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मराठीवाद से हिंदुत्व की ओर, राज ठाकरे का बजरंग बाण

राज ठाकरे ने आत्ममंथन किया तो उन्होंने पाया कि मराठी का मुद्दा उन्हें भीड़ भरे मैदान में तालियां तो दिला देता है लेकिन विधान सभा में सीटें नहीं. इसी के बाद अब राज ठाकरे ने बजरंगबली की शरण ले ली है.

महाराष्ट्र की सियासत के एक अहम किरदार हैं राज ठाकरे. जब भी राज्य में कोई चुनाव नजदीक आता है, राज ठाकरे के भाषण चर्चित होने लगते हैं. भले ही ठाकरे की पार्टी एमएनएस को ज्यादा वोट न मिलते हों, लेकिन उनकी सभाओं में भीड़ खूब जुटती है. लेकिन इस बार राज ठाकरे ने ठान लिया है कि वो भीड़ भी जुटायेंगे और वोट भी पायेंगे. मुंबई में अगले चुनाव बीएमसी के होने हैं जिसमें कामियाबी के लिये राज ठाकरे ने बजरंगबली की शरण ले ली है. हाल ही में ठाकरे ने कहा कि अगर मस्जिदों से लाऊडस्पीकर नहीं हटाये गये तो उनके कार्यकर्ता दुगुने लाऊडस्पीकर लगा कर हनुमान चालीसा बजायेंगे.

ये वही राज ठाकरे हैं जो अबसे दो साल पहले तक मराठी मानुष की राजनीति करते थे, उत्तर भारतीयों के खिलाफ जहर उगलते थे और मुंबई से परप्रांतियों का वर्चस्व खत्म करने की बात करते थे. लेकिन 2020 की शुरुआत में राज ठाकरे ने आत्ममंथन किया. उन्होंने पाया कि मराठी का मुद्दा उन्हें भीड़ भरे मैदान में तालियां तो दिला देता है लेकिन विधान सभा में सीटें नहीं. मराठी के फार्मूले ने साल 2009 के विधान सभा चुनाव में उनकी पार्टी एमएनएस को 13 सीटें दिलाईं लेकिन उसके बाद यानी कि 2014 और 2019 के चुनावों में उनका सिर्फ एक विधायक ही चुना गया. मुंबई महानगरपालिका में भी उनका एक ही पार्षद रह गया और नासिक महानगरपालिका की सत्ता भी उनके पास से छिन गयी.

इस बीच महाराष्ट्र की राजनीति में ऐसा घटनाक्रम हुआ जिसमें राज ठाकरे को लगा कि वे फिर एक बार अपनी पार्टी में नयी जान फूंक सकते हैं. 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद शिव सेना ने अपनी ही तरह हिंदुत्ववादी पार्टी बीजेपी का साथ छोड़ दिया और कांग्रेस-एनसीपी के साथ मिलकर सरकार बना ली. इतना ही नहीं तीनों दलों के कॉमन मिनिमम प्रोग्राम की प्रस्तावना में लिखे सेकुलर शब्द को भी कबूल कर लिया. शिव सेना का ये फैसला ऐतिहासिक था.

बीजेपी ने मौके पर चौका मारा और ये नेरेटिव खड़ा कर दिया कि जो शिव सेना मुस्लिम विरोध और कट्टर हिंदुत्ववाद के लिये जानी जाती थी उसने सत्ता के लालच में सेकुलरवादियों से हाथ मिला लिया. महाराष्ट्र में अब एक ऐसी पार्टी के लिये जगह खाली हो गयी जो वैसी ही कट्टर हिंदुत्ववादी हो जैसी कभी शिव सेना थी. राज ठाकरे को लगा कि ये जगह उनकी पार्टी भर सकती है. मराठी का मुद्दा उन्हें कोई फायदा नहीं दिला रहा था. इसलिये 23 जनवरी 2020 को राज ठाकरे ने अपनी पार्टी के एक कार्यक्रम में एमएनएस के पुराने चौरंगी झंडे को हटा दिया और नया भगवा झंडा अपना लिया. इस मौके पर राज ठाकरे ने ये भी कहा कि पार्टी गठित करते वक्त यही झंडा उनके दिल में था और हिंदुत्व उनके डीएनए में है.

