बिहार में बेखौफ गुंडों का तांडव, 24 घंटे में सीतामढ़ी में मॉब लिंचिंग, रोहतास और मोतिहारी में भी मर्डर
बीते सात सितंबर को बिहार के बेगूसराय में भी गांव के लोगों ने तीन अपराधियों की पीट-पीट कर हत्या कर दी थी. वहीं 9 सितंबर को रोहतास में कुछ लोगों ने एक अनुसूचित जाति की महिला की पीट-पीटकर हत्या कर दी थी.

नई दिल्ली: 'सुशासन बाबू' नीतीश कुमार के राज में बिहार इस समय अपराधियों और गुंडों के कब्जे में चला गया है. कानून व्यवस्था को लकवा मार गया है और कानून का डर पूरी तरह खत्म हो चुका है. बीते 24 घंटे में सीतामढ़ी जिले में भीड़ ने एक युवक की पीट-पीट कर हत्या कर दी तो वहीं रोहतास जिले में रेलवे बुकिंग सुपरवाइजर की हत्या कर दी गई. इसके अलावा मोतिहारी जिले में मर्डर की वारदात को अंजाम दिया गया है.
हाल के दिनों में हुई अपराध की घटनाएं इस बात को बल देती हैं कि राज्य में कानून का डर खत्म हो चुका है. चाहे हत्या हो, मॉब लिचिंग हो या फिर महिलाओं के खिलाफ अत्याचार हो, नीतीश कुमार की सरकार विपक्ष के निशाने पर है. बिहार के सीतामढ़ी जिले के रीगा थाना के रमनगरा इलाके में भीड़ की हिंसा की वजह से एक युवक की मौत हो गई है. ये घटना रविवार की है. दरअसल लूट की अफवाह के बाद रूपेश नाम के पिकअप वैन के ड्राइवर को गांव वालों ने लाठी डंडों से इतना मारा की वह गंभीर रूप से जख्मी हो गया. जख्मी युवक की पटना में इलाज के दौरान मौत हो गई. पुलिस ने एक नामजद और 150 अज्ञात लोगों के खिलाफ केस दर्ज कर लिया है.
याद हो कि बीते सात सितंबर को बिहार के बेगूसराय में भी गांव के लोगों ने तीन अपराधियों की पीट-पीट कर हत्या कर दी थी. वहीं 9 सितंबर को रोहतास में कुछ लोगों ने एक अनुसूचित जाति की महिला की पीट-पीटकर हत्या कर दी थी. रोहतास जिले के डेहरी थाना क्षेत्र के अंबेडकर चौक के पास विवाद बच्चों के बीच शुरू हुआ था.
ये घटनाएं बताती हैं कि बिहार में कानून व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गई है. बिहार पुलिस की तरफ से जारी किये गए आकंड़े ही राज्य सरकार पर कई पर सवाल उठा रहे हैं. बिहार पुलिस के मुताबिक 2018 में बिहार में मर्डर के 1521, अपहरण के 5168, रेप के 782, झपड़ के 5630, डकैती के 151, फिरौती के लिए अपहरण के 27 केस दर्ज हो चुके हैं.
बिहार में महिलाओं के साथ बलात्कार, छेडछाड़, अपहरण, दहेज के लिए हत्या और प्रताड़ना के मामलों में भी वृद्धि देखी गई है. पिछले बरस हर दिन जहां बलात्कार की तीन से ज्यादा घटनाएं हुईं, वहीं अपहरण के 18 से ज्यादा मामले हर रोज दर्ज किए गए. इस साल की पहली छमाही के आंकड़े भी कुछ ऐसे ही हैं. राज्य के पुलिस मुख्यालय से जानकारी के मुताबिक, साल 2017 के दौरान प्रदेश में महिला अपराध से जुडे़ कुल 15,784 मामले प्रकाश में आए. इनमें बलात्कार के 1199, अपहरण के 6817, दहेज हत्या के 1081, दहेज प्रताड़ना के 4873 और छेड़खानी के 1814 मामले शामिल हैं. साल 2018 के जून तक बिहार में महिला अपराध के कुल 7683 मामले प्रकाश में आए. इनमें बलात्कार के 682, अपहरण के 2390, दहेज हत्या के 575, दहेज प्रताड़ना के 1535, छेड़खानी के 890 और महिला प्रताड़ना के 1611 मामले शामिल हैं.
उधर विपक्ष ने नीतीश कुमार पर निशाना साधते हुए कहा है कि बिहार मॉब लिंचिंग का हब बन गया है. नेता प्रतिपक्ष और पूर्व डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने मुख्यमंत्री नीतीश पर निशाना साधते हुए कहा कि केंद्र की मॉब लिंचिग समर्थक सरकार ने बिहार में ऐसी घटनाओं को प्रायोजित करने पर आपको ईनाम देने का वादा किया है क्या?
नीतीश जी, बिहार में कल मॉब लिंचिंग की दो घटनाएँ और हुई है।
* सीतामढ़ी में एक युवक की भीड़ ने सरेआम पीट-पीटकर हत्या कर दी। * जमुई में भी भीड़ ने एक को पीटा। केंद्र की मॉब लिंचिग समर्थक सरकार ने बिहार में ऐसी घटनाओं को प्रायोजित करने पर आपको ईनाम देने का वादा किया है क्या? https://t.co/T0eI52bif6 — Tejashwi Yadav (@yadavtejashwi) September 11, 2018
/p> भीड़ की हिंसा पर सुप्रीम कोर्ट के निर्देश
भीड़ की हिंसा को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 17 जुलाई को कुछ दिशा निर्देश जारी किए थे. उस दिशा निर्देश के बावजूद देश में भीड़ की हिंसा नहीं रुक रही थी. सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर राज्यों को एक हफ्ते के अंदर दिशा निर्देश लागू करने का आदेश दिया.
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के मुताबिक
-हर जिले में एसपी रैंक का अधिकारी नोडल ऑफिसर बने. -जरूरत के मुताबिक नोडल ऑफिसर स्पेशल टास्क फोर्स बनाएं. -ऐसे इलाकों की पहचान हो जहां हिंसा की आशंका हो, ऐसी जगहों पर विशेष चौकसी बरती जाए. -हिंसक भीड़ को तितर-बितर करना वहां मौजूद पुलिस अधिकारी की ज़िम्मेदारी. -भीड़ द्वारा हिंसा के मामलों में तुरंत FIR दर्ज हो. -मुकदमों की फास्ट ट्रैक सुनवाई कर 6 महीने में निपटारा हो. -राज्य पीड़ित मुआवजा योजना बनाई जाए और स्थिति की गंभीरता के हिसाब से मुआवजा तय कर 30 दिन में दिया जाए. -आरोपियों की जमानत अर्जी पर विचार से पहले पीड़ित पक्ष को भी सुना जाए. -भीड़ की हिंसा की रोकथाम/जांच में लापरवाही बरतने वाले पुलिस/प्रशासन के अधिकारी के खिलाफ विभागीय कार्रवाई 6 महीने में पूरी हो. -केंद्र और राज्य सोशल मीडिया या दूसरे तरीकों से भड़काऊ मैसेज/वीडियो फैलाने पर रोकथाम के लिए जरूरी कदम उठाएं.
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Source: IOCL





















