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राजस्थान: जानें अशोक गहलोत के लाइफस्टाइल के बारे में
अशोक गहलोत राजनीति में तो काफी तेजतर्रार नेता भी माने जाते हैं. इसके साथ ही उनकी लाइफस्टाइल भी काफी दिलचस्प है.
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नई दिल्ली: पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों के नतीजे सामने आ चुके हैं. इन प्रदेशों में से एक राजस्थान में अब सरकार बनाने और मुख्यमंत्री के चेहरे की चर्चा जोरों पर है. ऐसे में अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच सीएम की रेस चल रही हैं. लेकिन, सूत्रों की मानें तो कांग्रेस आलाकमान ने बैठक में सीएम पद के दावेदार को चुन लिया गया है. इसके साथ ही राजस्थान की कमान अशोक गहलोत को देने का निर्णय किया है.
बेहद पसंद है घूमना-फिरना आपको बता दें कि अशोक गहलोत दो बार राज्य के मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं. उन्हें घूमना-फिरना बहुत पसंद है. यही नहीं एक बहुत दिलचस्प बात यह है कि जहां भी जाते हैं बिस्कुट का पैकेट जरुर रखते हैं. क्योंकि उन्हें कड़ाकेदार चाय पसंद है और वह चाय के साथ बिस्कुट खाना पसंद करते हैं.
लाइफस्टाइल भी बेहद साधारण इनकी कुल संपति लगभग 6 करोड़ 44 लाख रुपये की है लेकिन इसके बावजूद इनके पास कोई गाड़ी नहीं है. अशोक गहलोत के पिता पेशे से जादूगर थे. बताया जाता है कि गहलोत ने भी अपने पिता से यह हुनर सीखा था. कुछ समय तक तो उन्होंने जादूगरी में अपना हाथ भी आजमाया था. गहलोत का लाइफस्टाइल बेहद साधारण है इसके कारण इन्हें राजस्थान का गांधी भी कहा जाता रहा है.
अशोक गहलोत का राजनीतिक सफर गहलोत का लाइफस्टाइल बेहद साधारण है इसके कारण इन्हें राजस्थान का गांधी भी कहा जाता रहा है. अशोक गहलोत सबसे पहले 1980 में सांसद चुने गए थे. वह लगातार चार बार सांसद रहे हैं. इसके बाद साल 1998 से लेकर अभी तक सरदारपुरा सीट से पांच बार विधानसभा चुनाव जीतने में कामयाब रहे. यूपीए सरकार के दौरान केंद्र में भी गहलोत ने अहम भूमिका निभाई. साल 1982 से 1993 के बीच उन्होंने पर्यटन, नागरिक उड्डयन, स्पोर्ट्स और टेक्सटाइल मंत्रालय संभाला है. बाद में साल 2004 से 2008 तक उन्होंने राष्ट्रीय महासचिव पद पर काम किया.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता की शिक्षा-दीक्षा गहलोत ने साइंस और लॉ में ग्रैजुएट किया है. जबकि, उन्होंने अर्थशास्त्र में मास्टर्स पूरा किया. इसके साथ ही पढ़ाई पूरी होने के बाद सीधे राजनीति में प्रवेश किया. फिर वो समाजसेवा करने लगे. पूर्वी बंगाल शरणार्थी संकट के वक्त उन्होंने काफी लोगों की मदद भी की थी. संयोगवश उस वक्त तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से उनका सामना हुआ और वह गहलोत को कांग्रेस में ले आईं. जिसके बाद से उन्होंने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा.
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