कालेधन की तिजोरी का पता बताने वाले 2000 के नोट का सच!

नई दिल्ली: नोटबंदी के ऐलान के बाद से ही सोशल मीडिया पर अफवाहों की बाढ़ आयी है. रोज अलग अलग दावों के साथ कई मैसेज सोशल मीडिया पर वायरल होते हैं. एबीपी न्यूज़ वायरल हो रहे ऐसे ही मैसेज की पड़ताल कर उनका सच आपके सामने लाता है. आज भी हमने ऐसे ही एक वायरल मैसेज की पड़ताल की है. वायरल हो रहे मैसेज में दावा है कि 2 हजार के नए नोट सरकार तक काले धन की मुखबिरी कर रहे हैं.
आपको याद होगा कि पहले इसी 2000 के गुलाबी नोट में एक चिप होने का दावा किया गया था जो जमीन के भीतर गड़े कालेधन का पता देने का दावा करती थी पर वो झूठ निकला. अब 2000 के नए गुलाबी नोट की अदृश्य ताकत के बारे में किया जा रहा दावा है.
पहला दावा ये है कि 2000 के नोट में रेडियोएक्टिव स्याही लगी हुई है और इसी वजह से इनकम टैक्स डिपार्टमेंट को छापों में 100 फीसदी कामयाबी मिल रही है. दावे के मुताबिक ये स्याही इनकम टैक्स डिपार्टमेंट को नए नोटों का पता बता रही है. दूसरा दावा इस बारे में है कि 2000 के गुलाबी नोट में लगी रेडियोएक्टिव स्याही कैसे नोटों का पता बताती है.

वायरल हो रहे मैसेज में लिखा है, ''2 हजार के नोट में कोई चिप नहीं बल्कि एक तरह की रेडियोएक्टिव स्याही का इस्तेमाल हुआ है. इस स्याही का इस्तेमाल विकसित देशों में पहले से इंडीकेटर के तौर पर किया जाता था. ये रेडियोएक्टिव वॉर्निंग टेप की तरह होता है जिसके एक ही जगह पर मौजूद लिमिट से ज्यादा होने पर इंडीकेटर के तौर पर नोटों की मौजूदगी बताता है और काला धन पकड़ा जाता है. जिसको शक है वो गूगल पर जाकर रेडियोएक्टिव इंक के बारे में जाकर पढ़ सकता है..''
ऐसे दावे के बाद लोगों के मन में कई तरीके के सवाल आ रहे हैं. मसलन इस दावे में कितनी सच्चाई है? भला कोई स्याही मुखबिरी कैसे कर सकती है? क्या फिल्मी तरीके से काला धन छिपाकर रखने के लिए सरकार ने भी कोई फिल्मी तरीका खोजा है? इस सबसे बड़ा सवाल ये कि रेडियोएक्टिव पदार्थ तो नुकसान भी पहुंचाता है तो क्या 2000 के नोट में अगर कोई रेडियोएक्टिव स्याही है तो क्या वो शऱीर को भी नुकसान पहुंचाएगी?
देश में चारों तरफ हो रही छापेमारी के बाद लोग इस दावे पर यकीन भी कर रहे हैं. लेकिन जो दिखता है और सुनाई देता है वो सच हो ये जरूरी नहीं. एबीपी न्यूज ने इस दावे की पड़ताल की.
इन तमाम सवालों का जवाब जानने के लिए हम न्यूक्लियर साइंटिस्ट डॉक्टर एसपी लोचब के पास पहुंचे. हमने उनसे पूछा कि रेडियोएक्टिव स्याही क्या होती है और ट्रेस करने में कितनी उपयोगी है. उन्होंने बताया, '' स्याही में हम उसके किसी भी कम्पोनेंट को रेडियोएक्टिव बना सकते है और उसके रेडियोएक्टिव कह सकते है. दूसरी बात ये कि अगर उसमें ट्रेस एलिमेंट है तो माइक्रो माइक्रो ग्राम की क्वांटिटी आती है जो की जो सेंस्टिटिव यंत्र से भी बहुत मुश्किल होता है पता करना कि इसमें रेडियोऐक्टिविटी है. जैसे हमारे अंदर भी ट्रेस एलिमेंट है लेकिन उसको डिटेक्ट करने के लिए कोई एक्सटर्नल इंट्रूमैंट नहीं है. उसी तरह ये मान भी लिया जाए कि दो हज़ार के नोट पर रेडियोएक्टिव स्याही लगी है और ये पैसा बहुत बड़ी तादात में तो वो किसी के पास तिजोरी या तहख़ाने में होंगे और किसी एक्सटर्नल इंट्रूमेंट से उसे ट्रेस नहीं किया जा सकता है. ये तकनीकि रूप से संभव नहीं है.''
डॉ एसपी लोचब की बात सुनने के बाद वायरल मैसेज में किया जा रहा पहला दावा झूठा साबित हुआ है क्योंकि ये साफ हो चुका है कि अगर स्याही तैयार होने के बाद उसके माइक्रोएलीमेंट नोट पर लगा भी दिए गए तो एक तो वो ट्रेस नहीं होंगे और दूसरा लोगों के शरीर को बहुत नुकसान पहुंचाएंगे. ध्यान से पढ़िए ऐसी स्याही तैयार हुई भी तो शरीर को बहुत नुकसान पहुंचाएगी.
अब सवाल ये है कि क्या स्याही से कुछ ट्रेस करने का किसी भी तरह का कोई तरीका होता है. यहां दूसरा दावा भी गलत साबित हो रहा है क्योंकि सेंसर भी ऐसी कोई ट्रेसिंग नहीं कर सकते और नोट पर लग भी गई तो नोट उसे सोख लेंगे. इसलिए वैज्ञानिक आधार पर ये साफ हो चुका है कि नोट पर रेडियोएक्टिव स्याही लगाने से कुछ हासिल नहीं होगा.
तस्वीर साफ थी लेकिन इस दावे को लेकर शक की कोई गुंजाइश बाकी ना रह जाए इसलिए एबीपी न्यूज ने सरकार से इसका सच जानने की कोशिश की. 2 हजार के नोट में कोई रेडियोएक्टिव स्याही लगी है या नहीं ये जानने के लिए एबीपी न्यूज़ ने सरकार के सूत्रों से संपर्क किया. नोट पर स्याही के सवाल के जवाब में सरकारी सूत्रों ने हमें बताया कि नए गुलाबी नोटों पर रेडियो एक्टिव स्याही की बात सिर्फ कोरी कल्पना है. इसलिए हमारी पड़ताल में 2 हजार के नए गुलाबी नोट पर रेडियोएक्टिव स्याही लगे होने का दावा झूठा साबित हुआ है.
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Source: IOCL






















