Ranveer Allahbadia Row: ऑनलाइन कंटेंट को लेकर सरकार बनाएगी नए नियम कानून, जानें मंत्रालय ने क्या कहा
Ranveer Allahbadia Row: ओटीटी प्लेटफॉर्म या यूट्यूब के कंटेंट को लेकर कोई खास नियम कानून नहीं हैं, जिससे कानूनों में संशोधन की मांग बढ़ रही है.

Ranveer Allahbadia Row: सूचना और प्रसारण मंत्रालय डिजिटल प्लेटफॉर्म पर दिखाई जाने वाली अश्लीलता और हिंसा को लेकर सख्त रुख अपनाने वाला है. मामले को लेकर हार्मफुल कंटेंट को विनियमित करने के लिए मौजूदा वैधानिक प्रावधानों और एक नए कानूनी ढांचे की जरूरत की जांच कर रहा है.
संसदीय पैनल को दिए अपने जवाब में मंत्रालय ने कहा, 'समाज में ये चिंता बढ़ रही है कि डिजिटल प्लेटफॉर्म पर अश्लील और हिंसक कंटेंट दिखाने के लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संवैधानिक अधिकार का दुरुपयोग किया जा रहा है.' बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे की अध्यक्षता वाली संचार और आईटी समिति ने स्टैंडिंग कमेटी को बताया कि मौजूदा कानूनों के तहत कुछ प्रावधान मौजूद हैं, लेकिन ऐसे हार्मफुल कंटेंट को विनियमित करने के लिए एक सख्त और प्रभावी कानूनी बनाने की जरूरत है.
रणवीर इलाहाबादिया के मामले को सीरियसली लिया गया
सूचना और प्रसारण मंत्रालय के मुताबिक, कई हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट, सांसदों और राष्ट्रीय महिला आयोग ने रणवीर इलाहाबादिया के मामले को काफी सीरियसली लिया है. इस पर सबने बात की है. रणवीर इलाहाबादिया के खिलाफ कई आपराधिक मामले दर्ज किए गए हैं. उनकी माफी से विवाद कम नहीं हुआ है.
बीते दिनों हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने भले ही रणवीर इलाहाबादिया को गिरफ्तारी से सुरक्षा दे दी हो, लेकिन उनकी अभद्र टिप्पणियों पर बेहद आलोचनात्मक टिप्पणियां कीं.
समिति ने 13 फरवरी को संशोधनों के बारे में पूछा था
मिनिस्ट्री की तरफ से कमेटी को बताया गया कि इस मामले पर विस्तृत विचार विमर्श के बाद एक विस्तृत नोट सबमिट किया जाएगा. समिति ने 13 फरवरी को मंत्रालय से हानिकारक कंटेंट पर रोक लगाने के लिए मौजूदा कानूनों में आवश्यक संशोधनों के बारे में पूछा था. इंटरनेट द्वारा संचालित नई मीडिया सेवाएं, जैसे ओटीटी प्लेटफॉर्म या यूट्यूब को लेकर कोई विशिष्ट नियामक ढांचा नहीं है, जिससे कानूनों में संशोधन की मांग बढ़ रही है.
कानूनों में संशोधन को लेकर कुछ चिंताएं भी रही हैं कि अधिकारी किसी अन्य कारणों से कंटेंट को सेंसर करने के लिए नए प्रावधानों का उपयोग कर सकते हैं. हालांकि, इलाहबादिया से जुड़े प्रकरणों से बार-बार होने वाले आक्रोश ने मौजूदा कानूनों में संशोधन या नए अधिनियम बनाकर कानूनी ढांचे को मजबूत करने की मांग को बढ़ा दिया है.
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Source: IOCL





















