Durga Puja 2022: बुरी आत्माओं से बचाने के लिए बस्तर में आधी रात निभाई गयी अनोखी रस्म, सालों से चली आ रही परंपरा
Navratri 2022: देर रात निशा जात्रा रस्म धूम धाम से संपन्न हुई. बस्तर राजपरिवार के राजकुमार कमलचंद भंजदेव, दशहरा पर्व समिति के सदस्य और बड़ी संख्या में बस्तरवासी शामिल होने आए.
Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ के बस्तर में 75 दिनों तक चलने वाले विश्व प्रसिद्ध दशहरा पर्व (Dussehra 2022) की सबसे अद्भुत रस्म निशा जात्रा रस्म को मंगलवार और बुधवार की आधी रात महाष्टमी के दिन पूरे विधि विधान के साथ संपन्न किया गया. बस्तर (Bastar) दशहरा में इसे काले जादू का रस्म भी कहा जाता है. बताया जाता है कि प्राचीन काल से इस रस्म को बस्तर के महाराजा बुरी प्रेत आत्माओं से अपने राज्य की रक्षा के लिए निभाते थे जिसमें बलि प्रथा मुख्य रूप से शामिल थी. हजारों बकरों भैंसों यहां तक कि नरबलि देने की भी प्रथा थी लेकिन अब वर्तमान में निशा जात्रा रस्म में केवल 11 बकरों की बलि देकर रस्म की अदायगी की जाती है.
धूमधाम से संपन्न हुई रस्म
इसके लिए जगदलपुर शहर में एक निर्धारित स्थान मौजूद है जिसे गुड़ी मंदिर कहा जाता है. बाकायदा राज महल से बस्तर के राजकुमार पैदल गाजे बाजे के साथ इस गुड़ी मंदिर में पहुंचते हैं और यहां महाष्टमी और नवमी के आधी रात इस रस्म की अदायगी होती है. देर रात भी इस रस्म को धूम धाम से संपन्न किया गया. इस रस्म में बस्तर राजपरिवार के राजकुमार कमलचंद भंजदेव, दशहरा पर्व समिति के सदस्य और बड़ी संख्या में बस्तरवासी और बाहर से पर्व में शामिल होने आए और पर्यटक भी मौजूद रहे.
बस्तर की अनोखी परंपरा
बस्तर राजपरिवार के राजकुमार कमलचंद भंजदेव ने बताया कि, बस्तर दशहरा में इस काले जादू की रस्म की शुरुआत सन 1301 में की गई थी. इस तांत्रिक रस्म को बस्तर के महाराजा बुरी प्रेत आत्माओं से राज्य की रक्षा के लिए अदा करते थे. बकायदा इस रस्म में बलि चढ़ाकर देवी को प्रसन्न किया जाता है ताकि देवी बुरी प्रेत आत्माओं से राज्य की रक्षा करें. कमलचंद भंजदेव ने बताया कि निशा जात्रा का यह रस्म बस्तर के इतिहास में बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखता है, हालांकि समय के साथ-साथ इस रस्म में जरूर बदलाव आए हैं. पहले इस रस्म में कई हजार बकरों और भैंसों की बलि के साथ-साथ नरबलि भी दी जाती थी.
शांति, सुख, समृद्धि के लिए
इस रस्म को बुरी प्रेत आत्माओं से राज्य की रक्षा के लिए अदा किया जाता था. अभी इस रस्म को राज्य में शांति और सुख समृद्धि बनाए रखने के लिए निभाया जाता है. इस अनोखी रस्म को देखने देश-विदेश से भारी संख्या में पर्यटक गुड़ी मंदिर पहुंचते हैं. गौरतलब है कि समय के साथ आज भारत के अधिकतर इलाकों की परंपराए आधुनिकरण की बलि चढ़ गईं हैं लेकिन बस्तर दशहरा की यह परंपरा अनवरत चली आ रही है. बस्तर राजपरिवार, बस्तर के आदिवासी और स्थानीय जनप्रतिनिधि के साथ स्थानीय प्रशासन भी बस्तर दशहरा के इन अद्भुत रस्मो को आज भी धूमधाम से निभाते हैं.
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