अदब की महफिल में अब सिक्कों की खनक, पेड एंट्री ने दूर किए शेर-ओ-शायरी के आशिक
अदब की इस महफिल में अब सिक्कों की खनक सुनाई दे रही है, जिससे शेर-ओ-शायरी के तलबगार अब इससे दूरी बनाने लगे हैं. जानें पूरा मसला.

यहां 'शेर' इस कदर आते हैं कि लोगों की जुबां से सिर्फ वाह-वाह निकलता है. और जब शायरी अपने शबाब पर होती है तो हर किसी का दिल मचल उठता है. बात हो रही है देश के सबसे मशहूर साहित्य और संस्कृति के उत्सव जश्न-ए-रेख्ता की, जहां जाना हर किसी के दिल की चाहत होती है. हालांकि, अदब की इस महफिल में अब सिक्कों की खनक सुनाई देने लगी है, जिससे शेर-ओ-शायरी के तलबगार अब इससे दूरी बनाने लगे हैं. आइए जानते हैं कि यह पूरा मसला क्या है?
तीन दिन होना है आयोजन
बता दें कि साल 2024 के जश्न-ए-रेख्ता की शुरुआत 13 दिसंबर 2024 से हो रही है और यह 15 दिसंबर तक जारी रहेगा. इस तीन दिवसीय उत्सव में उर्दू साहित्य, संगीत, नृत्य और कला के विभिन्न रूपों का प्रदर्शन किया जाएगा. साथ ही, गजल, सूफी संगीत, कव्वाली, कहानी सुनाने, मुशायरा, कविता पाठ, मशहूर हस्तियों के साथ बातचीत और मास्टरक्लास सहित इंटरएक्टिव सत्रों का दिलचस्प मिश्रण पेश किया जाएगा. आयोजकों का कहना है कि आर्ट एंड कल्चर को प्रमोट करने के साथ-साथ जश्न-ए-रेख्ता 2024 का उद्देश्य उर्दू भाषा और साहित्य को बढ़ावा देना है. साथ ही, नई पीढ़ी को इसके महत्व से अवगत कराना है.
महफिल में सिक्कों की खनक
गौर करने वाली बात यह है कि जश्न-ए-रेख्ता के इस सफर की शुरुआत साल 2015 में हुई थी और तब से अब तक यह उत्सव आठ बार आयोजित किया जा चुका है. भले ही आयोजक इस उत्सव को आर्ट एंड कल्चर को प्रमोट करने वाला बता रहे हैं, लेकिन 9वें सीजन के लिए एंट्री फीस रखकर और नियमों को सख्त करके उन्होंने शेर-ओ-शायरी के तमाम तलबगारों को इससे दूर करने की तरफ कदम बढ़ा दिए हैं. बता दें कि इस आयोजन में शामिल होने के लिए एक दिन की एंट्री फीस कम से कम 499 रुपये रखी गई है. गोल्डन पास लेने वालों को तीन दिन के लिए 9000 रुपये और प्लेटिनम पास लेने वालों को 3 दिन के लिए 22500 रुपये खर्च करने होंगे.
नियमों में किए गए कई बदलाव
अहम बात यह है कि 7वें सीजन तक इस इवेंट में एंट्री फ्री होती थी, लेकिन 8वें सीजन से एंट्री फीस का कॉन्सेप्ट शुरू किया गया. हालांकि, उस दौरान एंट्री फीस के अलावा तमाम लोगों को इवेंट में शामिल होने के लिए पास आदि की व्यवस्था की गई थी, लेकिन 9वें सीजन में यह सिस्टम भी पूरी तरह खत्म कर दिया गया है. गौर करने वाली बात यह है कि जश्न-ए-रेख्ता में शामिल होने वालों की जेब काटने का काम यहां लगने वाले स्टॉल्स बखूबी करते हैं. आलम यह है कि 7वें सीजन तक यहां एक कप चाय की कीमत करीब 50 रुपये होती थी, जो अब 100 रुपये के आसपास पहुंच चुकी है. खाने-पीने की दूसरी चीजों के दाम भी यहां बेतरतीब तरीके से वसूले जाते हैं.
आयोजकों ने ऐसे रखा अपना पक्ष
आयोजकों ने एंट्री फीस और खाने-पीने के सामान की कीमतों में हुए इजाफे को बढ़ते खर्च और भीड़ पर नियंत्रण पाने का तरीका बताया है. कार्यक्रम के मुख्य आयोजक सतीश गुप्ता का कहना है कि आज लोगों को कुछ भी मुफ्त में नहीं मिलता है. हर चीज के लिए कीमत चुकानी पड़ती है. आयोजन का स्तर भी समय के साथ बड़ा होता चला गया और इसके खर्चे भी बढ़ने लगे. यही वजह है कि 7 साल तक निःशुल्क रहा यह आयोजन पिछले एक साल से पेड एंट्री वाला हो गया है.
10 दिन पहले टिकटों की बुकिंग भी बंद
उन्होंने बताया कि पहले इवेंट में काफी भीड़ हो जाती थी, जिसे नियंत्रित करना मुश्किल होता था. पहले आयोजन स्थल के लिए कम पैसे देने पड़ते थे, लेकिन अब बड़ी जगह पर आयोजन के लिए ज्यादा चार्ज लगता है, जो आयोजकों, फाउंडर, एनजीओ और फंडिंग करने वाली संस्थाओं के योगदान से पूरा नहीं हो पा रहा है. ऐसे में इस आयोजन में शामिल होने के लिए 499 रुपये का शुल्क लगाया गया है. इसके बावजूद टिकट की काफी डिमांड है, लेकिन हर किसी को इसका टिकट देने में सक्षम नहीं हैं. ऐसे में 10 दिन पहले ही टिकटों की बुकिंग भी बंद कर दी गई है. सतीश के मुताबिक, एंट्री फीस लगाने से न सिर्फ भीड़ पर नियंत्रण लगाने में आसानी हुई है, बल्कि आयोजन पर होने वाले खर्च को पूरा करने में भी मदद मिली है.
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Source: IOCL























