सरकार अगर सेक्युलर है तो मंदिर और मठों से छोड़ दे नियंत्रण- स्वामी निश्चलानंद
Swami Nischalananda Saraswati Statement: स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने सेलिब्रिटियों को सीधे धार्मिक उपाधि मिलने पर प्रतिक्रिया व्यक्त की है. उन्होंने कहा कि किसी को भी वाना पहना देना दिशाहीनता है.

Prayagraj News Today: प्रयागराज में जारी महाकुंभ में साधु संत, यहां की व्यवस्थाएं लगातार चर्चा का विषय बनी हुई हैं. पवित्र स्नान के लिए पहुंच रहे श्रद्धालु साधु संतों से मार्गदर्शन भी ले रहे हैं. यहां सेक्टर सेक्टर-20 में शंकराचार्य मार्ग पर पुरी की गोवर्धन पीठ के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती भी डेरा जमाए हुए हैं, जिनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए लगातार भक्त पहुंच रहे हैं. शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती अक्सर अपने बयानों को लेकर सुर्खियों में रहते हैं.
एक बार फिर शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने बड़ा बयान दिया है, जिसमें उन्होंने कहा कि अब अब सबको संत नही एजेंट चाहिए जो उनका प्रचारक हो. उन्होंने कहा कि सबके पूर्वज सनातनी वैदिक आर्य हिंदू थे और यह ऐतिहासिक तथ्य है. यह तो विभाजन के बाद का भारत है.
हिंदू राष्ट्र के मुद्दे पर क्या कहा?
हिंदी अखबार नवभारत टाइम्स को दिए साक्षात्कार में स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने हिंदू राष्ट्र की मांग को लेकर कहा कि अगर यह भी हिंदू राष्ट्र नहीं है तो कौन होगा? उन्होंने कहा कि गुलाम नबी आजाद भी स्वीकार कर चुके हैं कि उनके पूर्वज कश्मीरी पंडित थे. उन्होंने कहा कि हिंदू राष्ट्र का लक्ष्य है सुरक्षित, स्वस्थ, सुसंस्कृत, शिक्षित, सेवापरायण समाज की स्थापना है. साथ में दूसरे लोगों के हितों को ध्यान में रखते हुए हिंदुओं के अस्तित्व व आदर्श की रक्षा करना है.
इस मौके पर हिंदू सनातन बोर्ड की मांग की सवाल पर पुरी की गोवर्धन पीठ के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने कहा, "दूसरे लोगों ने मुस्लिम बोर्ड बनाया तो हिंदू कह रहे हैं कि हम सनातन बोर्ड बनाएंगे." उन्होंने सियासी दलों पर कटाक्ष करते हुए कहा, "जो चार शंकराचार्य हैं अगर वह कांग्रेसी, बसपाई, भाजपाई, सपाई न हो तो पहले से ही समाज को चार शंकराचार्यों का मार्गदर्शन प्राप्त है." स्वामी निश्चलानंद ने सवाल किया कि अगर शंकराचार्य अपना काम करने लगें तो दूसरे बोर्ड की क्या जरूरत है? यह तो सिर्फ और सिर्फ नाम कमाने की बात है.
'बाबा के रूप में चाहिए एजेंट'
शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने कहा, "जो लोग खुद शंकराचार्य नहीं हैं उन्होंने परिषद बना रखे हैं." उन्होंने कहा, "शंकराचार्य के रूप में पूजे जाने की वासना हो गई है, इससे कोई काम नहीं होगा. अब बाबा के रूप में एजेंट चाहिए." स्वामी निश्चलानंद ने कहा, "एक व्यक्ति का नाम नहीं लूंगा, जो कांग्रेस की सरकार थी तो कांग्रेस के प्रचारक थे. बाद में वे बीजेपी में शामिल हो गए. यह लाभ उठाने का एक तरीका है. बाबा के वेश में सबको प्रचार चाहिए."
एनबीटी में छपी खबर के मुताबिक, जब शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने मंदिरों, मठों को शासकीय नियंत्रण से मुक्त किए जाने के सवाल पर भी प्रतिक्रिया व्यक्त की. उन्होंने कहा, "अगर शासन तंत्र खुद को सेक्युलर कहता है तो उसे धार्मिक, आध्यात्मिक क्षेत्र में हस्तक्षेप का कोई अधिकार नहीं है. पर्व का निर्धारण पंचांग के आधार पर होता है." सरकार का काम उसकी व्यवस्था करना है." स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने कहा कि दूसरे धर्मों से जुड़े मामलों में कोई हस्तक्षेप नहीं कर सकता है, लेकिन हिंदुओं पर सबकी दाल गल जाती है.
'अविद्या का त्याग वास्तविक संन्यास;
कई सेलिब्रिटियों के सीधे धार्मिक उपाधि मिलने और महामंडलेश्वर या संन्यासी बन जाने के सवाल पर स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने तीखी प्रक्रिया व्यक्त की. उन्होंने कहा, "असल है तो नकल होगा ही. यह तंत्र की दिशाहीनता ही है. अविद्या, काम और कर्म का जो त्याग है वह संन्यास है. ऐसे में बाहरी संन्यास है आंतरिक संन्यास की पुष्टि के लिए है. अविद्या का त्याग ही वास्तविक संन्यास है. इसी के लिए यह बाहरी भेष हम धारण करते हैं."
स्वामी निश्चलानंद ने कहा, "अब किसी को भी वाना पहना देना दिशाहीनता ही तो है. पर्व के अवसर पर बहुत से संत संन्यासी दिखते हैं. बाद में कहां चले जाते हैं? कोई कहता है कि हिमालय में चले गए, दृष्टि का विषय नहीं बनते जबकि कोई पेट, पजामा वाले हो जाते हैं."
गोवर्धन पीठ के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने एक घटना का जिक्र करते हुए कहा, "मुझसे इसरो के एक वैज्ञानिक मिले. उन्होंने कहा कि प्राइमरी स्कूल के बच्चों के पास जाने से मैं बहुत घबरात हूं. छोटा सा बच्चा ऐसा प्रश्न कर देता है कि मेरा पढ़ना-लिखना बेकार हो जाता है." उन्होंने कहा कि जब असली शंकराचार्य कोई हो तो उसके लिए भी दर्शन, विज्ञान और व्यवहार में सामंजस्य स्थापित कर बोलना, नवयुवकों की शंका का समाधान करना संकटपूर्ण हो जाता है. ऐसे में नकलियों की क्या विसात है. बशर्ते लोग कोरी भावुकता के वशीभूत ना हों.
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Source: IOCL





















