अंधविश्वास का सबसे डरावना खेल
धार के दसाई में गूंजे ‘जय गोमाता’ के जयकारे, सैकड़ों गायों के बीच मन्नतधारियों ने निभाई आस्था की सदियों पुरानी परंपरा...
दसाई / धार
धार जिले के सरदारपुर क्षेत्र के ग्राम दसाई में दीपावली के अगले दिन पड़वा पर्व पर आयोजित गाय गोहरी उत्सव ने एक बार फिर आस्था, परंपरा और लोक संस्कृति की अनोखी मिसाल पेश की।
हर साल की तरह इस बार भी हजारों श्रद्धालु इस ऐतिहासिक आयोजन को देखने के लिए दूर-दूर से दसाई पहुंचे।
सुबह से ही गांव की गलियों में भक्ति और उल्लास का अद्भुत संगम देखने को मिला।
श्रद्धालुओं ने पारंपरिक विधि से गोवर्धन पूजा की और गोवर्धन पर्वत की प्रतीकात्मक परिक्रमा की।
सजी-धजी गायों को फूलों की मालाओं और रंगोली से सजाया गया, वहीं ग्रामीणों ने पारंपरिक “हिडी” गीतों पर झूमकर नृत्य किया।
इस पर्व की सबसे खास परंपरा रही.. मन्नतधारियों की आस्था।
मान्यता है कि जब किसी व्यक्ति की मन्नत पूरी होती है, तो वह भगवान श्रीकृष्ण और गौमाता का आशीर्वाद पाने के लिए जमीन पर लेटता है, और उसके ऊपर से सैकड़ों गाएं गुजरती हैं।
इस दौरान गांव में “जय गोवर्धनधारी” और “जय गोमाता” के जयकारे गूंज उठते हैं।
हालांकि इस प्रक्रिया में कुछ लोग हल्के रूप से घायल भी हो जाते हैं, लेकिन उनकी आस्था डगमगाती नहीं,
बल्कि और भी दृढ़ हो जाती है।
गांव की गलियां दीपों और फूलों से सजीं, और हर तरफ भक्तिमय माहौल रहा।
दसाई, सरदारपुर और आसपास के गांवों में भी गाय गोहरी पर्व की धूम देखने को मिली।
गाय गोहरी सिर्फ एक पर्व नहीं —
यह भारतीय ग्रामीण संस्कृति, श्रद्धा और सामूहिक आस्था का जीवंत प्रतीक है,
जो आज भी मालवा की मिट्टी में उतनी ही मजबूती से सांस ले रहा है,
जितनी सदियों पहले लेता था।
गोवर्धन पूजा और परिक्रमा करते श्रद्धालु
फूलों से सजी गायें और उन्हें सजाते ग्रामीण
मन्नतधारियों पर से गुजरती गायें
जयकारों और नृत्य से गूंजा गांव
दूर-दूर से उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़
******************************





































