर क्यों किया था शिव नें कामदेव को भस्म? जानें इसका क्या है राज? जानिए क्यों मनाते हैं रंगों का त्यौहार होली

Holi 2022 : कामदेव ने शिवशंकर को प्रसन्न करने के लिए किसकी की थी मदद? जानिए होली के त्याैहार के पीछे क्या है कहानी? जाने क्यों मनातें हैं होलिका दहन के दूसरे दिन रंगों का त्यौहार होली?

Holi 2022 : रंगों का त्यौहर होली आने वाली 18 मार्च को खेला जाएगा. इससे ठीक एक दिन पहले फाल्गुन की पूर्णिमा के दिन होलिका दहन की भी परंपरा है. होली को लेकर कई प्रकार की कहानियां प्रचलित हैं. इनमें से एक कथा कामदेव की भी है. कुछ लोग कहते हैं कि होली की आग में वासनात्मक आकर्षण को प्रतीकात्मक रूप से जला कर सच्चे प्रेम की विजय का उत्सव मनाया जाता है लेकिन कुछ इसी कहानी का और विस्तार करते हैं. इसके अनुसार कामदेव के भस्म हो जाने पर उनकी पत्नी रति रोने लगीं और शिव से कामदेव को जीवित करने की गुहार लगाई. अगले दिन तक शिव का क्रोध शांत हो चुका था, उन्होंने कामदेव को पुनर्जीवित कर दिया तो कामदेव के भस्म होने के दिन होलिका जलाई जाती है और उनके जीवित होने की खुशी में रंगों का त्योहार मनाया जाता है. आइए जानते हैं होली का कामदेव और शिवशंकर से संबंध और इससे संबंधित कथा -

कामदेव और शिव शंकर की कथा 

होली की पौराणिक कथा के अनुसार पार्वती शिव से विवाह करना चाहती थीं लेकिन तपस्या में लीन शिव का ध्यान उनकी ओर गया ही नहीं. पार्वती की इन कोशिशो को देखकर प्रेम के देवता कामदेव आगे आए और उन्होंने शिव पर पुष्प बाण चला दिया. जिसके कारण शिव की तपस्या भंग हो गई. तपस्या भंग होने से शिव को इतना ग़ुस्सा आया कि उन्होंने अपनी तीसरी आंख खोल दी और उनके क्रोध की अग्नि में कामदेव भस्म हो गए. फिर शिवजी ने पार्वती को देखा और कुछ कामदेव के बाण का असर और कुछ पार्वती की आराधना- शिव ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया लेकिन होली की कथा इसके बाद शुरू होती है. देवताओं और उनसे ज्यादा पार्वती का मनोरथ सिद्ध करते हुए कामदेव भस्म हो गए. उनकी पत्नी रति को असमय ही वैधव्य सहना पड़ा.

रति ने शिव की आराधना की. वह जब अपने निवास पर लौटे, तो कहते हैं कि रति ने उनसे अपनी व्यथा कही. पार्वती की पिछले जन्म की बातें याद कर शिव ने जाना कि कामदेव निर्दोष हैं. पिछले जन्म में दक्ष प्रसंग में उन्हें अपमानित होना पड़ा था. उनके अपमान से विचलित होकर दक्षपुत्री सती ने आत्मदाह कर लिया. उन्हीं सती ने पार्वती के रूप में जन्म लिया और इस जन्म में भी शिव का ही वरण किया. कामदेव ने तो उन्हें सहयोग ही दिया. शिव की दृष्टि में कामदेव फिर भी दोषी हैं, क्योंकि वह प्रेम को शरीर के तल तक सीमित रखते और उसे वासना में गिरने देते हैं. इसका उपाय रचकर शिव ने कहा कि काम का पुष्पबाण अब मन को ही बींधेगा. उन्होंने कामदेव को जीवित कर दिया. उसे नया नाम दिया मनसिज. कहा कि अब तुम अशरीरी हो. उस दिन फाल्गुन की पूर्णिमा थी. आधी रात में लोगों ने होली का दहन किया था. सुबह तक उसकी आग में वासना की मलिनता जलकर प्रेम के रूप में प्रकट हो चुकी थी. कामदेव अशरीरी भाव से नए सृजन के लिए प्रेरणा जगाते हुए विजय का उत्सव मनाने लगे. यह दिन होली का दिन होता है. कई इलाकों में आज भी रति के विलाप को लोकधुनों और संगीत में उतारा जाता है.

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