हिंदुत्व की बात करने वाले ये वही राज ठाकरे हैं जिन्होने 2012 में आजाद मैदान में एक रैली के दौरान पूरे ताव के साथ ये कहा था कि मेरा कोई दूसरा धर्म नहीं है, सिर्फ महाराष्ट्र धर्म है. खैर राजनीति में नेता कहते क्या हैं से ज्यादा ये देखा जाना चाहिये कि वे करते क्या हैं....तो इन दिनों राज ठाकरे बीजेपी के करीब होते नजर आ रहे हैं. जब राज ठाकरे मराठीवाद की राजनीति करते थे तब बीजेपी उनसे दूर ही रहती थी क्योंकि बीजेपी को लगता था कि राज ठाकरे के नजदीक गये तो यूपी, बिहार के वोटर उनसे नाराज हो जायेंगे. लेकिन अब राज ठाकरे यूपी, बिहार वालों पर नहीं बरसते वे तो हिंदुत्व की बात करते हैं, उसी हिंदुत्व की जिसका ढोल बीजेपी बजाती है. इसलिये राज ठाकरे से अब परहेज नहीं.

दिलचस्प बात ये है कि राज ठाकरे के बीजेपी के साथ रिश्ते कभी नरम कभी गरम रहे हैं. साल 2006 में जब राज ठाकरे ने अपना पार्टी बनायी तो वे गुजरात गये. वहां तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनका स्वागत किया और अपना राज्य घुमाया. ठाकरे ने मोदी मॉडल की जीभर कर तारीफ की. लेकिन यही मोदी पीएम बनने के बाद राज ठाकरे के निशाने पर आ गये. जिस तरह से बडे प्रोजेक्ट्स गुजरात जा रहे थे उसको देखते हुए राज ठाकरे ने सवाल उठाया कि मोदी पूरे भारत के पीएम हैं या सिर्फ गुजरात के.

साल 2019 के लोकसभा चुनाव के वक्त तो राज ठाकरे ने मोदी के खिलाफ खुली मुहिम ही छेड़ दी –जो लाव रे तो वीडियो नाम से चर्चित हुई. उनकी पार्टी ने लोकसभा चुनाव तो नहीं लड़ा लेकिन राज्य में घूम घूम कर उन्होने मोदी के खिलाफ सभाएं कीं जिनमें मोदी के पुराने बयानों के वीडियो दिखाये गये और ये बताने की कोशिश की गयी कि मोदी की कथनी और करनी में कितना अंतर है.

उसके बाद क्या हुआ? उसके बाद राज ठाकरे को ईडी का सम्मन आ गया. ईडी के दफ्तर में राज ठाकरे को 9 घंटे तक बिठा कर रखा गया. उसके बाद क्या हुआ. उसके बाद अक्टूबर 2019 में विधान सभा के चुनाव आये. उन चुनावों में राज ठाकरे ने ये कहकर सबको चौंका दिया कि वे सत्ता हासिल करने के लिये चुनाव नहीं लड़ रहे. वे तो विपक्ष में बैठने के लिये चुनाव लड़ रहे हैं. सियासी हलकों में लोगों ने इस बात पर गौर कि राज ठाकरे ने बीजेपी को टार्गेट करना कम कर दिया. वो लाव रे तो वीडियो वाला प्रचार जो वे लोकसभा चुनाव में कर रहे थे, विधानसभा चुनाव में नहीं किया.

अब बीजेपी और राज ठाकरे फिर एक बार करीब आते दिख रहे हैं. बीते शनिवार को राज ठाकरे ने चेतावनी दी कि अगर मस्जिदों से लाऊडस्पीकर नहीं हटाये गये तो उनकी पार्टी के कार्यकर्ता स्पीकर पर हनुमान चालीसा बजाने लग जायेंगे.उनके ऐलान के अगले ही दिन एमएनएस कार्यकर्ता मस्जिद के सामने हनुमान चालीसा बजाने भी लग गये. हनुमान चालीसा बजवा कर राज ठाकरे अपनी हिंदुत्ववादी इमेज को और पुख्ता करना चाहते हैं. देवेंद्र फडणवीस और नारायण राणे जैसे बीजेपी के नेता उनके समर्थन में खुलकर सामने आ रहे हैं. राज ठाकरे और बीजेपी के बीच कौनसी सियासी खिचड़ी पक रही है इसे समझने के लिये बड़ा राजनीति पंडित होने की जरूरत नहीं. बीएमसी चुनाव आते आते सबकुछ अपने आप साफ होता चला जायेगा.

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