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उत्तराखंड में ऊर्जा डिमांड बढ़ी! सालों से लटके पावर प्रोजेक्ट, सरकार की 21 परियोजनाओं पर टिकी आस

Uttarakhand Electricity Shortage: उत्तराखंड में बढ़ती आबादी और औद्योगिक विकास से हालिया कुछ सालों में बिजली सप्लाई की डिमांड बढ़ गई. इस मांग को पूरा करने के लिए सरकार की इन परियोजनाओं पर नजर टिकी है.

Dehradun News Today: उत्तराखंड में ऊर्जा संकट लगातार गहराता जा रहा है. एक ओर राज्य की विद्युत मांग हर साल तेजी से बढ़ रही है, दूसरी ओर जल विद्युत परियोजनाओं पर लगी रोक के कारण उत्पादन में वृद्धि संभव नहीं हो पा रही है. स्थिति यह है कि उत्तराखंड, जो प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर राज्य माना जाता है,अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं के लिए बाहरी स्रोतों पर निर्भर होता जा रहा है. 

राज्य सरकार की निगाहें अब उन 21 जल विद्युत परियोजनाओं पर टिकी हैं, जिन्हें सुप्रीम कोर्ट की तीसरी समिति ने हरी झंडी दी थी. लेकिन अभी भी केंद्र सरकार की मंजूरी का इंतजार कर रही हैं. अगर इन परियोजनाओं को स्वीकृति मिलती है, तो उत्तराखंड अपनी ऊर्जा जरूरतों को काफी हद तक पूरा कर सकता है.

विद्युत मांग से उत्पादन में असंतुलन
उत्तराखंड में विद्युत की मांग लगातार बढ़ रही है. पीक सीजन में यह मांग 2600 मेगावाट प्रतिदिन तक पहुंच जाती है, जबकि उत्तराखंड जल विद्युत निगम लिमिटेड (UJVNL) का सर्वाधिक उत्पादन सिर्फ 900 से 1000 मेगावाट तक का ही है. इस भारी अंतर को पाटने के लिए राज्य को लगभग 1600 मेगावाट बिजली केंद्रीय पूल या खुले बाजार से खरीदनी पड़ती है. 

सामान्य दिनों में भी उत्तराखंड में बिजली की मांग 2000 से 2100 मेगावाट के बीच बनी रहती है, जबकि उत्पादन 300 से 400 मेगावाट ही होता है. इस कमी को पूरा करने के लिए उत्तराखंड सरकार को हर साल करीब 1000 करोड़ रुपये की बिजली खरीदनी पड़ती है, जिससे राज्य के राजकोष पर भारी वित्तीय बोझ पड़ रहा है.

उत्तराखंड अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण विद्युत उत्पादन की असीम संभावनाएं रखता है. राज्य में नदियों की प्रचुरता के कारण यहां लगभग 20 हजार मेगावाट तक बिजली उत्पादन की क्षमता है, लेकिन वर्तमान में सिर्फ 4249 मेगावाट की क्षमता वाली जल विद्युत परियोजनाएं संचालित हो रही हैं. अगर सरकार को रुकी हुई 21 जल विद्युत परियोजनाओं को शुरू करने की अनुमति मिलती है, तो राज्य को अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने में बड़ी मदद मिलेगी.

सुप्रीम कोर्ट ने लगाई थी रोक
साल 2013 की केदारनाथ आपदा के बाद सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड की जल विद्युत परियोजनाओं पर खुद संज्ञान लेते हुए इन पर रोक लगा दी थी. इसके बाद साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरणविद् रवि चोपड़ा की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की, जिसने अपनी रिपोर्ट में 24 जल विद्युत परियोजनाओं को आगे न बढ़ाने की सिफारिश की थी.

परियोजना से जुड़ी कंपनियों और राज्य सरकार ने इस रिपोर्ट पर आपत्ति जताई, जिसके बाद 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने आईआईटी कानपुर के प्रोफेसर विनोद तारे की अध्यक्षता में दूसरी कमेटी बनाई. इस कमेटी ने भी जल विद्युत परियोजनाओं के चलते पर्यावरणीय जोखिमों को उजागर करते हुए इन्हें शुरू करने के खिलाफ रिपोर्ट दी.

