जब लालू को मुख्यमंत्री बना नीतीश ने तोड़ दी थी दोस्ती
इतिहास गवाह है कि जब दोस्त फेल हो जाता है, तो दुख होता है. लेकिन अगर वही दोस्त टॉप कर जाए, तो वो दर्द दोगुना हो जाता है. भारतीय राजनीति के इतिहास में ऐसी ही दोस्ती की एक मिसाल बिहार के दो नेताओं के बीच भी मिलती है, जिसमें एक दोस्त सत्ता के सर्वोच्च शिखर पर पहुंच गया तो दूसरे दोस्त को इतना दुख हुआ कि उसने न सिर्फ दोस्ती तोड़ी बल्कि अपनी राजनीति की दिशा ही इस कदर मोड़ दी कि वो खुद अपने दोस्त को हटाकर सत्ता के सर्वोच्च शिखर पर पहुंच गया और ऐसा पहुंचा कि चंद दिनों को छोड़ दिया जाए, तो उसे कुर्सी से कोई हटा नहीं पाया है. इतिहास गवाह है के इस एपिसोड में कहानी बिहार के दो दोस्त रहे लालू यादव और नीतीश कुमार की, जिसमें पटना के गांधी मैदान में हुई एक रैली के मंच पर नीतीश की मौजूदगी ने बिहार की पूरी सियासत ही बदल दी.


























