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विशेष: एक क्षेत्रीय दल के राष्ट्रीय नेता थे रामविलास पासवान

प्रमुख दलित नेताओं में से एक और केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान का निधन हो गया. पासवान 74 साल के थे.

केंद्रीय मंत्री, जुझारू दलित नेता, राजनीति की बारीकियों की गहरी समझ रखने वाले और अपने आप में एक संस्था बन चुके राम विलास पासवान नहीं रहे. लम्बी बीमारी के बाद वे अपने पीछे एक समृद्ध राजनीतिक विरासत छोड़कर गए. सामाजिक न्याय का सिद्धांत उनके लिए राजनीतिक सुविधा का सिद्धांत नहीं था. इसका सबसे बड़ा प्रमाण मंडल आयोग की सिफारिशें लागू कराने में उनकी भूमिका है.

डा. राम मनोहर लोहिया की संसोपा( संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी) से राजनीतिक जीवन शुरू करने वाले राम विलास पासवान ने अपनी पार्टी के नारे ‘संसोपा ने बांधी गांठ, पिछड़े पावें सौ में साठ’, को अपने जीवन लक्ष्य बना लिया. जयप्रकाश नारायण के आंदोलन की छात्र वाहिनी के सदस्य के रूप में उन्होंने राजनीति संघर्ष की जो यात्रा शुरू की उस पर बिना रुके, बिना झुके चलते रहे. देश में इमरजेंसी लगी तो उन्होंने उसका विरोध किया और जेल गए. 1977 में जनता पार्टी में शामिल हो गए और हाजीपुर लोकसभा क्षेत्र से जीत का विश्व कीर्तिमान बनाया.

दलित राजनीति के जुझारू स्वरूप को महाराष्ट्र से बाहर लाने और सफलता पूर्वक चलाने में उनकी अहम भूमिका रही. यही वजह है कि बिहार के पासवान समुदाय में उनकी लोकप्रियता में कभी कोई कमी नहीं आई. केंद्र में सरकार किसी पार्टी की हो पासवान की जरूरत सबको थी. जिसके साथ रहे जम कर रहे. मतभेद हो गए तो अलग हो गए पर सरकार में रहकर सरकार या मुख्य सत्तारूढ़ दल के लिए परेशानी का सबब कभी नहीं बने.

साल 2000 में उन्होंने अपनी लोक जनशक्ति पार्टी बनाई. तो उसकी युवा शाखा को दलित सेना का नाम दिया. सामाजिक न्याय में उनके विश्वास का ही असर था कि दलित नेता होने के बावजूद उन्होंने मंडल आयोग की सिफारिशें लागू कराने में वीपी सिंह सरकार का पूरा साथ दिया. मंडल आयोग की सिपारिशें लागू करवाने में उनकी भूमिका पिछड़ा वर्ग के किसी नेता से कम नहीं रही. उस समय के प्रधानमंत्री वीपी सिंह के वे सबसे विश्वस्त ही नहीं शक्ति पुंज भी थे. तो 2004 में सोनिया गांधी को यूपीए के लिए साथियों की तलाश थी वे चलकर राम विलास पासवान के घर उन्हें मनाने गईं. पासवान ने उन्हें निराश नहीं किया.

राम विलास पासवान ने पांच प्रधानमंत्रियों के साथ काम किया. पर कभी प्रधानमंत्री पद की गरिमा के खिलाफ कुछ नहीं किया. परस्पर विरोधी गठबंधनों के साथ काम करने के बावजूद उनके मन में किसी राजनीतिक दल या नेता के प्रति तल्खी का भाव कभी नहीं आया. उन्होंने केंद्र में कई मंत्रालयों की जिम्मेदारी संभाली. पर रेल और सामाजिक न्याय मंत्री के रूप में उनके काम को हमेशा याद किया जाएगा. साल 1989 में पहली बार मंत्री बनने के बावजूद उन्होंने अपनी प्रशासनिक क्षमता का भरपूर प्रदर्शन किया.

दरअसल पासवान एक क्षेत्रीय दल के राष्ट्रीय नेता थे. राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर उनकी समझ बहुत साफ थी. उनका दल भले ही क्षेत्रीय था पर उनका दृष्टिकोण राष्ट्रीय था. यही कारण है कि बिहार के दलित समुदाय की एक जाति के समर्थन के बूते पर वे चार दशक से ज्यादा समय तक राष्ट्रीय राजनीति में प्रासंगिक बने रहे. बिहार में पासवान समुदाय की आबादी करीब पांच फीसदी है. पर राष्ट्रीय राजनीति में पासवान का कद अपने समुदाय की संख्या से हमेशा बड़ा रहा.

रामविलास पासवान का स्वभाव आखिरी समय तक उनकी सबसे बड़ी ताकत बना रहा. मीडिया के महत्व को समझने वाले उनके जैसे नेता भारतीय राजनीति में कम ही हैं. अपने खिलाफ खबर लिखने वाले किसी पत्रकार से वे कभी नाराज नहीं हुए. राजनीति की बदलती बयार को भांपने में वे माहिर थे. इसलिए उनके विरोधी उन्हें मौसम विज्ञानी कहते थे. पर ऐसी बातों का उनपर या उनके मतदाता पर कभी कोई असर नहीं पड़ा.

बिहार ही नहीं देश की और खास तौर से दलित राजनीति में उनकी कमी लम्बे समय तक महसूस की जाती रहेगी. उन्हें हमेशा यह पता होता था कि कब और कहां रुक जाना है. राजनीति में यह कम लोगों को पता होता है.

(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार हैं.)

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