गठित कमेटी ने की ये सिफारिश
इसके बाद भी राज्य सरकार और अन्य पक्ष सुप्रीम कोर्ट में इन परियोजनाओं की वकालत करते रहे. साल 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने हाइड्रोलॉजी एक्सपर्ट बीपी दास की अध्यक्षता में तीसरी कमेटी गठित की, जिसने राज्य में 28 जल विद्युत परियोजनाओं को शुरू करने की सिफारिश की. केंद्र सरकार ने इनमें से सिर्फ 7 परियोजनाओं को मंजूरी दी, जिन पर पहले से ही कार्य प्रारंभ हो चुका था.

जब सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा कि 28 में से केवल 7 परियोजनाओं को ही मंजूरी क्यों दी गई, तो केंद्र ने कैबिनेट सचिव टीवी सोमनाथन की अध्यक्षता में एक नई समिति गठित की. इस समिति ने अध्ययन के बाद 5 और जल विद्युत परियोजनाओं को मंजूरी देने की सिफारिश की, यह तर्क देते हुए कि इन परियोजनाओं से होने वाला लाभ संभावित पर्यावरणीय नुकसान से अधिक होगा.

हालांकि, इन पांच परियोजनाओं पर अभी केंद्र के जल शक्ति मंत्रालय से अंतिम मंजूरी नहीं मिली है और यह मामला सुप्रीम कोर्ट के न्यायिक पुनर्वलोकन (Judicial Review) के अधीन है.

5 परियोजनाओं को मिली सिफारिश
सरकार उत्तराखंड की 54 जल विद्युत परियोजनाओं की वकालत कर रही थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट की कमेटी ने 28 को मंजूरी दी थी. केंद्र ने इनमें से केवल 7 को हरी झंडी दिया था, जबकि अब 5 और परियोजनाओं को शुरू करने की सिफारिश की गई है.

इन 5 परियोजनाओं में 2 बड़ी जल विद्युत परियोजनाएं शामिल है, जबकि 3 छोटी जल विद्युत परियोजनाएं शामिल हैं. अगर इन 5 परियोजनाओं को स्वीकृति मिलती है, तो राज्य को 600 मेगावाट अतिरिक्त बिजली उत्पादन की क्षमता मिल सकती है.

ऊर्जा संकट से उबरने की चुनौती
ऊर्जा संकट से निपटने के लिए उत्तराखंड सरकार के सामने कई चुनौतियां हैं, आइये बिंदुवार समझते हैं पूरा मामला-
न्यायिक प्रक्रिया में देरी: पिछले एक दशक से जल विद्युत परियोजनाओं को लेकर कानूनी विवाद जारी हैं.

केंद्र की अनिश्चितता: सुप्रीम कोर्ट की सिफारिश के बावजूद केंद्र सरकार इन परियोजनाओं को लेकर पूरी तरह से सहमत नहीं है.

पर्यावरणीय जोखिम: जल शक्ति मंत्रालय और पर्यावरणविदों का मानना है कि जल विद्युत परियोजनाओं से हिमालयी क्षेत्र में भूस्खलन और आपदाओं का खतरा बढ़ सकता है.

आर्थिक बोझ: जब तक नई परियोजनाओं को मंजूरी नहीं मिलती, राज्य को हर साल हजारों करोड़ रुपये की बिजली खरीदनी पड़ेगी.

उत्तराखंड के लिए जल विद्युत परियोजनाएं ऊर्जा संकट का स्थायी समाधान हो सकती हैं, लेकिन कानूनी और पर्यावरणीय अड़चनों के कारण सरकार इन्हें लागू करने में असमर्थ रही है. सुप्रीम कोर्ट की तीसरी कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर 5 और परियोजनाओं को मंजूरी देने की सिफारिश की गई है, जिससे राज्य को 600 मेगावाट अतिरिक्त बिजली मिल सकती है.

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