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धर्म के आधार पर नागरिकता का मकसद क्या है?

यह बिल कहता है कि 31 दिसंबर 2014 तक पाकिस्तान , बांग्लादेश और अफगानिस्तान से जितने भी गैर मुस्लिम भारत आ चुके हैं उन सबको भारतीय नागरिकता मिल जाएगी.

नई दिल्ली: मोदी सरकार नागरिकता संशोधन बिल ला रही है. चौंकिये मत आपकी नागरिकता खतरे में कतई नहीं है. विपक्ष जरुर आरोप लगा रहा है कि मोदी सरकार तय करने वाली है कि देश का नागरिक कौन होगा. मोदी सरकार भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित करना चाहती है. संविधान के धर्मनिरपेक्ष स्वरुप के साथ खिलवाड़ कर रही है. ऐसे तमाम आरोप लगाए जा रहे हैं.

इसे समझने की कोशिश करते हैं. दरअसल मोदी सरकार नागरिकता संशोधन बिल फिर से लाने जा रही है. यह बिल कहता है कि 31 दिसंबर 2014 तक पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से जितने भी गैर मुस्लिम भारत आ चुके हैं उन सबको भारतीय नागरिकता मिल जाएगी. इन गैर मुस्लिमों का मतलब है हिंदू , बौद्ध , सिख , जैन , पारसी और ईसाई धर्म के लोग. इनमें मुस्लिम शामिल नहीं है क्योंकि मोदी सरकार का मानना है कि तीनों मुस्लिम बहुल देशों में गैर मुस्लिमों पर ही अत्याचार हो रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो इसे अपने खून की घर वापसी बता रहे हैं.

सवाल उठता है कि अचानक सरकार को ऐसे शरणार्थियों की चिंता क्यों सताने लगी है. गैर मुस्लिमों के बहाने क्या बीजेपी का कोई नये हिंदुत्व का एजेंडा है. दरअसल असम में एनआरसी के झटके से बीजेपी उभरने की कोशिश कर रही है. नजर पश्चिम बंगाल चुनाव पर भी है. एनआरसी यानि नेशनल रजिस्टर ऑफ पापुलेशन में ऐसे 19 लाख लोग हैं जो ये साबित नहीं कर पाए हैं कि वो या उनके पुरखे 25 मार्च 1971 से पहले बांग्लादेश से असम आ गये थे. 25 मार्च 1971 की तारीख इसलिए कि 1985 में असम गण परिषद और उस समय के प्रधानमंत्री राजीव गांधी के बीच असम समझौता हुआ था.

इसमें तय किया गया था कि जो भी बांग्लादेश से 25 मार्च 1971 से पहले असम आ गया उसे नागरिकता दी जाएगी और इसमें धर्म नहीं देखा जाएगा. यानि हिंदू, जैन बौद्ध सिख के साथ साथ साथ मुस्लिम भी शामिल थे. अब पेंच ये है कि इन 19 लाख में से 12 लाख ऐसे गैर मुस्लिम हैं जिनकी नागरिकता जाने का खतरा है. बीजेपी के लिए एनआरसी गले की हड्डी बन गया है. अब नागिरकता संशोधन बिल पास होने से इन 12 लाख को अपने आप ही नागरिकता मिल जाएगी. बिना कोई वैध कागजात दिखाए. जाहिर है कि सारी वाहवाही बीजेपी के ही खाते में जाएगी. बाकी बचे सात लाख मुस्लिमों की चिंता बीजेपी को नहीं करनी है और इनकी चिंता नहीं करके भी वो सियासी फायदा उठाएगी. मैसेज सीधे-सीधे हिंदुत्व की तरफ जाएगा.

इस बिल के पास होने के बाद बीजेपी पूरे देश में एनआरसी लागू करने की मांग जोर शोर से करेगी. इसे मुख्य चुनावी मुद्दा बनाया जाएगा. नागरिकता संशोधन बिल पास होने के बाद जाहिर है कि एनआरसी के निशाने पर सिर्फ मुस्लिम शरणार्थी ही आएंगे. क्योंकि हिंदु, सिख, जैन, पारसी, ईसाई और बौद्ध तो नये नागरिकता संशोधन कानून के तहत नागरिक हो ही जाएंगे. जानकार कह रहे हैं कि बीजेपी पश्चिम बंगाल का विधानसभा चुनाव एनआरसी और नागरिकता संशोधन कानून के मुद्दे पर ही लड़ना चाहती है. इसके साथ ही बीजेपी की देश भर में एनआरसी लागू करने के बहाने हिंदुत्व और हिंदू राष्ट्र को एजेंडा बनाने की कोशिश होगी.

सवाल उठता है कि क्या वास्तव में नागरिकता संशोधन बिल से संविधान का अपमान हो रहा है. विपक्ष का कहना है कि नागरिकता धर्म के आधार पर नहीं दी जा सकती. ये भी कहा जा रहा है कि ये संविधान के आर्टीकल 14 के खिलाफ है जो समानता का अधिकार देता है. सवाल उठता है कि समानता का अधिकार देश के नागिरकों को दिया गया है या ये उन पर भी लागू होता है जो नागरिकता मांग रहे हैं. असम गण परिषद का कहना है कि ये असम समझौते के खिलाफ है. उस समझौते में 25 मार्च 1971 तक बांग्लादेश से आए सभी धर्मों के लोगों को नागिरकता दिए जाने की बात थी लेकिन नये कानून में मुस्लिम हटा दिए गये हैं. सुना है कि नये बिल में असम समझौते के सम्मान का रास्ता निकाला गया है.

इसी तरह नार्थ ईस्ट के अन्य राज्य भी नये बिल को सांस्कृतिक, भाषाई और पारंपरिक विरासत के खिलाफ बता रही है. इन राज्यों में से अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम और नागालैंड में इनर लाइन परमिट यानि आईएलपी की व्यवस्था है. जिसके तहत सुरक्षा के नाम पर नागरिकों के वहां जाने रुकने पर रोक है. यही व्यवस्था असम, मेघालय और त्रिपुरा के कुछ क्षेत्रों पर भी लागू है. सुना है कि नये बिल में एनक लाइन परमिट की परिधि और दायरा बढ़ाने का रास्ता निकाला गया है ताकि इन राज्यों की चिंता दूर की जा सके.

अंत में सवाल उठता है कि क्या ये बिल संसद में पास हो सकेगा. इसी साल जनवरी में ये बिल लोगसभा में पास हुआ था लेकिन मोदी सरकार राज्यसभा में रखने की हिम्मत नहीं जुटा पाई थी. तब लोकसभा चुनावों के मद्देनजर इन राज्यों के गुस्से का ख्याल रखा गया था. इस बार लोकसभा में तो बिल पास हो जाएगा लेकिन राज्यसभा में सरकार को पापड़ बेलने पड सकते हैं. वैसे हिंदी, हिंदू, हिंदुत्व के माहौल में जहां कांग्रेस भी शिव सेना से हाथ मिलाने में परहेज नहीं कर रही हो वहां ऐसा लगता है कि कोई बीच का रास्ता निकल आएगा. वैसे भी बिल संसद की संयुक्त समिति से निखर कर आया है. ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि विपक्षी दलों की मांग और संशोधनों के नये बिल में जरुर जगह देने की कोशिश हुई होगी.

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